03 August, 2018

 गज़ल

रहे बरकत बुज़ुर्गों से घरों की
हिफाजत तो करो इन बरगदों की

खड़ेगा सच भरे बाजार में अब
नहीं परवाह उसको पत्थरों की

रहे चुप हुस्न के बढ़ते गुमां पर
रही साजिश ये कैसी आइनों की

ये  दिल के दर्द है जागीर मेरी
भरी संदूकची उन हासिलों की

मुहब्बत में मिले दुःख दर्द जो भी ।
भरी झोली सभी उन हासिलों की

न चोरों की हो'सरदारी अगर तो
बचे पाकीज़गी इन कुर्सियों की

न हम खोते कभी ईमान अपना
भले होली जले कुछ ख्वाहिशों की

पोस्ट ई मेल से प्रप्त करें}

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner