24 December, 2010

गज़ल--- [gazal]

गज़ल

वो सब को ही लुभाना जानता है
सभी के दुख मिटाना जानता है

वो भोला बन रहा है पर जमाना
हरेक उसका फसाना जानता है

करो मत शक कोई नीयत पे उस की
वो सब वादे निभाना जानता है

नहीं दो वक्त की रोटी उसे पर
महल ऊँचे बनाना जानता है

पहल करता नही वो दुशमनी मे
उठी ऊँगली झुकाना जानता है

निकम्मा क्या करेगा काम प्यारे
महज बातें बनाना जानता है

चुराते लोग खुशियाँ हैं मगर वो
फकत आँसू चुराना जानता है

22 December, 2010

सुखान्त दुखान्त--- आखिरी कडी { story}

सुखान्त दुखान्त -- आखिरी कडी

पिछली किश्त मे आपने पढा कि बाजी शुची को अपने अतीत की कहानी सुना रही थी कि किस तरह उसने किसी अमीर परिवार मे शादी के सपने देखे थी जब उसकी शादी अमीर परिवार मे हुयी तो उसे अमीरी का सच पता चला। जितना उजला अमीरी का उजाला बाहर से लगता है उतना ही अन्दर अन्धेरा होता है। उसके शराबी कबाबी पति को जब डाक्टर ने टी बी की बीमारी बताई तो घर के लोग तो खुश थे कि बला टली लेकिन बाजी को भविश्य की चिन्ता सताने लगी। बाजीपने पति के साथ सेनिटोरियम मे चली गयी वहीँ अपने जीजा की मदद से नर्स दाई की ट्रेनिन्ग लेने लगी । त्क़भी एक दिन उन्हें एक औरत मिली जिसने जो उनके ससुराल वालों का सच बताने आयी थी। उस औरत ने  बाजी बताया कि कैसे उसके पति की सौतेली माँ और सास उसके पति के खिलाफ षड्यन्त्र  रच रहे हैं।
 जिसे सुन कर उसने पति की देख भाल का पूरा जिमा खुद पर ले लिया और उसे घर ले आयी। अब बाजी की नौकरी भी लग गयी थी। अब आगे पढें------

