गज़ल
बेवफाई के नाम लिखती हूँ
आशिकी पर कलाम लिखती हूँ
खत में जब अपना नाम लिखती हूँ
मैं हूँ उसकी जिमाम लिखती हूँ
आँखों का रंग लाल देखूँ तो
उस नज़र को मैं खाम लिखती हूँ
ये मुहब्बत का ही नशा होगा
मैं सुबह को जो शाम लिखती हूँ
फाख्ता होश कौन करता है
जब जमी को भी बाम लिखती हूँ
है बदौलत उसी की ये साँसें
ये खुदा का ही काम लिखती हूँ
जो सदाकत में ज़िंदगी जीए
नाम उसका मैं राम लिखती हूँ
हौसला बा कमाल रखता है
वो नहीं शख्स आम लिखती हूँ
बादशाहत सी ज़िंदगी उसकी
महलों की ताम झाम लिखती हूँ
दोस्त, दुश्मन मेरा है रहबर भी
किस्से उसके तमाम लिखती
बेवफाई के नाम लिखती हूँ
आशिकी पर कलाम लिखती हूँ
खत में जब अपना नाम लिखती हूँ
मैं हूँ उसकी जिमाम लिखती हूँ
आँखों का रंग लाल देखूँ तो
उस नज़र को मैं खाम लिखती हूँ
ये मुहब्बत का ही नशा होगा
मैं सुबह को जो शाम लिखती हूँ
फाख्ता होश कौन करता है
जब जमी को भी बाम लिखती हूँ
है बदौलत उसी की ये साँसें
ये खुदा का ही काम लिखती हूँ
जो सदाकत में ज़िंदगी जीए
नाम उसका मैं राम लिखती हूँ
हौसला बा कमाल रखता है
वो नहीं शख्स आम लिखती हूँ
बादशाहत सी ज़िंदगी उसकी
महलों की ताम झाम लिखती हूँ
दोस्त, दुश्मन मेरा है रहबर भी
किस्से उसके तमाम लिखती