कर्ज़दार अगली कडी 3
अपने पति की मौत के बाद कितने कष्ट उठा कर बच्चों को पढाया प्रभात की शादी मीरा से होने के बाद प्रभात ने सोचा कि अब माँ के कन्धे से जिम्मेदारियों का बोझ उतारना चाहिये। इस लिये उसने अपनी पत्नि को घर चलाने के लिये कहा और अपनी तन्ख्वाह उसे दे दी। मगर माँ के विरोध करने पर तन्ख्वाह पत्नि से ले कर माँ को दे दी । बस यहीँ से सास बहु के रिश्ते मे दरार का सूत्रपात हो चुका था। अब छोटी बातें भी मन मुटाव के कारण बडी लगने लगी थी।-- अब आगे पढें------
छोटी छोटी बातों से घर मे कडुवाहत सी पसरने लगी। कभी खाने पीने को ले कर कभी घर के रख रखाव पर तो कभी मीरा के जेब खर्च और कपडों आदि पर खर्च को ले कर। नौकरी से पहले मीरा ने कभी नये कपडों की जिद्द नही की क्यों कि घर मे रहती थी और शादी के अभी बहुत कपडे थी मगर अब नौकरी करती थी रोज उसे बाहर जाना पडता तो ढंग के कपडे पहनने पडते फिर उसे ये भी था कि अगर वो कमाती है तो क्या अपनी मर्जी के कपडे भी नही पहन सकती? उसकी देखा देखी ननद भी जिद्द पर उतर आती। कभी मायके जाने को कहती तो झगडा। कभी मायके मे शादी व्याह पर किये जाने वाले खर्च को ले कर झगडा। मतलव कुछ न कुछ घर मे चलता ही रहता।
मीरा प्रभात से शिकायत करती मगर मीरा के सही होने पर भी प्रभात माँ को कुछ नही कह पाता। जब कभी रोज़ रोज़ के झगडे से तंग आ जाता तो मीरा को ही डाँट देता। प्रभात की असमर्थता, घर का काम दफ्तर की चिन्तायें इन सब से मीरा चिडचिडी सी हो गयीसोचती कल को बच्चा होगा तो कैसे सब कुछ सम्भाल पायेगी? प्रभात से भी अधिक सहयोग की आशा नही थी घर मे पहले ही उसे जोरू का गुलाम समझा जाता था कि उसी ने मीरा को सिर चढा रखा है।फिजूल खर्ची करती है आदि। सब से अधिक बात जो उसे कचोटती वो सास का ताना ---- दो साल से उपर हो गये शादी को मगर अभी तक मुझे पोटा नही दे पाई।---
एक दिन सास ने फिर यही ताना दे दिया --
"बहु दो साल हो गये अभी कुछ नही हुया आपनी जाँच करवाओ।"
"माँ जी पहले अपने बेटे की जाँच करवायें"आक्रोश से मीरा की जुबान भी चल निकली।
रात प्रभात घर आया तो माँ ने खूब नमक मिर्च लगा कर उसे सारी बात बताई।
प्रभात ने मीरा की पूरी बात सुने बिना मीरा को माँ के सामने ही डाँट दिया।
" तुम मा का अनादर करो या उनके साथ बहस करो ये मै कभी भी बर्दाश्त नही कर सकता।" तुम्हें पता नही माँ ने हमे किन मुसीबतों से पाला है।"पर प्रभात इसका खामियाजा क्या मुझे ही भुगतना पडेगा? तुम मेरी बात सुने बिना ही क्यों मुझे डाँटने लगते हो? आखिर कब तक मै ये बर्दाश्त करती रहूँगी? मेरे माँ बाप ने भी मुझे इसी तरह पाला है। तो क्या वो मुझ से कोई प्रतिकार माँगते हैं । तुम्हें कितना प्यार देते हैं क्या उन्हों ने कभी कुछ कहा है तुम्हें जबकि तुम उनके कई महत्वपूर्ण समारोहों मे भी शामिल नही हुये, मेरी बहन के विवाह पर दो घन्टे के लिये आये थे। क्या सब फर्ज लडकी के लिये है? फिर भी मैने हर कोशिश की है इस घर को चलाने के लिये मगर मुझे आज तक तुम्हारी माँ ने अपनी बेटी की तरह नही समझा। हद हो चुकी है। अब इस तरह मै और नहीं जी सकती--- माँ के सामने माँ के दोश पर भी उसे ही डाँटा गया बस यही उसे सहन नही हुया।
"देखो मै रोज़ की इस किच किच से तंग आ चुका हूँ। अगर तुम मेरी माँ और बहन से एडजस्ट नही कर सकती तो अपने मायके चली जाओ।"
प्रभात ने ना चाहते हुये भी कह दिया। वो जानता था कि इसमे इतना दोश मीरा का नही । माँ को ऐसी कडवी बात इस तरह नही कहनी चाहिये थी मगर वो माँ के आगे बोल नही सका। उसे दुख हुया वो रात भर सो नही पाया मीराको मनाना चाहता था मगर उसे पता था कि वो पनी इस ज्यादती का क्या जवाब देगा।---- क्या माँ को समझाये? मगर नही माँ तो मीरा से भी अधिक गुस्सा करेगी वो माँ को भी दुखी नहीं करना चाहता था।। माँ और पत्नि एक नदी के दो किनारे थे और वो इन दोनो के बीच एक सेतु था मगर ममता की डोरियों से बन्धा।------ क्रमश:
32 comments:
सहज लय की कहानी। अच्छी लगी।
संशोधन :
पत्नि - पत्नी
बहु - बहू
कडुवाहत - कड़वाहट
शादी के अभी बहुत कपडे थी - शादी वाले कपड़े अभी बचे थे
पोटा - पोता
हुया - हुआ
मा - माँ
दोश - दोष
ना - न
पनी - अपनी
विराम चिह्नों के प्रयोग भी अपेक्षित हैं।
बढ़िया प्रवाह और बांधा कथा ने..जारी रहें..
