26 November, 2010

ब्लाग की सालगिरह --

ब्लाग की सालगिरह 

आज मेरे ब्लाग की दूसरी सालगिरह है। 2008 मे मैने ब्लाग लेखन शुरू किया था। पहले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष ब्लाग पर सक्रियता कुछ कम रही। इसमे से 3 माह तो अमेरिका प्रवास मे लग गये कुछ समय बाकी पारिवारिक गतिविधियों मे लग गया, इस लिये इस साल मे केवल 109 पोस्ट ही डाल सकी। 109 पोस्ट पर 4268 कमेन्ट मिले। फालोवर की संख्या 221 तक पहुँची। मेरे जैसी अल्पग्य के लिये ये उपलब्धि भी कोई कम नही। इस वर्ष परिकल्पना ब्लागोत्सव की तरफ सेवर्ष 2010 की श्रेष्ठ कहानी कार का सम्मान मिला। मुझे तो ये आभासी दुनिया बहुत रास आयी बहुत से रिश्तेमिले स्नेह मिला, मार्गदर्शन मिला। सब का नाम गिनाऊँ तो पोस्ट बहुत बडी हो जायेगी। आप सब मेरी ऊर्जा हैं।  आपसब के स्नेह और मार्गदर्शन के लिये सब की आभारी हूँ।आज अपनी सब से पहली रचना- ज़िन्दगी { कविता} पेश कर रही हूँ लेकिन कुछ शुद्धियों के साथ, तब मुझे टाईप करना नही आता था उस दिन इस कविता को टाईप करने मे मुझे 2 घन्टे लगे थे।
उन सभी का तहे दिल से शुक्रिया करती हूँ जिन्होंने कल मेरे जन्मदिन पर मुझे बधाईयाँ और शुभकामनायें भेजी।
लेकिन एक दुख की बात है कि मेरे ब्लाग की सालगिरह पर 26/11 की दुर्घटना का इतिहास जुड गया है। इस दुर्घटना मे मारे गये सभी शहीदों को मेरी विनम्र श्रद्धाँजली।



खिलते फूल सी मुसकान है जिन्दगी
समझो तो बडी आसान है जिन्दगी

खुशी से जिओ तो सदा बहार है जिन्दगी
दुख मे बस तलवार की धार है जिन्दगी

पतझड बसन्तों का सिलसिला है जिन्दगी
कभी इनयतें तो कभी गिला है जिन्दगी

कभी हसीना सी चाल सी मटकती है जिन्दगी
कभी सूखे पत्तों की तरह  भटकती है जिन्दगी

आगे बढने वालों के लिये तो पैगाम है जिन्दगी
भटकने वालों की मैयखाने मे गुमनाम है जिन्दगी

निराशा मे जी का जन्जाल है जिन्दगी
आशा मे मधुर संगीत  सी सुरताल है ज़िन्दगी

कहीं मखमली बिस्तर पर सोती है जिन्दगी
कभी फुटपाथ पर नंगी पडी रोती है जिन्दगी

कभी होती थी दिलबर-ए- यार जिन्दगी
आज चौराहे पे खडी हैशर्मसार जिन्दगी

सदिओं से माँ के दूध की पह्चान है जिन्दगी
उसी औरत की अस्मत पर बेईमान है जिन्दगी

वरदानो मे अच्छा दाऩ क्षमादान है जिन्दगी
बदले की आग मे होती शमशान है जिन्दगी

खुशी से जीओ चन्द दिन की मेहमान है जिन्दगी
इबादत करो इसकी दोस्तो  भगवान है जिन्दगी

24 November, 2010

कविता -- मन मन्थन


कविता

मेरी तृ्ष्णाओ,मेरी स्पर्धाओ,
मुझ से दूर जाओ, अब ना बुलाओ
कर रहा, मन मन्थन चेतना मे क्र्न्दन्
अन्तरात्मा में स्पन्दन
मेरी पीःडा मेरे क्लेश
मेरी चिन्ता,मेरे द्वेश

मेरी आत्मा
, नहीं स्वीकार रही है
बार बार मुझे धिक्कार रही
प्रभु के ग्यान का आलोक
मुझे जगा रहा है
माया का भयानक रूप
नजर आ रहा है
कैसे बनाया तुने
मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

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