महमान [व्यंग कविता ]
होली पर जब महमान घर आते
पतनी खुश होती पती मुँह फुलाते
पतनी को उनका ये रुख कभी ना भाया
एक दिन उसने पती को समझाया
ऎजी. अगर आप ऐसे मुंह फुलाओगे
तो होली कैसे मन पायेगी मेरी सहेलियों मे
मेरी क्या इज्ज़त रह जायेगी
महमान तो भगवान रूप होते हैं
उन्हें देख मुंह नहीं फुलाते
उनकी सेवा करते हैं और हंस कर गले लगाते हैं
ये सुन पती बोले
;रानी, तेरा हुकम बजाऊँगा
जब आयेगी तेरी सहेली
उसे गले लगाऊँगा
पर जब आयेगी मेरी माँ
तुझ से भी यही करवाऊँगा !!