03 October, 2009

दोहरे माप दँड
पिछली बार आपने पढा
कि रिचा और रिया दोनो स्कूल मे इकठी पढती थीं । दोनो सहेलियाँ थी। रिया शहर मे और रिचा साथ लगते गाँव मे रहती थी। जिस दिन स्कूल मे छुटियाँ हुई उस दिन जब रिचा स्कूल से घर नहीं पहुँची तो उसके घर वालों को चिन्ता हुई। उसके पिता पोलिस मे केस दर्ज नहीं करवाना चाहते थे। सभी इसी सोच मे थे कि क्या किया जाये उसे कहाँ ढूँढा जाये। tतभी पता चला कि वो खून् से लथपथ खेत मे पडी है उसे असपताल लाया गया। पोलिस मे केस दर्ज हुया मगर रिचा के पिता ने उसे मना कर दिया कि किसी का नाम मत बताये क्योंकि उन्हें रिचा ने बता दिया था कि वो साथ के गाँव के ्रपंच का बेटा था रिचा घर आ गयी। मगर उसे किसी से बात करने की इजाजत नहीं थी वो अकेली अन्दर बैठी आँसू बहाती रहती उसकी सहेली रिया उससे मिलने आती है। आब आगे पढिये-------


दोहरे माप दँड

मै जैसे ही रिचा के घर पहूँची सामने आँगन मे उसकी बेबे{माँ} बैठी थी।
*बेबे नमस्ते।* मैने उन्हें प्यार से बुलाया।
* नमस्ते बेटी आओ।* एक अप्रयातिश खुशी के साथ उनकी आँखें भर आयी।
*रिचा कहाँ है मै उस से मिलने आयी हूँ हम लोग रात ही लुधियाना से आये हैं।*
मुझे बहुत दिन से तेरा इन्तज़ार था रिचा ने बताया था कि तुम लोग लुधियाना गये हो। बेटी उसे समझाओ । वो अन्दर बैठी अपनी तकदीर पर आँसू बहाती रहती है।* कहते हुये उनके आँसू बह गये।
मेरा दिल अन्दर तक एक पीडा से भर गया। बेशक अभी छोटी थी दुख देखा नहीं था मगर समाज मे रहती थी । औरत की, एक माँ की बेबसी देख कर दिल तडप गया।
जैसे ही अन्दर जाने लगी,उसके पिता से सामना हो गया।मेरी नमस्ते का जवाब भी उन्होंने बडी उपेक्षा से दिया। मन को झटका लगा, शायद् मेरा आन भी उन्हें अच्छा नहीं लगा था।पुरुश को किसी भी चीज़ से अधिक अपने घर की इज्जत और अहं प्यारा होता है। अपनी आबरू के आगे औलाद का प्यार दर्द उन्हें नहीं पिघला सकता। शायद घर की बात बाहर न जाये इस लिये उन्हें रिचा का किसी से मिलना अच्छा नहीं लगता था।
कैसा निर्दयी बाप है! बेटी पर क्या गुज़र रही है कैसे अकेली इस सदमे मे घुट रही है? उसकी संवेदनाओं से अधिक समाज का डर है। मन विशाद से भर गया।
मैं अन्दर गयी तो रिचा दिवार की तरफ मुँह करके लेटी हुई थी।
*रिचा<*, मैने उसका हाथ पकडते हुये उसे पुकारा। वो अपलक छत की ओर देख रही थी एक महीना हो गया था इस हादसे कोमगर उसके चेहरे पर अब भी खौफ था। बहुत कमजोर हो गयी थी।उस भयानक हादसे को सुन कर किसी की भी रूह काँप जाये फिर उसने तो झीला था।
*रिचा, क्या मुझ से नाराज़ हो?*
मैने धीमे से उसे हिलाया,उसने मेरी तरफ मुड कर देखा और फफक कर मेरे गले लग गयी।अँ सू ऐसे बहने लगे जैसे बरसाती नदी बान्ध तोड कर बिखरती है। मैने जोर से उसे भीँच लिया जैसे एक माँ अपने बच्चे को भीँचती है। मै उसे रोने देना चाहती थी।पीडा का कुछ अंश तो ये आँसू बहा ही लेते हैं।यूँ तो औरत की नियती ये आँसू ही हैं,इन्हीं से जीवन का ताना बाना बुनती है,मगर अबला नारी अकेली रो भी नहीं सकती उसे रोने के लिये भी एक कन्धा चाहिये होता है ।
मैं बेशक छोटी थी मगर दुनिया को समझने लगी थी। मैने सोच लिया कि चाहे कुछ भी हो मैं उसे कन्धा दूँगी। उसका साथ नहीं छोडूंगी।
