06 June, 2009

Align Centerजहाँ सिर्फ मै हूँ (कविता )

कितनी बेबस हो गयी हूँ
क्यों इतनी लाचार हो गयी हूँ
जब से गया है
वो काट कर् मेरे पँख्
ले गया यशोधा होने का गर्व
जानती हूँ कभी नहीं आयेगा
कभी माँ नहीँ बुलायेगा
फिर भी खींचती रहती हूँ लकीर
जानते हुये कि
नहीं बदला करती तकदीर्
और ढूँढने लगती हूँ उधार के
कुछ और कृ्ष्ण
फिर सहम जाती हूँ
दहल जाती हूँ
कि आखिर कब तक
अपनी तृ्ष्णा को बहकाऊँगी
और जब वो भी खो जायेगा
दुनिया की भीड मे तो
क्या और दुख उठा पाऊँगी
एक दिन उसे ना देख कर
सहम जाती हूँ
दहल जाती हूँ
नहीं नहीं
मुझे इन तृ्ष्णाओं से
दूर जाना है बहुत दूर
और चली जा रही हूँ
अपने अंतस की गहराईयों मे
जहाँ बस मै हूँ
और मेरे जीवन का अंधकार है
कुछ भी तो नहीं उधार


05 June, 2009

पेडों से सीखो (कविता )

वो आदमी से शिकायत नहीं करते
होती हैं उनको भी कुछ परेशानियाँ
मगर आपस मे बाँट लेते हैं जब
सडक के दोनो तरफ मिलती हैं
पेडों की टाहनियाँ
अगर चाहो तो सडक से पूछो
उनके धैर्य की कहानियाँ
देते हैं अपनी छाँव मे
मुसाफिरों को आसरा
फल फूल ताज़गी का
देते हैं वास्ता
ना कोई करे उन को
बे वजह से हानियाँ
रास्ते से पूछो
उन के धैर्य की कहानिया
शाखाओँ मे ले कर जज़वात
कर लेते हैं आपस मे बात
क्या कहे आदमी से
करता है उनसे नादानियाँ
उस रास्ते से पूछो
इन के धैर्य् की कहानिया
तुम और मै ये और वो
सब से वो करते हैं प्यार
फल फूल और धान वो
देते हैं हमे अपार
जलाने को ईँधन देते
करते हैं धरती का शिँगार
बस पतझड मे माँगतेहैं
थोडी सी मेहरबानियाँ
उस रास्ते से पूछो उनके
धैर्य की कहानियाँ

तुम भी फर्ज़ों को जड बना लो
जज़्बातों को टाहनियाँ
प्रेम भाव की छाँव मे
छोड जाओ निशानियाँ


04 June, 2009

क्या कहूँ (कविता )

मेरे प्यार मे ना रही होगी कशिश
जो वो करीब आ ना सके
हम रोते रहे तमाम उम्र
वो इक अश्क बहा ना सके
पत्थर की इबादत तो बहुत की
पर उसे पिघला ना सके
जो उन्हें भी दे सकूँ जीने के लिये
वो एहसास दिला ना सके
बहुत किये यत्न हमने
पर उनको करीब ला ना सके
पिला के जाम कर दो मदहोश मुझे
उस बेदर्दी की याद सता ना सके

03 June, 2009

यह कविता मै पहले भी लिख चुकी हूँ मगर आज ये सिर्फ मै विनिता यशस्वी के लिये विशेष तौर पर लिख रही हूँ1जीवन को एक चुनौती की तरह स्वीकार करो और इन अंधेरों से बाहर आ कर अपनी राहें खुद तलाश करो1फिर देखो जिन्दगी कैसे तुम्हारे कदम चूमती है1ये भी याद रखो कि दुनिया कभी किसी पर रहम नहीं करती बल्कि तुम्हारी कमज़ोरियों का लाभ उठाने से नहीं चूकती1सुख दुख दोनो के बिना जीवन के मर्म को जाना ही नहीं जा सकता !

