17 January, 2009


आज महफिल में सुनने सुनाने आयेंगे लोग
समाज के चेहरे से नकाब ऊठाने आएंगे लोग
बीते जमाने के सब लगते हैं अफसाने
नये जमाने की हकीकत बताने आयेंगे लोग
किसी की मौत पे रोना गुजरे दिनों की बात है
अब दिखावे को मातम मनाने आयेंगे लोग
घर की आग से धुआं उठने ना देना कभी
नहींतो आग को हवा दिखाने आयेंगे लोग
डर के भागना बुजदिली है दोस्तो
जितना डरोगे उतना डराने आयेंगे लोग
सच बोलना है तो हिम्मत से काम लेना
जख्मी सांप की तरह बल दिखाने आयेंगे लोग
कौन किसी की आंख से आंसू पोंछना चाहे
किसी का दुख देख अपना दिल परचाने आयेंगे लोग
दोस्ती के नकाब में छुपे हैं आज दुश्मन
पहले जख्म देंगे फिर सहलाने आयंगे लोग
जिन नेताओं को देते हैं गालियां
अन के बुत पर फूल चढाने आयेंगे लोग
जीते जी मां-बाप को रूखी रोटी न दें
पुर्खों के नाम पे पंडितों को खीर खिलाने आएंगे लोग् !!



सरहद पर दुश्मन फुंकार रहा है
भारत को ललकार रहा है
सत्य अहिंसा माने ना वो
मानवता को जाने ना वो
अमरीका की खैरात पे जीना
फिर बेशर्मि से ताने सीना
बच्चे बूढे जवान उठो
झाँसी की संतान उठो
कह गये अपने बडे सयाने
लातों के भूत बातोंसे ना माने
जब गीदड भागे शेर की ओर
कौआ चले हंस की तोर
अंत समय आया समझो
करनी का फल पाया सम्झो
उसे दूध छठी का याद दिलाओ
उसको उसकी औकात बताओ
कर दो उसका बंटाधार
विपद पडे ना बारम्बार
माँ के दूध का कर्ज चुकाओ
अपना दम खम उसे दिखाओ
युवाशक्तिपुंज तुम से है आशा
पूर्ण करो भारत माँ की अभिलाषा
पाक पर तिरंगा फहरा दो तुम
फिर् इक इतिहास बना दो तुम् !!


15 January, 2009




मनुष्य़ जब चाँद पर जायेगा
मनुष्य चाँद पर रहने जयेगा ?
धरती को सहेज पाया नहीं
चाँद पर क्या गुल खिलायेगा
ऐसा नहीं कि मुझे चाँद से
इश्क नही
मगर सच कहने में भी
हिचक नहीं कि
जब मनुष्य चाँद पर
नयी दुनिया आबाद करेगा
तब इसं अंधी दौड मे
धरती को बर्बाद करेगा
नंगे भूखों की सीढी बना
उनके पैसों स राकेट् बना
चाँद पर चढ जायेगा
उनके घर की इँटों से
अपना महल बनायेगा
फिर दुनिआ भर के बैंक
चाँद पर ले जायेगा
दो नम्बर का सारा पैसा
वहीं जमा करवायेगा
चाँद का टिकेट मिलेगा
नेताजी या सरमायेदारों को
खबरिया चैनल वालों का
वीज़ा जब्त हो जायेगा
आमआदमी चाँद से फैंकी
बासी रोटी खायेगा
विवाह शादी के मसले पर
ऐसे कानून बनायेगा
बीवी रहेगी धरती पर
प्रेमिका चाँद पर ले जायेगा
मनुष्य जब चाँद पर जायेगा !!


14 January, 2009



किन्हीं विरान खन्ढरों में तलाश खुद को
इस आबाद गुलशन में तेरी जरूरत नहीं
जो भूल जाते हैं रास्ता अपनी मंजिल का
उनके बसने की फिर कोई सूरत नहीं
वादा कर के मुकर जाते हैं अक्सर जो
उन में ईमान ढूंढ्ने की जरूरत नहीं
जिस बुत में तलाश है तुझे जिन्दगी की
वो पत्थेर है जज़्बातों की मूरत् नही
सिगरेट समझ जो फूँक देते हैं जज़्बात
उनमें जिन्दा इन्सानों की गरूरत नहीं
जब वज़ूद ही ना रहे तो जिन्दगी की तलाश क्यों
जीकर भी है मरा हुआ मौत ढंढने की जरूरत नही

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