17 January, 2009


सरहद पर दुश्मन फुंकार रहा है
भारत को ललकार रहा है
सत्य अहिंसा माने ना वो
मानवता को जाने ना वो
अमरीका की खैरात पे जीना
फिर बेशर्मि से ताने सीना
बच्चे बूढे जवान उठो
झाँसी की संतान उठो
कह गये अपने बडे सयाने
लातों के भूत बातोंसे ना माने
जब गीदड भागे शेर की ओर
कौआ चले हंस की तोर
अंत समय आया समझो
करनी का फल पाया सम्झो
उसे दूध छठी का याद दिलाओ
उसको उसकी औकात बताओ
कर दो उसका बंटाधार
विपद पडे ना बारम्बार
माँ के दूध का कर्ज चुकाओ
अपना दम खम उसे दिखाओ
युवाशक्तिपुंज तुम से है आशा
पूर्ण करो भारत माँ की अभिलाषा
पाक पर तिरंगा फहरा दो तुम
फिर् इक इतिहास बना दो तुम् !!


8 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

इस युद्धोन्माद की क्या कीमत चुकानी पड़ेगी कभी सोचा है आपने? असहमति के लिये क्षमा चाहूंगा।

Smart Indian said...

पूर्ण करो भारत माँ की अभिलाषा
ओजस्वी कविता है, बधाई!

Vinay said...

बाहुत अच्छा व सुन्दर लिखा है आपने


---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

mamta said...

देश प्रेम से भरपूर कविता है ।

Anonymous said...

sunder kavita

संगीता पुरी said...

बहुत हिम्‍मत है आपमें.....इस कविता में झलकता है।

Udan Tashtari said...

ओजस्वी अभिव्यक्ति!!!! कीमत तो अभी भी कम नहीं चुका रहे मगर किश्तों में..तो दर्द का अहसास कम है पर ब्याज??

Girish Kumar Billore said...

Nirmalaa ji
aapakaa aabhar jo aap fursat men thee tipiyane ka shukriyaa

पोस्ट ई मेल से प्रप्त करें}

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