*रिचा बस बहुत हो गया ,संभालो अपने आप को।* मैने उसे पेछे सिरहाना रख कर बैठनी मे मदद करते हुये कहा।
*जानती हो जितना दुख मुझे इस हादसे से था उस से भी अधिक इस बात का कि मेरी जान से प्यारी सहेली भी मेरे पास नहीं है,मुझे लगा शायद वो भी दुनिया की भीड मे खो गयी है।*
*तुम जानती थी माँ का आप्रेशन था। क्या मुझ पर भी विश्वास नहीं रहा?*
*विश्वास?जब अपने खून के रिश्तों मे ही मेरा द्र्द समझने का एहसास नहीं तो और किसी से क्या उमीद रखी जा सकती है।* उसने एक लम्बी साँस भर कर कहा
*रोचा अगर एक हादसे से विश्वास टूटने लगेगा तो कैसे चलेगा।जीवन तो अपने आप मे एक हादसा है । अगर आदमी मे मनोबल रहेगा तभी वो जी सकता है।*
अच्छा बताओ अब जख्म ठीक हैं?* मैने उसके शरीर पर नज़र दौदाते हुये कहा।
*तन के ज़्ख्म तो भर गये हैं,पर मन के ज़ख्मों मे इतना मवाद भर गया है कि मौत ही इससे छुटकारा दिला सकती है।*
*देखो रिचा,मरना तो सब को एक दिन है ,ागर मरने से पहले जीना सीख लें तभी मरने पर भी शान्ति मिलेगी। बस इन्साम को निराश नहीं होना चाहिये।*
*सब कहने की बातें हैं। कहने और सहने मे बहुत अन्तर है।एक अफसाना है दूसरा सच्चाई,यथार्थ अगर ये हादसा उस घटना तक ही सीमित रहता तब भी कभी न कभी इस दुख से उभर आती,मगर उसके बाद जो हो रहा है---- अपनों का समाज का इपेक्षापूर्ण व्यवहार,तिरस्कार उस से कैसे उबर सकती हूँ?*
*जानती हो जैसे ही मुझे होश आया, मै एक दम चीख मार कर उठी,मन था कि अभी उन दरिंदों को गोली से उडा दूँ। उन का घिनौना अत्याचार सहा था मैने,म्रे रोम रोम से एक लावा उठ रहा था। मैने जोर से कहा कि मैं उन्हें गोली मार दूँगी मुझे एक पिस्तौल चाहिये--- तभी पोता ने जोर से मुह पर थप्पड मारा-*चुप रह चुपचाप बेड पर पडी रह, नाक तो कटवा ही दी अब और क्या करेगी।*
सच कहूँ उस समय ,इझे मेरा बाप उन बदमाशों से भी निर्दयी लगा।मेरा क्या कसूर था?पिता के चेहरे पर क्रोध और मेरे बेटी होने की शर्मिन्दगी की काली परछाई देख कर दिल टूट गया था। लगा उन दुश्टों से तो हारी ही अपने आप से और जीवन से भी हार गयी हूँ।*
---*माँ की आँखों मे दया ढूँढी वहाँ द्या से अधिक बेबसी के साये थे। वो भी औरत थी इस आदम समाज की वंदिनी एक इज्जतदार पति की कर्तव्यनिष्ठ पत्नी!जो चाहते हुये भी कुछ नहीं कर सकती थी।---
--*भाई ने तो नज़र उठा कर देखना भी गवारा नहीं समझा।उसे तो एक ही चिन्ता थी कि वो लोगों से नज़र कैसे मिलायेगा।मुझे तो ये उमीद थी कि मैं उसकी इकलौती लाडली बहन हूँ वो अभी जायेगा और उन दुश्टों कोगोली से उडा देगा। मगर उसे भी अपनी इज्जत और भविश्य ही प्यारा था। *----
*मेरे साथ अन्याय हुया है ,मुझे न्याय कौन दिलायेगा? कौन?*
*रिचा शाँत हो जाओ।* सच मे इतने दिनो से उसके अन्दर का लावा फूट रहा था।
*किसी को एहसास नहीं कि मैं किस तरह का संताप झेल रही हूँ।कैसे पर कटे पक्षी की तरह छटपटा रही हूँ।* और वो फूट फूट कर रोने लगी थी।
अच्छा अब चुप हो जाओ। तुम अपनी पढाई क्यों नहीं शुरू कर रही हो? मैने बात बदलने की कोशिश की।
*अब कौन भेजेगा मुझे स्कूल ? पिताजी ने मना कर दिया है*
मुझे एक झटका सा लगा। क्या इस की जिन्दगी बरबाद कर देना चाहते हैं?