कुन्दन बनता है सोना जब भट्टी मे तपाया जाता है
चमक दिखाता हीरा जब पत्थर से घिसाया जाता है
श्रममार्ग के पथिक बनो अवरोधों से जा टकराओ
मंजिल पर पहुँचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढते जाओ

बदल जायेगी तकदीर

श्रम और आत्म विश्वास हैं ऐसे संकल्प
मंजिल पाने के लिये नहीं कोई और विकल्प

पौ फटने से पहले का घना अँधेरा
फिर लायेगा इक नया सवेरा
देखो निराशा मे आशा की तस्वीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर

बस दुख मे कभी भी ना घबराना
जीवन के संघर्षों से ना डर जाना
युवा शक्ति पुँज बनो तुम कर्मभूमी के वीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर

नयी सुबह लाने को सूरज को तपना पडता है
धरती कि प्यास बुझाने को बादल को फटना पडता है
मंजिल तक ले जाती है आशा की एक लकीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर्



02 June, 2009

(कविता )

याद आये
फिर देख आये उन गलियों को
कुछ घाव पुराने याद आये

बीते हुये कल के झरोखों से
कुछ ख्वाब सुहाने याद आये

पहले भी ना भूले थे वो कभी
अब रोने के बहाने याद आये

अपने ही घर से बेघर जो किया
अपनो के नज़राने याद आये

उन भूले बिखरे रिश्तों के
दिलखौफ विराने याद आये

दिल मे इक हसरत बाकी है
उन्हें पिछले जमाने याद आये

कभी खून से खून जुदा न हो
फिर मिलने के बहाने याद आये



01 June, 2009

काश्! कि ये मेरी कहानी होती

समीर जी की पोस्ट पढी तो घबरा गयी कि कहीं हमारी पोस्ट भी पहेली तो नहीं बन गयी बस फटा फट खुद ही जवाब देने चले आये 1कहीं समीर जी को भनक लग गयी तो कहीं अपनी पोस्ट ही ना हटानी पड जाये1
कल किसी ने मेरी पिछली पोस्ट् (एक हवा का झोंका( पर् एक सवाल पूछा था कि ये कहानी मेरी कहानी तो नहीं!पढ कर अच्छा लगा पता नहीं क्यों1मगर वो शायद इस कहानी की नायिका को भूल गये कि उसने तो शादी ही नहीं की 1 मेरा भगवन की दया से एक हँसता खेलता परिवार है मेरे पती-तीन बेटियां तीन दामाद दो नाती और एक नातिन1 मेरे मन मे तब एक ख्याल आया कि क्या हर अभिव्यक्ति लेखक की अपनी ज़िन्दगी की होती है 1ागर ऐसा है तो वो इतनी रचनायें लिखता है हर रँग कि हर विषय पर वो केसे लिख लेता है !

मैं किसी की बात नहीं करूँगी अपनी बात पर आती हूँ मेरी अधिकतर रचनायें औरत पर हैं उसकी ज़िन्दगी के हर सुख दुख हर संवेदना पर है क्या मै इतने जीवन एक जनम मे जी सकती हूँ1 मेरे दो कहानी संग्रह छप चुके हैं उनमे तकरीबन् पचास कहानियाँ होंगी तो क्या मेरी हैं1 नहीं न ! लेखक वो लिखता है जो समाज मे रोज़ देखता है1 उसे वो किस नज़र से देखता है वो उसकी अभिव्यक्ति है उसकी अपनी संवेदना है1 कई बार वो जो देखता है उसे उसका रूप सही नहीं लगता उसे वो अपने नज़रिये से एक रूप देता है कि इस भाव को वो कैसे देखना चाहता है बस अपनी रचना मे वो उस भाव की छाप छोडना चाहता है1 उसका लिखना भी तभी सार्थक है अगर उसकी रचना समाज को कोई संदेश देती हो1 जीने का ढंग सिखाती हो1 यूँ तो लेखक कई रचनायें लिखता है लेकिन कालजयी वही रचनायें होती हैंजिनमे वो जीने के मायने देता है1 हम रोज़ देखते हैं कि लोग प्यार पर कितना कुछ लिखते हैं जिसमे काफी तो रोना धोना ही रहता है जो शायद मेरी भी बह्त सी रचनायों मे है वो हर आदमी की कहानी है1 मगर कुछ किरदार आम जीवन से हट कर होते हैं मै बस उन किरदारों की कलपना करती हूँ----दुनियाँ से हट् कर कुछ देखती हूँ समझती हूँ और चाहती हूँ कि समाज ऐसा ही हो मेरे सपनों जेसा !