" इनकी हालत मे बहुत सुधार होने लगा था फिर भी इनके अन्दर एक गम और हीन भावना सी रहती।कितना मुश्किल था एक करोड पति  नवाब के लिये अपने एक नौकर की हैसीयत जितनी पत्नी पर निर्भर करना। आठ वर्ष हो गये थे शादी को हमारा बच्चा भी नही हुया था। यूँ भी कोठों की रोनक बढाने वालों के अपने आँगन सूने ही रहते है।"
 "इस बीच अस्पताले मे एक औरत बच्चे को जन्म दे कर भाग गयी। मैने वो बच्चा गोद ले लिया। बेटा दो साल का हुया था कि एक दिन मेरे पति अपने भाईयों से मिलने और अपनी जमीन जायदाद का प्ता लेने अपने घर गये मगर वहाँ से उनकी मौत की खबर ही आयी। उनकी मौत भी मेरे लिये राज़ ही रही जबकि उनकी हालत पहले से बहुत अच्छी थी।  घर वालों ने बताया कि उन्हें सोते हुये अपने कमरे मे मृ्त पाया गया और मेरे पहुँचने से पहले लाश का दाह संस्कार कर दिया ग्या था। मेरा 10 साल का संघर्ष एक पल मे राख हो गया। सपनो का ऐसा ही अन्त होता है जब हम अपने पँखों के आकार से बडे सपने देखने लगते हैं।। मेरे बेटे के सिर से बाप का साया उठ गया था बेशक ये साया अपनी छाँव उसे नही दे सका था। मुझे जमीन जायदाद मे से कुछ नही मिला बोले की उसने सब कुछ बेच कर खा लिया है।  अब तो मुझे दुख झेलने की आदत सी पड चुकी थी।"
बिना पँख आकाश पर उदने का सपना लिये मैं जमीन पर भी कोई सुख नही भोग पाई।कितना अच्छा होता मै बचपन से ही अपने पाँव पर खडे होने का सपना पालती।ये टीस आज तक मुझे सालती है। शुचि, अपनी कहानी आज इस लिये तुम्हें बताई कि मै नही चाहती कि मेरी तरह कल को तुम भी धन दौलत के लालच मे अपने पाँव के नीचे की जमीन खो दो।।"
" बाजी जरूरी तो नही कि सब लोग एक जैसे होते हैं?" मैने आशंका जताई।
" हाँ , लेकिन धन दौलत की मोटी परत मे उनके जीवन मे झाँकना , उसे भेदना किसी गरीब आदमी के लिये सम्भव नही होता। रिश्ते हमेशा बराबरी मे ही सुखमय होते हैं, प्रेम प्यार मान सम्मान पाते हैं।"
बाजी कुछ देर चुप रही -- हाँ तुम कुछ बताने आयी थी मगर मैं आपनी कहानी ले कर ही बैठ गयी।" बाजी ने मेरी तरफ देख कर पूछा।
 बाजी मेरी एक सहेली है क्लासमेट मै अक्सर उसके घर जाती हूँ। उसकी माँ मुझे बहुत प्यार करती है। उसका भाई बी.य़े  के बाद पढाई छोड कर पिता के साथ अपना बिज़नेस सम्भाल रहा है। वो मुझ मे बहुत दिलचस्पी लेता है। जब भी उसके घर जाऊँ वो आस पास मँडराता रहता है।मगर मैने कभी उस से खुल कर बात नही की। 2-3 दिन पहले उसकी मम्मी ने हंसते हुये मुझसे कहा था कि क्या मेरी बहु बनोगी? मैं हंस दी थी तब उन्होंने कहा था कि सोच कर बताना। मगर आपको पता है कि मैं आपसे पूछे बिना साँस भी नही लेती। मगर मुझे भी वो लडका अच्छा लगता है। यही मन की बात आपसे करने आयी थी।" कह कर मै नज़र नीची कर के बाजी की प्रतिक्रिया सुनने को उतावली थी।
" शुचि सब से पहले तो उस औरत की बेवाकूफी  कहूँगी कि उसने बिना सोचे समझे तुम्हारे हाथ ,मे एक ख्वाव पकडा दिया। अगर उसे तुम पसंद भी हो तो उसे तुम से नही पहले तुम्हारे घर वालों से बात करनी चाहिये थी। मगर ये तो बताओ कि वो है कौन?।"
"वो वर्मा जी का बेटा जिनके तीन पैट्रोल पँप हैं।"
"ओह वो?"
"हाँ , क्या आप जानती हैं उन्हें?"
बहुत अच्छी तरह। एक बार यही लडका मेरे पास किसी लडकी को ले कर आया था उसकी एबार्शन करवाने लेकिन मैने फटकार कर भगा दिया था।"
 "क्या?" मै हैरान थी "उपर से भोला भाला और अन्दर से शैत? मुझे फंसाने की कोशिश? पर क्या उसके माँ-बाप को पता है उसके बारे मे?"
" बेटा माँ बाप को सब पता है सारा शहर जानता है उस बिगडैल लडके को। वो उस लडके की माँ है तेरी माँ नही। अगर तुझे बेटी समझती तो कभी तुम से ऐसा नही कहती। अपने स्वार्थ मे अन्धी हो कर तेरा जीवन दाँव पर लगाने की बात नही सोचती। उसने ही तो बाप से बेटे की बातें छिपा कर उसे इतना बिगडैल बनाया कि अब बाप की भी नही मानता।"
" देख शुचि इस उम्र मे प्यार महज एक स्वाभाविक आकर्षण है।इसमे उलझ कर लडके लडकियाँ अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं, अपने पथ से दूर हो जाते हैं। तुम एक मेधावी लडकी हो और मैने तुम्हारी जिम्मेदारी के लिये तुम्हारी माँ को वचन दिया है। जैसे मैने अपने बेटे  यानी तुम्हारे भाई को पढाया है वैसे ही मै चाहती होऔँ कि तुम भी आगे बढो। अगर तुम्हारे दिल मे  मेरा जरा भी सम्मान है तो मुझे एक वचन दो।"
'क्यों नही बाजी! आपने तो माँ से बढ कर मुझे प्यार दिया है कहें क्या वचन दूँ?"
आज के बाद तुम उनके घर नही जाओगी ।
" बाजी मै वचन देती होऔँ आपकी कहानी सुन कर मुझे ज़िन्दगी के मायने समझ मे आगये हैं। मै खूब पढूँगी और अपनी योग्यता के बल पर अपनी मंजिल पाऊँगी।" बाजी की कहानी ने मुझे अन्दर तक हिला दिया था। मैं बाजी वाला इतिहास दोहराना नही चाहती थी। पहले भी बाजी के पथप्रदर्शन मे ही पढ रही थी। मैने खूब मेहनत की और बाजी की प्रेरण से मै डाक्टरी के अन्तिम वर्ष मे पहुँच गयी थी। उस दिन मै और बाजी बहुत खुश थी, आज नतीजा आने वाला था ।र पिता जी और भईया अखबार जल्दी लेने चले गये थे।
 बाहर की आवाजें सुन कर हम दोनो की तन्द्रा भंग हुयी।---
" बाजी< बाहर  पिता जी और भाईया आये है।" हम दोनो बाहर गयी।  मैने पूरी यूनिवर्सिटी मे टाप किया था। देखते देखते आस पडोस की भीड बधाई देने के लिये जमा हो गयी थी। झो भी मुझे बधाई देता मैं बाजी की ओर इशारा कर देती। वही तो हकदार थी इसकी। उनके जीवन के सुखान्त दुखान्त ही मेरे लिये प्रेरणा  और सफलता के क्षितिज बने थे। बाजी के चेहरे का सकूँ और चमक बता रही थी कि अब उनके पँख कितने बडे हो गये थे और आकाश छूने को आतुर। समाप्त।