*देखो तुम अपने आप को सम्भालो तुम्हारा कोई कसूर नहीं है इस लिये किसी से डरने की जरूरत नहीं।तुम घर पर रह कर तो पढ सकती हो ना? पढाई शुरू करो आगे देखते हैं। मैं अपने मम्मी पापा को ले कर आऊँगी वो तुम्हारे पिता से बात करेंगे।चिन्ता मत करो सब सही हो जायेगा और मै अब आती रहूँगी। * इसके बाद मै उसे माँ के आप्रेशन के बारे मे बताती रही ।बेबे चाय ले कर आयी चाय पी ही थी कि तभी मेरे पिता जी लेने आ गये। क्रमश;



01 October, 2009

दोहरे माप दँड----
पिछली बार आपने पढा
कि रिचा और रिया दोनो स्कूल मे इकठी पढती थीं । दोनो सहेलियाँ थी। रिया शहर मे और रिचा साथ लगते गाँव मे रहती थी। जिस दिन स्कूल मे छुटियाँ हुई उस दिन जब रिचा स्कूल से घर नहीं पहुँची तो उसके घर वालों को चिन्ता हुई। उसके पिता पोलिस मे केस दर्ज नहीं करवाना चाहते थे। सभी इसी सोच मे थे कि क्या किया जाये उसे कहाँ ढूँढा जाये।

गताँक से आगे कहानी
अब आगे

अभी वो लोग कुछ और फैसला लेते तभी एक आदमी भागा भागा आया--* जल्दी चलिये ट्यूवेल के पास रिचा खून से लतपथ बेहोश पडी है।*
सभी आनन फानन मे उधर दौदे साथ वाला फौजी अपनी गाडी ले आया। ये ट्यूवेल इसी गाँव के आखिरी खेत पर था साथ मे दूसरा गाँव बेला पुर की जमीन पडती थी। वहाँ भी एक टयूवेल था।
रिचा को देख कर एक बार तो सब की रूह काँप गयी।शरीर पर कई जगह चाकू के निशान भी थी।सारे कपडे खून से सने थे मुँह पर खरोंचों से खून रिस रहा था। जल्दी से तीन चार लोगों ने उसे उठा कर गाडी मे डाला।ाउर अस्पताल ले गये। अस्पताल वलों ने पोलिस क्प सूचना भेज कर उसका इलाज शुरू कर दिया।जाँच मे पाया गया कि लडकी का बलात्कार किया गया है साथ ही चाकूओं कई जगह वार किया गया है। लडकी की हालत बेहद गम्भीर थी।माँ बाप को काटो तो खून नहीं।भाई बेबसी मे हाथ मल रहा था।बाप सोच रहा था कि पोलिस लडकी का ब्यान लेगीपता नहीं कितनी बार क्या क्या सवाल पूछे जायेंगे और फिर अदालत मे वकील जिर्ह करेंगे तो लडकी की और मिट्टी पलीत होगी कितनी बदनामी होगी । फिर वो बदमाश पता नहीं कौन होंगे और कितने ताकतबर होंगे,ाइसे मे दुशमनी मोल ले कर भविश्य के लिये मुसीबतें खडी करने से क्या फायदा। धन और इज्जत दोनो की बरबादी होगी।
इज्जत जानी थी सो जा चुकी।ाब चुपचाप कडवा घूँट ही पीना होगा।। उन्हों ने अपनी पत्नि को भी समझा दिया कि जैसे ही लडकी को होश आये उसेसमझा दे कि किसी का नाम नहीं लेना।ाउर कह दे कि मुझे बेहोश कर दिया गया था मैं शक्ल नहीं देख सकी।पत्नि ने विरोध करना चाहा मगर पति ने घुडकी दे कर चुप करवा दिया। शायद एक लाचार बाप यही कर सकता हो कह देना आसान है कि उनको सजा दिलवानी चाहिये थी मगर शायद बाप को भी अपनी इज्जत बेटी के दुख और आक्रोश से अधिक प्यारी थी।