मैने ऐसे लोग देखे हैं जो भ्रश्टाचार पर डट कर लिखते हैं मगर खुद पैसे के लिये कुछ भी करते हैं1 कुछ लोग जात् पात पर डट कर लिखते हैं जब अपनी बेटी प्रेमविवह दूसरी जाति मे करना चाहती है तो घोर विरोध करते हैं कुछ ऐसे लोग जो प्यार पर लिखते हैं मगर जीवन मे पता नहीं कितने साथी बनाते हैं ऐसे लोग जो मा पर बडी बडी कवितायें लिखते हैं मगर मा को अनाथ आश्रम मे छोड् आते है1प्यार पर बहुत लोग लिखते हैं1 मगर क्या सभी प्यार के सही मायने को जीते हैं1 जीते ना सही हों मगर क्या प्यार के रूप को सही जानते हैं1 मेरा मनना है कि नहीं1ा दिन पर दिन प्यार के मायने बदल रहे हैं1 तो मुझे लगता है कि इन बदलते हुये मूल्यों को आगे बदलने से रोकना चाहिये1 जब ये विचार आया तो ऐसी रचना रच पाना आसान हो गया !

हाँ बहुत सी रचनायं लेखक की अपनी ज़िन्दगी से जुडी हो सकती हैं मगर हर रचना नहीं मेरी कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्हें लिखते हुये मै कई कई दिन रोती रही हूँ1रचना लिखते हुये उसके किरदार को खुद अपनीआस्था और सोच के अनुरूप अपनी कलपनाओं मे जीना पडता है1पाठ्कों के रहन सहन और आज के परिवेश का भी ध्यान रखना पडता है1 इस लिये मैने इसमे ब्लोग्गिं का जिक्र किया है1 प्रश्न करता को तभी पता चल सकता है अगर वो लेखक् को व्यक्तिगत रूप से जानता है1 या फिर कहानी विधा को जानता है1 1इस रचना के लिये मै इतना कह सकती हूँ काश! कि मुझे ये किरदार जीने का अवसर मिल पाता और मै शान से कह सकती कि हाँ ये मेरी कहानी है !

31 May, 2009

हवा का झोंका - कहानी
(गताँक से आगे)

--- आज मै तुम्हें बताऊँगी की मै कैसे अब् तक तुम से इतना प्यार करती रही हूँ एक पल भी कभी तुम्हें अपने से दूर नहीं पाया---जानते हो----------


