24 June, 2010

कर्ज़दार्

कर्ज़दार अगली कडी 3


अपने पति की मौत के बाद कितने कष्ट उठा कर बच्चों को पढाया प्रभात की शादी मीरा से होने के बाद प्रभात ने सोचा कि अब माँ के कन्धे से जिम्मेदारियों का बोझ उतारना चाहिये। इस लिये उसने अपनी पत्नि को घर चलाने के लिये कहा और अपनी तन्ख्वाह उसे दे दी। मगर माँ के विरोध करने पर तन्ख्वाह पत्नि से ले कर माँ को दे दी । बस यहीँ से सास बहु के रिश्ते मे दरार का सूत्रपात हो चुका था। अब छोटी बातें भी मन मुटाव के कारण बडी लगने लगी थी।-- अब आगे पढें------

छोटी छोटी बातों से घर मे कडुवाहत सी पसरने लगी। कभी खाने पीने को ले कर कभी घर के रख रखाव पर तो कभी मीरा के जेब खर्च और कपडों आदि पर खर्च को ले कर। नौकरी से पहले मीरा ने कभी नये कपडों की जिद्द नही की क्यों कि घर मे रहती थी और शादी के अभी बहुत कपडे थी मगर अब नौकरी करती थी रोज उसे बाहर जाना पडता तो ढंग के कपडे पहनने पडते फिर उसे ये भी था कि अगर वो कमाती है तो क्या अपनी मर्जी के कपडे भी नही पहन सकती? उसकी देखा देखी ननद भी जिद्द पर उतर आती। कभी मायके जाने को कहती तो झगडा। कभी मायके मे शादी व्याह पर किये जाने वाले खर्च को ले कर झगडा। मतलव कुछ न कुछ घर मे चलता ही रहता।
 मीरा प्रभात से शिकायत करती मगर मीरा के सही होने पर भी प्रभात माँ को कुछ नही कह पाता। जब कभी रोज़ रोज़ के झगडे से तंग आ जाता तो मीरा को ही डाँट देता। प्रभात की असमर्थता, घर का काम दफ्तर की चिन्तायें इन सब से मीरा चिडचिडी सी हो गयीसोचती कल को बच्चा होगा तो कैसे सब कुछ सम्भाल पायेगी? प्रभात से भी अधिक सहयोग की आशा नही थी घर मे पहले ही उसे जोरू का गुलाम समझा जाता था कि उसी ने मीरा को सिर चढा रखा है।फिजूल खर्ची करती है आदि। सब से अधिक बात जो उसे कचोटती वो सास का ताना ---- दो साल से उपर हो गये शादी को मगर अभी तक मुझे पोटा नही दे पाई।---
एक दिन सास ने फिर यही ताना दे दिया --
"बहु दो साल हो गये अभी कुछ नही हुया आपनी जाँच करवाओ।"
"माँ जी पहले अपने बेटे की जाँच करवायें"आक्रोश से  मीरा की जुबान भी चल निकली।
रात प्रभात घर आया  तो माँ ने खूब नमक मिर्च लगा कर उसे सारी बात बताई।
प्रभात ने मीरा की पूरी बात सुने बिना मीरा को माँ के सामने ही  डाँट दिया।
" तुम मा का अनादर करो या उनके साथ बहस करो ये मै कभी भी बर्दाश्त नही कर सकता।" तुम्हें पता नही माँ ने हमे किन मुसीबतों से पाला है।"पर प्रभात इसका खामियाजा क्या मुझे ही भुगतना पडेगा? तुम मेरी बात सुने बिना ही क्यों मुझे डाँटने लगते हो? आखिर कब तक मै ये बर्दाश्त करती रहूँगी? मेरे माँ बाप ने भी मुझे इसी तरह पाला है। तो क्या वो मुझ से कोई प्रतिकार माँगते हैं । तुम्हें कितना प्यार देते हैं क्या उन्हों ने कभी कुछ कहा है तुम्हें जबकि तुम उनके कई महत्वपूर्ण समारोहों मे भी शामिल नही हुये, मेरी बहन के विवाह पर दो घन्टे के लिये आये थे। क्या सब फर्ज  लडकी के लिये है? फिर भी मैने हर कोशिश की है इस घर को चलाने के लिये मगर मुझे आज तक तुम्हारी माँ ने अपनी बेटी की तरह नही समझा। हद हो चुकी है। अब इस तरह मै और नहीं जी सकती---  माँ के सामने माँ के दोश पर भी उसे ही डाँटा गया बस यही उसे सहन नही हुया।
"देखो मै रोज़ की इस किच किच से तंग आ चुका हूँ। अगर तुम मेरी माँ और बहन से एडजस्ट नही कर सकती तो अपने मायके चली जाओ।"
प्रभात ने ना चाहते हुये भी कह दिया। वो जानता था कि इसमे इतना दोश मीरा का नही । माँ को ऐसी कडवी बात इस तरह नही कहनी चाहिये थी मगर वो माँ के आगे बोल नही सका। उसे दुख हुया वो रात भर सो नही पाया मीराको मनाना चाहता था मगर उसे पता था कि वो पनी इस ज्यादती का क्या जवाब देगा।---- क्या माँ को समझाये? मगर नही माँ तो मीरा से भी अधिक गुस्सा करेगी वो माँ को भी दुखी नहीं करना चाहता था।। माँ और पत्नि एक नदी के दो किनारे थे और वो इन दोनो के बीच एक सेतु था मगर ममता की डोरियों से बन्धा।------ क्रमश:


21 June, 2010

चटकों का एक सच ये भी है।

चटकों का एक सच ये भी है
अज मुझे अपनी कहानी बीच मे छोद कर ये पोस्ट डालनी पडी। जो मेरी आत्मा को कई दिन से मथ रही थी। जब से मुझे अपनी गलती का एहसास हुया तब से। मगर इस गलती को मै एक ही पोस्ट  मे कई बार नही कर सकती थी, तो क्या मेरे जैसी गलतियाँ करने वाले और लोग भी नही हो सकते ब्लागजगत मे?
आज कल चट्कों टिप्पणियों को लेकर कई ब्लाग्ज़ पर जोरदार चर्चा चल रही है। और हर बात के लिये ब्लागवाणी को दोश दिया जा रहा है। लेकिन हर वो सच सच नही होता जो दिखाई देता है। मै इसमे ब्लागवाणी की वकालत नही कर रही लेकिन । मुझे नही पता कि सच क्या है। लेकिन आज एक बात सब को बताना चाहती हूँ पसंद ना पसंद को ले कर चाहती तो चुप भी रहती लेकिन मुझे लगता है मेरी इस पोस्ट से सब को सच समझने मे कुछ सहायता मिल सकती है।
जब मै नई आयी थी तो मुझे कम्पयूटर की बिल कुल भी जानकारी नही थी अब भी नही है लेकिन फिर भी काम चला लेती हूँ। लगभग कोई पोस्ट पढ कर एक साल बाद मुझे पता चला कि लोग पसंद पर चटका क्यों लगाते हैं । तब से मैने भी कई लोगों की पोस्ट पर चटके लगाने शुरू कर दिये। फिर शायद ब्लागवाणी मे कुछ परिवर्तन हुया या मैने ही ध्यान नही दिया कि नापसन्द के भी चतके होते हैं । मै कम्प्यूटर पर वो काम नही करती जिस के बारे मे पता ना हो
 नीचे जो इन सब के लिये चिन्ह होते हैं उन्हें कभी देखने की कोशिश नही की। लेकिन पसंद पर चटका लगा देती। एक दिन किसी की पोस्ट पर एक चटका लगाया तो अँकडा नही बदला फिर मैने उपर के एरो पर लगाया फिर भी आँकडा नही बदला फिर मैने उपर नीचे कई चटके लगाये मगर वो आँकडा नही बदला । मै उसे छोड कर अगले ब्लाग पर गयी। जब कुछ देर बाद फिर पीछे मुडी तो देखा कि वहाँ आँकडा बदला हुया था। तभी मैने नीचे के चिन्ह भी क्लिक किये तो वहाँ देखा पसंद और ना पसंद के चिन्ह थे। फिर मुझे अपनी गलती का एहसास हुया कि शायद मैने नापसंद पर चटका तो नही लगा दिया। अब आप इसे मेरी नालायकी कह सकते हैं मगर मुझे अपनी गलती मानने मे कोई संकोच नही। अगर इस गलती की वजह से किसी का दिल दुखा हो तो माफी चाहती हूँ। हो  सकता है मेरी नासमझी से पहले भी कभी ऐसा हुया हो। अगर ये बवाल ना होता तो शायद अभी भी मुझे ये सब पता न चलता और ना कुछ सीखने का अवसर मिलता। कहते हैं न जो होता है अच्छे के लिये होता है। अगर मेरी नालायकी या भूलवश किसी के ब्लाग पर नापसंद का चटका लग गया हो तो माफी चाहती हूँ।
इस बात से क्या आपको नही लगता कि मेरे जैसे अनजान लोग और भी इस ब्लागजगत मे हो सकते हैं? या इस के इलावा शरारती तत्व किसी को भडकाने के लिये ऐसा कर सकते हैं? कौन किस के कन्धे पर बन्दूक चला रहा है? इस सारे सच पर सब को आत्म मन्थन करना चाहिये। आप कैसा लिखते हैं ये सभी जानते हैं फिर पसंद ना पसंद क्या मायने रखती है?इस बात पर बवाल मचाने की क्या बात है। एक दिन मेरी कहानी पर 4 चटके लगे थे पसंद के मुझे नही पता कौन मेरे शुभचिन्तक हैं मगर उस दिन भी मेरी पोस्ट ब्लागवानी की पसंद लिस्ट मे नही थी। कुछ भी कारण हो सकता है, मगर बिना सच जाने किसी को दोश देना कहाँ की समझदारी है? फिर मेरे जैसे लोगों ने तो अपनी सृजन यात्रा ही ब्लागवाणी से शुरू की है इसके आँचल मे ही अपनी आँखें खोल कर नई दुनिया मे प्रवेश किया।
 इस लिये सभी से एक निवेदन है कि हर दोश ब्लागवाणी पर थोपने से पहले सच जान लें। मेरे जैसे सच और भी हो सकते हैं।
 ब्लागवाणी आपसे अपनी सेवा के बदले कुछ लेती नही है। हम जैसे तकनीक से अनजान लोगों के लिये सब से आसान और अच्छा साधन है। कम से कम जो लोग ब्लागवाणी से जुडे रहना चाहते हैं उन पर रहम खाईये। अगर और कोई ब्लागवाणी की जगह लेना चाहता है तो उनकी तरह निश्काम भाव से काम कर के दिखाये उसका भी स्वागत होगा, मगर ब्लागजग्त का माहौल खराब कर के नहीं। और ब्लागवाणी को इन शरारती तत्वों की बातों मे आने की जरूरत नही । हम जैसे लोगों के जज़्बात का भी ध्यान रखें और जल्दी से जल्दी ब्लागवाणी शुरू करें। ये मैथिली जी और सिरिल जी से विनती है कि इन छोटी छोटी बातों पर गौर मत करें हिन्दी के उत्थान जैसे महाँ यग्य मे उनकी आहूति को कौन नही जानता फिर महानता किसी के दोश देखने मे नही उन्हें माफ करने मे या नज़र अन्दाज़ करने मे है।

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