अगले दिन लडकी को होश आया तो उसने माँ को सारी बात बताई।वो बदमाश साथ के गाँव के सरपँच का बेटा था।साथ मे उसके दो दोस्त थे । तीनो उसे उठा कर अपने खेत वाले टूवेल पर ले गयी थे।उसके साथ कुकर्म किया विरोध करने पर उसके चाकू मारे। और साथ मे धमकी दी कि अगर किसी को हमारा नाम बताया तो पूरे खानदान को खत्म कर देंगे। एक तो बार बार कह रहा था कि इसे मार दो मगर दूसरे ने मना किया कि ऐसे ही फेंक दो। शयद अपनी तरफ से मार कर ही फेंक गये थे। अगर अधा घँटा और वहाँ पडी रहती तो प्राण पखेरू उड गये होते।
बाप जानता था कि उस सरपंच के पास पैसे की ताकत तो थी ही ,उसके सम्बन्ध भी बडे बडे नेताओं से थे और आप भी वो बदमाश किस्म का आदमी थाीऐसी हालत मे उनसे लोहा लेना धन,समय और बची खुची इज्जत की बरबादी होगी।
पोलिस ने भी खाना पूर्ती कर के केस की फाईलें अलमारी मे बन्द कर दी उन्हें पैसा और सिफार्श ने काबू कर लिया था।फिर लडकी के ब्यान भी यही थे कि वो किसी को नहीं पहचानती।
इस तरह एक मासूम के साथ अत्याचार और इन्साफ थाने की फाईलों मे दब कर रह गये थे।इन्साफ की देवी तो खुद देख नहीं सकती उसकी आँखों पर तो पट्टी बन्धी रहती है,ापराधियों को सजा कैसे हो सकती है आम आदनी तो ऐसे राक्षसों से लड भी नहीं सकता।
वक्त के साथ साथ लोग समाज के उन दरिन्दों को तो भूल गये मगर ये नहीं भूले कि इस लडकी की इज्जत लुट चुकी है। उसे सहानुभूति रखने की बजाये उसे हेय दृश्टी से देखा जाने लगा। माँ बाप के लिये भी अब वो शाप बन गयी थी । जितने लोग उतनी बातें। कुछ का कहना था कि ये जान बूझ कर स्कूल से लेट आयी और खुद ही उन लडकों के साथ गयी होगी।
चाहिये तो ये था कि कोई उसकी भी भावनायें समझता, उसके दुख को सुनता, उसे हादसा भूलने मे मदद करता, मगर नहीं --- समाज ने औरत के साथ न्याय किया ही कब है। अगर किसी ने उसके भाई को एक थप्पड भी मारा होता तो शायद बाप बेटा दोनो मरने मारने पर उतारू हो जाते। मगर आज इनके लिये बेटी से अधिक अपनी इज्जत प्यारी हो गयी।बाकी लोग क्यों उसकी भावनाओं पर ध्यान दें जब घर वाले ही उसे कलंक समझने लगे थे।
मुझे इस हादसे से अधिक दिख उसके माँ बाप के रवैये को देख कर हुया।मन विद्रोह सा कर उठा था।। इस हादसे से दूसरे दिन ही हम लोग तो लुधियाना चले गयी थे क्यों की मेरी मम्मी के आप्रेशन की तारीख ले रखी थी। वहाँ भी मुझे रिचा की चिन्ता रहती बेचारी किस मानसिक कश्ट से गुज़र रही होगी कोई उससे बात करने वाला भी नहीं होगा। हमे लुधियाना मे एक महीना लग गया। अभी हमारी एक हफ्ते की छुटियां पडी थी। घर आते ही मैने रिचा से मिलने की सोची।
सुबह मैने नाश्ता करते हुये मां से पूछा
* माँ मैं रिचा से मिल आऊँ?*
*बेटी तुम्हारी सहेली है तुम्हें जरूर जाना चाहिये ।* मा जवाब देती इस से पहले हीपिताजी बोल पडे।
*ये क्या करेगी जा कर सुना नहीं लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं?* दादी एकदम बोल पडी