जब भी खिडकी से कोई हवा का झौका आता है मै आँखें बँद कर लेती हूँ और महसूस करती हूँ कि ये झोंका तुम्हें छू कर आया है-----तुम्हारी साँसों की खुशबु साथ लया हैऔर मै भावविभोर हो जाती हूँ-----मेरे रोम रोम मे एक प्यारा सा एहसास होता है----कभी कभी इस झोंके मे कवल मिट्टी की सोंधी सी खुशबू होती है मै जान जती हूँ आज तुम घर पे नहीं हो कई बार इसमे तुम्हारी बगीची के गुलाब की महक होती है----मेरे होठों पर फूल सी मुस्कराह्ट खिल उठती है और अचानक मेरा हाथ अपने बालों पर चला जाता है जहाँ तुम अपने हाथ से इसे लगाया करते थे------फिर मुझे एह्सास होता कि तुम मेरे पास खडे हो-----तुम्हारा स्पर्श अपने कन्धे पर मेह्सूस करती--------इसी अनुभूति का आनन्द महसूस करने के लिये अपना हाथ चारपाई पर पडी अपनी माँ के माथे पर रख देती हूँ-------माँ की बँद आँखों मे भी मुझे सँतुश्टि और सुरक्षा का भाव दिखाई देता है------यही तो प्यार है-------जिसे हम एक जिस्म से बाँध दें तो वो अपनी महक खो देता है-----और अपँग भाई के चेहरे को सहलाती हूँ तो उसके चेहरे पर कुछ ऐसे भाव तैर उठते हैँ जो तुम्हारे होने से मेरे मन मे तैरते थे---------सच कहूँ तो तुम से प्यार करके मैने जीना सीखा है-----------मै तुम से शादी कर के इस प्यार के एहसास को खोना नहीं चाहती थी---तुम अपने माँ बाप के इकलौते बेटे थे वो कभी नहीं चाहते कि मै अपनी बिमार माँ और अपंग भाई का बोझ ले कर उनके घर आऊँ-----तुम्हें ले कर उनके भी कुछ सपने थे--------इला के जाने का गम अभी वो भूल नहीं पाये थे---------इस लिये मै चुपचाप दूसरे शहर चली आयी थी बिना तुम्हें बताये--------हम दोनो को कोई हक नहीं था कि हम उन लोगों के सपनो की राख पर अपना महल बनायें जिन से इस दुनिया मे हमारा वज़ूद है फिर प्यार तो बाँटने से बढता है---------हर दिन इन झोंकों के माध्यम से मै तुम्हारे साथ रहती हूँ---------मैने शादी नहीं की क्यों कि मै अपने प्यार के साथ जीना चाहती हूँ----------सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ---------इसे किसी जिस्म से बाँधना नहीं चाहती ------मै तो तुम्हारे एक एक पल का हिसाब जानती हूँ-----क्यों कि मेरी रूह ने मन की आँखो से तुम्हें मह्सूस किया है

मै अब भी महसूस कर सकती हूँ कि मेरी मेल् पढ कर तुम्हारी आँखोँ मे फिर वही चमक लौट आयेगी-------और इस मेल मे तुम्हें अपनी कविता------जो कविता ना रह कर शिकायत का पुलन्दा बन गयी थी मिल जायेगी-------तुम्हारी आँखों मे आँसू का कतरा मुझे यहाँ भी दिखाई दे रहा है--------फिर तुम कई बार मेरी मेल पढोगे------बार बार------ मुझे छू कर आया हवा का एक झोंका तुम्हें प्यार की महक दे जायेगा---- आँख बंद करके देखो महसूस करो-----मै तुम्हारे आस पास मिलूँगी-------मेरा प्यार तुम्हारी आत्मा तक उतर जायेगा--------अब तुम्हारे चेहरे पर जो सकून होगा उसे भी देख रही हूँ मन की आँखों से------ बस यही प्यार है--------यही वो एहसास है जो अमर है शाश्वत है------इसके बाद तुम एक कविता लिखने बैठ जाओगे मुझे पता है कि कविता वही जीवित रहती है जिसे महसूस कर जी कर लिखा जाये-------ये अमर कविता होगी
लिख कर नहीं जीना तुम्हें जी कर लिखना है--------इन झोंकों को जी कर -------देखना ये आज के पल हमारे प्यार के अमर पल बन जायेंगे--------चलो जीवन सँध्या मे इन पलों को रूह से जी लें-----जो कभी मरती नहीं है-------
देख तुम्हारा चेहरा केसे खिल उठा है जैसे मन से कोई बोझ उतर गया हो---------घर जाने को बेताब -------देखा ना इस हवा के झोंके को --------बस यही हओ प्यार--------जीवन को हँसते हुये गाते हुये इस के हर पल को हर रंग को खुशी से जीना------

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