19 December, 2010

सुखान्त दुखान्त ----4-- story

सुखान्त दुखान्त --4
 पिछली किश्त मे आपने पढा कि बाजी शुची को अपने अतीत की कहानी सुना रही थी कि किस तरह उसने किसी अमीर परिवार मे शादी के सपने देखे थी जब उसकी शादी अमीर परिवार मे हुयी तो उसे अमीरी का सच पता चला। जितना उजला अमीरी का उजाला बाहर से लगता है उतना ही अन्दर अन्धेरा होता है। उसके शराबी कबाबी पति को जब डाक्टर ने टी बी की बीमारी बताई तो घर के लोग तो खुश थे कि बला टली लेकिन बाजी को भविश्य की चिन्ता सताने लगी। बाजीपने पति के साथ सेनिटोरियम मे चली गयी वहीँ अपने जीजा की मदद से नर्स दाई की ट्रेनिन्ग लेने लगी । त्क़भी एक दिन उन्हें एक औरत मिली जिसने जो उनके ससुराल वालों का सच बताने आयी थी। कौन थी वो आगे पढें---

"हम दोनो एक पेड के नीचे बैठ गयी।
" अभी ये मत पूछिये कि मै कौन हूँ आपको बता दूँगी। मै कसौली मे बडे नवाब यानि आपके पति को देखने आयी थी।उनकी हालत देख कर मुझ से रहा नही गया। आप चाहे कुछ भी कहें लेकिन मेरी अन्तरात्मा से रहा नही गया कि आपको सच बताये बिना जाऊँ। बात ये है कि बडे नवाब की माँ और भाई नही चाहते कि वो ठीक हों\ वो लोग आपको बताये बिना उन्हें अफीम और शराब भेजते हैं जो वो आपके जाने के बाद छुप कर पीते हैं। चोरी से पैसे भी दे जाते हैं जिनसे वो नौकर से शराब मंगवा कर पीते हैं। बडे नवाब नशे के इतने अभ्यस्त हो गये हैं कि नशे के बिना रह नही सकते। वो आप से शर्मिन्दा भी हैं मगर अब बेबस हैं। इसी के कारण उनके भाई उन से कुछ जमीन के कागज़ों व कारोबार के कागज़ों पर उनके दस्तखत करवा कर ले जाते हैं। ताकि अगर बडे नवाब न भी रहें तो उनकी सम्पति मे आपका हक न रहे। इस तरह उन्होंने बडे नवाब को बर्बाद करने मे कोई कसर नही छोडी है। अगर आप चाहती हैं कि बडे नवाब ठीक हो जायें तो उन्हें कहीं और ले जायें और नौकर को वापिस भेज दें। धीरे धीरे डाक्टर से मश्विरा कर पहले इनका नशा छुडायें। दिल के अच्छे हैं मगर सौतेली माँ के  दबाब और अवहेलना से दुखी रहे। पिता की मौत के बाद टूट से गये हैं तभी से अधिक नशा लेने की आदत हो गयी है।" कह कर वो चुप कर गयी
" मगर आपको कैसे पता चला ये सब।" मै उसकी बातों से हैरान परेशान थी।
"मुझे ये बताने मे कोई संकोच नही कि मै वही कोठेवाली हूँ जिसके पास वो रोज़ आते थे। हमारा पेशा है हर आने वाले का स्वागत करना पडता है। उन्हें कई बार समझाने की कोशिश भी की। उनका नमक वर्षौ खाया है तो उनका दुख देख कर मन दुखी हुया और आपको बताने का साहस भी जुटा पाई। शायद अपना फर्ज निभा कर मै बडे नवाब के लिये कुछ कर पाऊँ।" कह कर वो उठ खडी हुयी। मैं उसे जाते हुय्ते हैरानी से देखती रही। उस समय इतना ध्यान भी नही आया कि उसका धन्यवाद करूँ या उसे चाय के लिये ही पूछ लूँ।"
