गज़ल
वो सब को ही लुभाना जानता है
सभी के दुख मिटाना जानता है
वो भोला बन रहा है पर जमाना
हरेक उसका फसाना जानता है
नहीं दो वक्त की रोटी उसे पर
महल ऊँचे बनाना जानता है
पहल करता नही वो दुशमनी मे
उठी ऊँगली झुकाना जानता है
निकम्मा क्या करेगा काम प्यारे
महज बातें बनाना जानता है
चुराते लोग खुशियाँ हैं मगर वो
फकत आँसू चुराना जानता है
सभी के दुख मिटाना जानता है
वो भोला बन रहा है पर जमाना
हरेक उसका फसाना जानता है
करो मत शक कोई नीयत पे उस की
वो सब वादे निभाना जानता हैनहीं दो वक्त की रोटी उसे पर
महल ऊँचे बनाना जानता है
पहल करता नही वो दुशमनी मे
उठी ऊँगली झुकाना जानता है
निकम्मा क्या करेगा काम प्यारे
महज बातें बनाना जानता है
चुराते लोग खुशियाँ हैं मगर वो
फकत आँसू चुराना जानता है