यूँ तो आज बेटे का जन्मदिन होता है 29 फरवरी। लेकिन 3 साल तो 1 मार्च को ही मनाते थे,बस लीप के साल मे ही 29 फरवरी को मनाया जाता था। शायद उस ने पहले ही आदत डाल दी थी जन्मदिन न मनाने की। \अभी पहले गये हुये भूले नही थे कि ये भी हमे छोड कर चला गया।ये गज़ल उन 7 अपनो के नाम है जो भरी जवानी मे हमे छोड कर चले गये । एक का कोई जन्मदिन या अन्तिम विदाई का दिन आता है तो सब की याद ताज़ा हो जाती है। उन्हें याद करते हुये ये गज़ल लिखी है।
गज़ल
उसकी अर्थी को उठा कर रो दिये थे
रस्म दुनिया की निभा कर रो दिये थे
नाज़ से पाला जिसे माँ बाप ने था
आग पर उसको लिटा कर रो दियेथे
थी उम्र शहनाइयाँ बजती मगर अब
मौत का मातम मना कर रो दिये थे
दी सलामी आखिरी नम आँखों से जब
दिल के ट्कडे को विदा कर रो दियेथे
यूँ सभी अरमान दिल मे रह गये थे
राख सपनो की उठा कर रो दिये थे
थी बडी चाहत कभी घर आयेगा वो
लाश जब आयी सजा कर रो दिये थे
था चिरागे दिल मगर मजबूर थे सब
अस्थियाँ गंगा बहा कर रो दिये थे
वो सहारा ले गया जब छीन हम से
सिर दिवारों से सटा कर रो दिये थे
रोक लें आँसू मगर रुकते नही अब
दर्द का दरिया बहा कर रो दिये थे
माँ ग ली उसने रिहाई क्यों खुदा से
कुछ गिले शिकवे सुना कर रो दिये थे
उसकी अर्थी को उठा कर रो दिये थे
रस्म दुनिया की निभा कर रो दिये थे
नाज़ से पाला जिसे माँ बाप ने था
आग पर उसको लिटा कर रो दियेथे
थी उम्र शहनाइयाँ बजती मगर अब
मौत का मातम मना कर रो दिये थे
दी सलामी आखिरी नम आँखों से जब
दिल के ट्कडे को विदा कर रो दियेथे
यूँ सभी अरमान दिल मे रह गये थे
राख सपनो की उठा कर रो दिये थे
थी बडी चाहत कभी घर आयेगा वो
लाश जब आयी सजा कर रो दिये थे
था चिरागे दिल मगर मजबूर थे सब
अस्थियाँ गंगा बहा कर रो दिये थे
वो सहारा ले गया जब छीन हम से
सिर दिवारों से सटा कर रो दिये थे
रोक लें आँसू मगर रुकते नही अब
दर्द का दरिया बहा कर रो दिये थे
माँ ग ली उसने रिहाई क्यों खुदा से
कुछ गिले शिकवे सुना कर रो दिये थे