मै विस्मित सी इनके अतीत के कुहासे मे छिपे रहस्य, षड्यन्त्र, एकिन्सान की पीडा और भटकाव -- पता नही और क्या क्या देख रही थी। इसका कारण?--- पैसा। पैसे की चकाचौँध के पीछे का काला इतिहास ---। इन रिश्तों ,माँ भाईयों से अच्छी तो वो औरत ही निकली जिसे कम से कम इनकी दशा देख कर रहम तो आया? मन ही मन उस औरत का धन्यवाद किया और चल पडी।"
"मैं वहाँ से सीधी अस्पताल पहुँची।नौकर पता नही कहाँ था मैं अपलक उन्हें सोते हुये निहारती रही। बिलकुल किसी अबोध बालक की तरह उनका चेहरा था जैसे माँ की गोद  के लिये रोते रोते सो गया हो। और अचानक मेरे अन्दर की औरत माँ बन गयी। कितनी देर सोचती, देखती रही।  जब से मै कोर्स करने लगी थी तब से मेरे अन्दर जीवन के लिये एक दृष्टीकोण बन गया था एक आत्मविश्वास और अपने पाँव पर खडे होने का प्रयास। आज सोच लिया कि इन्हें उन दुष्टों से बचाऊँगी।"
" इस सप्ताह मेरी इम्तिहान था। अभी 15 बीस दिन मै कोई कदम नही उठाना चाहती थी। सिवा इसके कि नौकर को वापिस भेज दूँ। अब मै अधिक समय अस्पताल मे बिताने लगी। वहीं बैठ कर पढती रहती। खुद ही मिनकी देखभाल करती। मुझे अब पहले की तरह इन पर गुस्सा नही आता। समझ गयी थी कि मन से कमजोर आदमी कितना लाचार होता है। अफीम पूरी न मिलने से इनकी बेचैनी बढने लगी। नौकर चला गया था ला कर कौन देता? मैने इन्हें बताये बिना डाक्टर को पूरी बात बताई तो उन्हों ने मश्विरा दिया कि एक दम अफीम बन्द करने से भी इन्हें बेचैनी है। नशा एक दम से बन्द नही किया जा सकता। और उस दिन मैने इन्हें सब कुछ बता कर इनसे प्रण लिया कि ये आदत छुडवाने मे मुझ से सहयोग करेंगे तो समझूँगी कि मैने आपको पा लिया है। अब मैं अफीम कहाँ से लाती? नौकर को बुलाया उससे अफीम मंगवा कर अपने पास रख ली और नौकर को फिर भेज दिया। मै इन्हें अपने हाथ से कम डोज़ देती। इनकी बेबसी और शर्मिन्दगी देख कर दुख भी होता मगर इन्हें समझाती और कुछ पुस्तकें भी पढने के लिये प्रेरित करती। हर तरह से खुश रखने की भी कोशिश करती। इस तरह अब इनकी हालत मे एक महीने मे ही सुधार नजर आने लगा। शराब बिलकुल बन्द कर दी।"
 "मेरी ट्रेनिंग समाप्त् होने के दो माह बाद ही मुझे शिमला के एक असपताल मे नौकरी मिल गयी । मै इन्हें लेकर शिमला आ गयी मगर ईलाज यहीँ का चलता रहा। अपनी माँ को अपने साथ ले आयी थी। अब मैने फैसला कर लिया था कि उनसे कोई आर्थिक सहायता भी नही लूँगी। बेशक मेरी बहन ने मेरी उस समय बहुत मदद की। इनकी दवाओं का और खुराक का ही बहुत खर्च था। अच्छी खुराक मे मीट अन्डे भी देने पडते। मैने कभी मीट को हाथ भी नही लगाया था ।ास्प्ताल के एक कर्मचारी को पैसे दे कर मीट और खरोडे बनवा लेती ।इनकी हालत मे बहुत सुधार होने लगा था फिर भी इनके अन्दर एक गम और हीन भावना सी रहती।कितना मुश्किल था एक करोड पति  नवाब के लिये अपने एक नौकर की हैसीयत जितनी पत्नी पर निर्भर करना। आठ  साल हो---    क्रमश:

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