माँ लोगों का क्या हैकिसी को भी कुछ भी कह देते हैं । इसमे उस बेचारी का क्या कसूर है? हम लडकी वाले हैं कल को हमारी बेटी के साथ कुछ हो तो हमे भी ऐसे ही कहेंगे। दोस्त मित्र के दुख मे साथ देना हमारा कर्तव्य है।* पिता जी ने दादी को समझाया।
मै जानती थी कि मेरे पोता बहुत सुलझे हुये और अच्छे इन्सान हैं। काश कि समाज के सब लोग मेरे पोता जैसे हो जायें तो शायद समाज मे कोई समस्या ही ना हो।पिता जी ने मुझे कहा कि मै तुम्हें छोड आता हूँ दोपहर को ले आऊँगा। 2-3 कि मी तो गाँव है। क्रमश:

29 September, 2009

दोहरे मापदंड --कहानी
*देख कैसी बेशर्म है? टुकर टुकर जवाब दिये जा रही है।भगवान का शुक्र नहीं करती कि किसी शरीफ आदमी ने इसे ब्याह लिया है। छ: महीने मे ही इसके पर निकल आये हैं। सास को जवाब देने लगी है।* दादी न जाने कब से बुडबुडाये जा रही थी।
*ठीक है दादी,किसी बात की हद होती है! उस बेचारी का क्या दोश?जरा सी बात पर उसकी सास इसके अतीत के गडे मुर्दे उखाडने लगती है।* मुझे दादी की बात पर गुस्सा आ गया था।
* तू चुप रह ।इस पढाई लिखाई ने लडकियों का दिमाग खराब कर दिया है।तभी तो ऐसे हादसे होते हैं! *
* दादी भला ये क्या बात हुई? मै उस से कितना अधिक पढ गयी मगर मेरे साथ तो ऐसा हादसा नहीं हुया है।वो तो बेचारी गाँव की सीधी सादी लडकी थी।ाउरतों की इज्जत से खेलना मर्दों का शुगल है ये आज ही नहीं हुया उगों युगों से होता आया है ।मुझे एक बात बताओ कि उस दिन तुम ने महाभारत की कहानी सुनी थी तो दुर्योधन को कैसे गालियाँ निकाल रही थी। द्रोपती के लिये दुख था तो आज अगर रिचा के साथ हादसा हुया है तो इस के लिये दुख क्यों नहीं? क्यों कि औरत के आधे दुखों का कारन ही औरत है। कोई एक भी औरत उठी रिचा के हक मे ?किसी माँ बहन बेटी ने आवाज़ बुलन्द कि रिचा के साथ दुश्कर्म करने वालों को सजा होनी चाहिये? येहीं तक नहीं बल्कि उस पर कटा़क्ष करने मे सब से आगे औरतें ही हैं। और मर्द तो जैसे ये मान बैठे हैं कि ऐसा तो होता ही रहता है ।*
मै अपनी दादी से बहुत प्यार करती थी उनसे कभी ऊँची आवाज़ मे बात नहीं की थी।बात बात मे उनके गले लगना रूठना,शरारतें करना लाड आये तो उनके हाथ से ही खाना खाना।पर आज मुझे दादी पर गुस्सा आगया था।
* बिन्दू ये तुम्हें क्या हो गया तुम क्यों भरी बैठी हो?मैने तुझे तो कुछ नहीं कहा।* दादी हैरान सी मेरे सिर पर हाथ फेरने लगी।
* दादी मुझे औरत का यही रूप अच्छा नहीं लगता। आपके जमाने और थे ौरतें घुट घुट कर जीना सीख लेती थी़, अत्याचार सह लेती थी, और आने वाली अपनी संतानो को यही सहन करने की शिक्षा देती थी। तब अनपढता थी आज नारी पुरुश के कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है तो क्यों अत्याचार सहे?वो भी समाज के दरिँदों का, बदमाशों के घृणित कुकर्म का?* मैने देखा दादी चुप कर गयी थी।शायद बात के मर्म को जान गयी थी।
