08 July, 2016


गज़ल

रेत हाथों से फिसलने मे भी लगता वक्त कितना
ज़िन्दगी को यूं सिमटने मे भी लगता वक्त कितना

चाहतों की बेडिओं मे उम्र भर  जकडे  रहोगे   ?
बेवफा  रिश्ते  बदलने मे भी लगता वक्त कितना

चाँदनी रातों के साये  मे है जुग्नू छटपटाता
सुख के आने गम छिटकने मे भी लगता वक्त कितना

चाह जन्नत की तुझे है गर  खुदा को याद तो कर
बोल रब का नाम जपने मे भी लगता वक्त कितना

जेब मे रखती हूँ ख्वाहिश लोगों को भी क्यों दिखाऊँ?
उनकी  नजरों को दहकने मे भी लगता वक्त कितना

हुस्न पे क्या नाज , चुटकी मे जवानी भाग जाये
सोच अब ये  उम्र ढलने मे भी लगता वक्त कितना

आशिआने की दिवारे पड रही छोटी अमीरों के लिये
मुफ्लिसों के घर  निपटने मे भी लगता वक्त कितना

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