अलविदा
आज कल देश मे खास कर ब्लाग जगत मे धर्म के नाम पर हो रहा है उस से मन दुखी है। इसका हमारे बच्चों पर क्या असर होता है क्या वो ये नहीं सोचेंगे कि धर्म हमे जोडता नहीं है बल्कि तोडता है? अगर कोई किसी के धर्म के खिलाफ बोलता है तो वो आपका कुछ नहीं बिगाड रहा बल्कि अपने धर्म की संकीर्णता और कट्टरता का प्रचार कर रहा है जब कि किसी भी धर्म मे दूसरे धर्म के खिलाफ बोलना नहीं लिखा। अगर वो अपने देश{जिस मे कि वो रह रहा है} के खिलाफ कुछ क हता है तो भी दुनिया को अपनी असलियत बता रहा है कि मै जिस थाली मे खाता हूँ उसी मे छेद भी करता हूँ और जिस डाल पर बैठता हूँ उसे ही काट भी देता हूँ।िस लिये उत्तेजित होने की बजाये आप उस ब्लोग को पढना ही छोड दें। जिस को जिस से शिकायत है वो एक दूसरे के ब्लाग पर ही न जाये। कृ्प्या सभी भाई बहनों से निवेदन है कि ब्लागजगत मे हम सब एक परिवार की तरह ही रहें । इस बात को कहने के लिये मैं आज श्री महिन्द्र नेह जी की कविता प्रस्तुत करना चाहती हूँ जो कि कल श्री दिनेश राय दिवेदी जी के ब्लाग पर छपी थी उन्हीं के साभार !
अलविदा
महेन्द्र 'नेह'
धर्म जो आतंक की बिजली गिराता हो
आदमी की लाश पर उत्सव मनाता हो
औरतों-बच्चों को जो जिन्दा जलाता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस वतन से अलविदा
इस आशियाँ से अलविदा
धर्म जो भ्रम की आंधी उड़ाता हो
सिर्फ अंधी आस्थाओं को जगाता हो
जो प्रगति की राह में काँटे बिछाता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस सफर से अलविदा
इस कारवाँ से अलविदा
धर्म जो राजा के दरबारों में पलता हो
धर्म जो सेठों की टकसालों में ढलता हो
धर्म जो हथियार की ताकत पे चलता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस धरा से अलविदा
इस आसमाँ से अलविदा
धर्म जो नफ़रत की दीवारें उठाता हो
आदमी से आदमी को जो लड़ाता हो
जो विषमता को सदा जायज़ बताता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस चमन से अलविदा
इस गुलसिताँ से अलविदा