* दादी आपने उसे एक बार जवाब देते तो सुन लिया, क्या उस के अन्दर जो लावा जल रहा है उसे कभी देखने, महसूस करने की कोशिश की? ये आज उसका जवाब देना उस लावे का धुँअँ है ।जिसे एक दिन फटना ही था । मैं तो चाहती हूँ कि एक दिन ये फटे ताकि वो जी सके कब तक घुट घुट कर मरती रहेगी उस बात के लिये ताने सुनती रहेगी जो उस ने की ही नहीं?। दादी प्लीज़ उसे जी लेने दो।, अगर कुछ कहना है तो उस की सास को समझाओ कि उस की दुखती रग पर हाथ न रखा करे।उसे अतीत का ताना न दे।* कहते कहते मै रोने लगी थी। और भाग कर अन्दर अपने कमरे मे चली गयी।
रिचा मेरी स्कूल की सहेली थी।वो इस शहर के साथ लगते गाँव रायेपुर से पढने आती थी।शरीफ खानदान से थी। घर अधिक अमीर नही था मगर बच्चों को पढाने के लिये पिता ने काफी मेहनत की। वो पढने मे भी लायक थी। ऊँचे ऊँचे सपने थे उसके। मगर उसके साथ ऐसा खौफनाक हादसा हुया कि सब सपने बिखर गयेपतझड के पत्तों की तरह अब उसे सिर्फ समाज और घर वालों के रहम पर जीना था।
पाँचवीं कक्षा से ही हम दोनो साथ थी दसवीं तक पहुँचते -2 हमारी दोस्ती पक्की हो गयी। एक दूसरे के बिना एक दिन भी दूर रहना अच्छा न लगता था।
उस दिन गर्मियों की छुट्टियाँ हो रही थी। कितने दिन मिलना ना हो सकेगा । उसे मेरी कापी से कुछ नोट्स भी उतारने थे। हम दोनो क्लास रूम मे ही बैठ गयी।15 20 मिनट मे सभी बच्चे जा चुके थे। हम ने भी काम खत्म होते ही अपने बैग सम्भाले और अपने अपने रास्ते चल दी।
उसका गाँव दो तीन कि, मी, की दूरी पर था गाँव वालों के लिये ये रास्ता कोई दूर नहीं था।बच्चे अक्सर पैदल या साईकलों पर ही आते थे।गाँव का स्कूल प्राईमरी तक ही था इस लिये उन्हें शहर के स्कूल आना पडता था।
उस दिम चूँकि हम क्लास्रूम से 15-20 मि, लेट निकली थी तो उस्के गाँव के सब बच्चे जा चुके थे। रोज़ का रास्ता था दिन मे डर की कोई बात नहीं थी।
गर्मी के दिन थे।दोपहर की चिलचिलाती धूप मे रास्ता एकदम सुनसान था। मगर वो रोज़ की तरह बेपरवाह चली जा रही थी। अचानक पीछे सीक गाडी उसके पास आ कर रुकी, इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती गाडी मे से दो हट्टे कट्टे लदके उतरे और उसे गाडी मे धकेल कर अन्दर किया और तीसरे ने गाडी स्टार्त कर दी।
जब छुट्टी से दो तीन घन्टे बाद तक भी वो घर नहीं पहुँची तो उसकी खो शुरू हुई।स्कूल जा कर देखा उसकी सहेलियों और सब जगह पता किया मगर उसका कुछ पता न चला।
घर वालों का घबराहट से बुरा हाल था जितने मुह उतनी बातें।। माँ के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।पिता किसी अनजान शंका से सहम गये थे।भाई इधर उधर मारा मारा फिर रहा था । लोगों को बातें बनाने का अवसर मिल गया था। कहाँ खोजें लडकी की इज़्जते का सवाल था। ेआस पास खबर हुई तो किसी ने सलाह दी कि पुलिस मे जाना चाहिये।मगर उसके पिता इतनी जल्दी कोई फैसला लेना नहीं चाहते थे।--- क्रमश:

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