गिरिजेश जी, त्रुटियों को सुधारने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। आशा है आगे भी मार्गदर्शन करते रहेंगे।वैसे भी इस ब्लाग पर आपकी पहली टिप्पणी से ही आँखें खोली। बहुत बहुत धन्यवाद।
हीलने का भी समय नहीं...एक दम बांध कर रखा...बाकि udan Tashtari जी ने कह दिया है
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
कहानी अपने बहाव में जा रही है 'तेजी' से।
Aisa lagta hai,padhte hue,maano apne aaspaas yah ghat raha hai..use aap shabdon ka jama pahna raheen hain..!
साधा हुआ. समां बाँध दी. क्रमशः प्रतीक्षा रहेगी.
दो पाटों के बीच मे फ़ँस गया है ………………देखते है आगे क्या होता है।
कहानी का प्रवाह शानदार है ..अब आगे देखें .
एक बेटे की विवशता को बहुत अच्छी तरह दर्शाया है....अगली कड़ी का इंतज़ार
कहानी बाँध कर रखती है .. वैसे हर घर की कहानी है .. आपने काग़ज़ पर उतार कर आँखें खोलने की कोशिश करी है...
ओह...सचमुच पुरुष बेचारा माँ और पत्नी के बीच ऐसे फंस जाता है कि दोनों तरफ से पिसना उसे ही पड़ता है...
आँखें खोलने वाली बहुत ही सार्थक कथा....अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी..
लगता है कहानी के पात्र पास-पडोस के ही है!... कहानी में एकरसता है...जो बांध कर रख्नने में सक्षम है!
पहली किस्त के बाद मां के पात्र में बदलाव सा महसूस हो रहा है । अब वह टिपिकल लो मिडल क्लास मेंटेलिटी दिखा रही है । अक्सर ऐसा ही होता था । लेकिन अब बड़े बड़े शहरों में सब कुछ बदल गया है ।
आगे क्या होता है , देखते हैं ।
मन को छू जाने वाले भाव।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
pati ke mann ki kashmakash , mira ke mann ki aashayein,kahani ekdam bandh ke rakhti hai,aage intazar hai..
कथा बहुत ही बढ़िया है!
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अगली कड़ी का इन्तजार है!
आपकी कहानी में इतना सजीव वर्णन है कि लगता है कोई फिल्म देख रहे हैं ! बहुत सहज प्रवाह के साथ आगे बढ़ रही है अगली कड़ी का उत्सुकता से इंतज़ार है ! जल्दी ही ब्लॉग पर डालियेगा ! आशा है आप पूर्णत: स्वस्थ होंगी !
बहुत सुंदर, लेकिन मर्द थोडी समझ दारी दिखाये तो यही पुल दोनो को मिलाने का काम कर सकता है, देखे आगे क्या होता है, लेकिन जो भी होगा शुभ नही दिखता
रोचक। अगली कड़ी की प्रतीक्षा।
हर घर यही कहता है .. मेरे से अगले वाले घर की यही कहानी है ...
बहुत से घरों की कहानी ।
अच्छी कहानी।
लेकिन मर्द थोडी समझ दारी दिखाये तो यही पुल दोनो को मिलाने का काम कर सकता है,
Raj Bhatia ji ki baat se sehmat hun.
रोचक कहानी ....अगली कड़ी की प्रतीक्षा।
aunty ji me lagatar padh rahi hu. aapki kahani ruchikar hoti ja rahi he.
दोधारी तलवार के बीच झूलती बेटे की ज़िंदगी की कहानी ..... आगे की कड़ी का इंतज़ार है
इस कहानी के माध्यम से पत्नि और माता के बीच में फँसे पुरूष की बेचारगी को बहुत अच्छे से रेखांकित किया आपने..अगली कडी की प्रतीक्षा.
घर घर की कहानी अब र्निमला जी की जुबानी
'माँ और पत्नि एक नदी के दो किनारे थे और वो इन दोनो के बीच एक सेतु था मगर ममता की डोरियों से बन्धा।'
- जिस पुरुष ने माँ और पत्नी के बीच संतुलन बना लिया वही सफल गृहस्थ जीवन जी सकता है.
बहुत ही सजीव प्रस्तुति, जीवन के सच्चाई से ओतप्रोत, अगली कड़ी की प्रतीक्षा में ।
patron ke man ke antardwad ko aur adhik vistar dijiye aanand aa jayega iske ant ka intzar rahega. visheshkar prabhat kaise halat ka samna karega. abhi tak kahani rochak hai.
निर्मलाजी, बहुत संपन्न ब्लाग. मैं अपने ब्लग पर आप को रख रहा हूँ ताकि जब चाहूं, पढ सकूं.
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