03 February, 2011

हाईकु--haiku

हाईकु

साथ जो छूटा
आसमान से जैसे
तारा हो टूटा

खून पसीना
बहाता है किसान
फिर दे जान?

आँगन मे मेरे
 आया है मधुमास
 लेकर आस ।

अगर देगा
रिश्तों को  तू सम्मान
 पाये सम्मान।

मुंडेर बैठा
 कौआ गीत सुनाये
कोई है आये

प्यार कहाऊँ
 सब की रग रग
में बह जाऊँ
 

 देश बचाओ
अर्जुन बन जाओ
धर्म निभाओ
 

बदरा आओ
धरती है कहती
प्यास बुझाओ

जुल्फ उडाये
पास जब भी आये
प्यास बुझाये

रंग बिरंगी
तितली के पँखों सी
चुनरी सोहे

आहट जो हो
दर पे सोचूँ मै
शायद वो हो

 

 खोल निहारूँ
माज़ी के दरीचों को
तुझे पुकारूँ

अँखो की नमी
पूछती है अक्सर
किसकी कमी?




30 January, 2011

लघु कथा

 पुरुस्कार

राजा-- देखो कैसा जमाना आ गया है सिफारिश से आज कल साहित्य सम्मान मिलते हैं।
 शाम -- वो कैसे?
  हमारे पडोसी ने किसी  महिला पर कुछ कवितायें लिखी। उसे पुरुस्कार मिला।
 उसी महिला पर मैने रचनायें लिखी मुझे कोई पुरुस्कार नही मिला।
तुम्हें कैसे पता है कि जिस महिला पर रचना लिखी वो एक ही महिला है?
राजा--- क्यों कि वो हमारे घर के सामने रहता है ।लान मे बैठ जाता और मेरी पत्नि को देख देख कर कुछ लिखता रहता था। लेकिन मै उसके सामने नही लिखता मैं अन्दर जा कर लिखता था। सब से बडा दुख तो इस बात का है कि मेरी पत्नी उस मंच की अध्यक्ष थी और उसके हाथों से ही पुरुस्कार दिलवाया गया था।
शाम-- अरे यार छोड । तम्हें कैसे पुरुस्कार मिलता क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को। द्दोर के ढोल सुहावने लगते हैं।उसने जरूर भाभी जी की तारीफ की होगी और तुम ने उल्टा सुल्टा लिखा होगा।  फाड कर फेंक दे अपनी कवितायें नही तो कहीं भाभी के हाथ लग गयी तो जूतों का पुरुस्कार मिलेगा।

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