17 August, 2015

गज़ल

कल की फिलबदी 74 से हासिल गज़ल
बह्र -- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
गज़ल -- निर्मला कपिला


ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से ही यहां धोखा मिला
जब यहां भाई से भाई ही कहीं लुटता मिला

दोस्ती  बेनूर बेमतलव  नही तो क्या कहें
जिस तरह से दोस्ती मे वो जहर भरता मिला

क्या कहें उसकी मुहब्बत की कहानी दोस्तो
रात की थी ख्वाहिशें  तो  चांद  भी जगता मिला

दर्द जो सहला नही पाये मेरे हमदर्द साथी
छेड दी सारी खरोंचें घाव कुछ गहरा मिला

ख्वाहिशें थी चाहतें थी बेडियां और आज़िजी
ज़िन्दगी पर हर तरफ तकदीर का पहरा मिला

जो खुदा के सामने भी सिर झुकाता था नही
मुफ्लिसी मे  हर किसी के सामने झुकता मिला

ख्वाब हों दिन रात हों आवाज़ देता दर्द मुझ को
भूलना जितना भी चाहा और भी ज्यादा मिला

गुणीजनो से सुधार की आपेक्षा है

16 August, 2015

 ब्लाग की दुनिया
 
बहुत सन्नाटा है
बडी खामोशी है
कहां गये वो चहचहाते मंजए
कहां गये वो साथी
जो आवाज दे कर
पुकारते थे कि आओ
सच मे मेरी रूह
अब अपने ही शहर मे
आते हुये कांपती है
क्यों की उसे कदमों की लडखडाहत नही
दिल और कदमों की मजबूती चाहिये
उजडते हुई बस्ती को बसाने के लिये
नया जोश और कुछ वक्त चाहिये 
तो आओ करें एक कोशिश
फिर से इस रूह के शहर को बसाने की
ब्लाग की दुनिया को
 हसी खुशी से
फिर उसी मुकाम पर पहुंचाने की


पोस्ट ई मेल से प्रप्त करें}

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner