06 January, 2011

gगज़ल gazal

ये गज़ल दोबारा पोस्ट की पहले एक दो गल्तियाँ थी उन्हें सही करते हुये पोस्ट डिलीट हो गयी कृप्या इसे दोबारा देखें। असुविधा के लिये खेद है।


गज़ल 
देखो उनकी यारी रामा
दुनियाँ है दो धारी रामा

खाली बैठे तोडें कुर्सी
नौकर हैं सरकारी रामा

माँग रहे बेटों की कीमत
रिश्तों के व्यापारी रामा

कैसे कैसे नाच दिखाये
नारी की मत मारी रामा

मजबूरी रिश्ते ढोने की
पिछला कर्जा भारी रामा

सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा

खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा

ऊपर है बाना साधू का
मन मे पर मक्कारी रामा

झूठे रिश्ते झूठे नाते
ये है दुनियादारी रामा

होड लगी है बस दौलत की
होती मारा मारी रामा

दाल दही थाली से गायब
हो गयी चीनी खारी रामा

रोटी कपडों के लाले हैं
लोगों की लाचारी रामा

रिश्वत दे कर सम्मानों की
करते दावेदारी रामा

02 January, 2011

कविता

कविता----- अपनी बात
नया साल आप सब के लिये सुख समृ्द्धि, शान्ति ले कर आये। 7-8 दिन नेट से दूर रही। आज समझ नही आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ। बच्चों के साथ छुट्टियाँ चुटकियों मे बीत गयी,, लगता है जैसे वर्षों बाद ब्लागवुड मे प्रवेश किया है। सर्दी भी बहुत है
 कम्प्यूटर पर बैठना भी एक समस्या से कम नही। पिछले दिनो जितना भी सब ने लिखा पढा नही जा सका। नया साल शुरू होते ही कम्प्यूटर की समस्या शुरू होने से मन परेशान सा हो गया।  एक जनवरी को कुछ नववर्ष की शुभकामनायें ही भेजी थी कि कम्प्यूटर मे वाइरस आ गया।सारा दिन कुछ काम नही हो सका। आज आप सब को नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।चुंकि मेरी तीनो बेटियाँ आपने परिवार समेत आयी थी इस लिये नेट पर आने का सवाल ही नही था। घर मे खूब चहल पहल रही। मै तो अपनी छोटी छोटी प्यारी सी नातिनों /नातिओं के साथ खूब खेली। बहुत अच्छा लगा लेकिन 7-8 दिन कैसे बीत गये पता ही नही चला। सब लोग 30 दि. सुबह चले गये आज घर मे भी सुनसान सा है कुछ लिखने का मन भी नही हो रहा इसलिये नये साल की शुरूआत एक पुरानी कविता से ही करती हूँ।


श्रम-मार्ग
श्रम और आत्मविश्वास का कर लो बस संकल्प
सफलता पाने के लिये नही कोई और विकल्प



जीवन को संघर्ष मान जो चल पडते हैं बाँध कफन,
नहीं डोलते  हार जीत से,नहीं देखते शीत तपन.
न डरते कठिनाईयों से न दुश्मन से घबराते हैं,
वही पाते हैं मंजिल देश का गौरव बन जाते हैं

नन्हीं जलधारा जब अदम्य् साहस दिखलाती है,
चीर पर्वत की छाती वो अपनी राह बनाती है,
बहती धारा डर से रुक जाती तो दुर्गंध फैलाती,
पीने को न जल मिलता कितने रोग फैलाती

नन्हें बीज ने भेदी मिट्टी अपना पाँव जमाया,
पेड बना वो हरा भरा फल फूलों से लहराया.
न करता संघर्ष बीज तो मिट्टी मे मिट्टी बन जाता
कहाँ से मिलता अन्न शाक पर्यावरण कौन बचाता.

कुन्दन बनता सोना जब भट्ठी मे तपाया जाता है,
चमक दिखाता हीरा जब पत्थर से घिसाया जाता है,
श्रम मार्ग के पथिक बनो, अवरोधों से जा टकराओ,
मंजिल पर पहुंचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढ्ते जाओ

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