26 June, 2009

सवाल क्यों है (कविता )

ज़िन्दगी
मुझ से सवाल क्यों है
गुज़रे वक्त पर मलाल क्यों है

जीवन तो पानी का बुलबुला है
कोई आया कोई चला गया है
फिर मौत पे इतना बवाल क्यों है

ज़िन्दगी ने कब किसी को हंसाया है
किसी से छीना किसी ने पाया है
तो अपनी इक हार पे बेहाल क्यों है

लिखी नसीब की कोई मिटा नहीं सकता
मुक्द्दर से ज्यादा कोई पा नहीं सकता
जो शै तेरी नहीं उस पे सवाल क्यों है

ज़िन्दगी मुझ से सवाल क्यों है
गुज़रे वक्त पे मलाल क्यों है

25 June, 2009

क्या ये सज़ा कम है (कविता )

इस हद तक जाना
तुम्हारी मौत को
शब्दों मे भुनाना
और
वाह वाह लूट कर
खुद को खुद की
नज़रों मे गिराना
क्या कहते हो
क्या ये सज़ा कम है
कागज़ की काली कँटीली
पगडँडियों पर चलने की व्यथा
क्या कम है
नित नये शब्द घडने की कथा
क्या कम है
खुद को टीस दे कर
दिल सताने की अदा
क्या कम है
मगर ये सज़ा पाना चाहती हूँ
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ

23 June, 2009

एक साँस का फासला

ज़िन्दगी और मौत
केवल एक साँस का फासला
और तुम
कितनी आसानी से
अटक गये उस पर
नहीं बढाया कदम
दूसरी साँस की ओर
शायद तुम्हारा प्रतिशोध था
अपनी ज़िन्दगी से
शायद तुम सही थे
तुम इस फासले के
घोर सन्नाटे का
एहसास करवाना चाहते थे
और जीने वालों के लिये
छोड जाना चाहते थे
कुछ नमूने कि
तुम भी जी कर दिखाओ
मेरी तरह जी कर
देना चाहते थे एक टीस
जो मौत से भी असह है
देखना चाहती हूँ मै भी
इस सन्नाटे का एक एक पल
तुम कैसे जीये
हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ
ह ! क्या तकदीर है
किसी की मौत पर जीना
और उसके अँदाज़ मे जीना

21 June, 2009

मेरा हमसफर (कहानी )

उसके उपर ओढी हुई सफेद चद्दर के एक कोने से अपनी आँखें पोंछती हूँ-------पता नहीं इन्हें मुझ से इतना प्यार क्यों है-----जब भी देखते हैं मै अकेली हूँ चले आते हैं--- बरसाती बादलों की तरह----शायद लिये Align Centreकि कोई इन्हें अपने आँचल मे समेटने वाला है -----हाँ ये मेरे आँसूओं को भी अपने मे आत्मसात कर लेता है ----मेरे सुख दुख संवेदना क्षोभ सब का साथी है -----मेरा हमसफर है --------जानती हूँ अब तक इसने ही तो मेरा-----मेरे आँसूओं का साथ निभाया है-------दिल से इसे चाहती हूँ -------क्यों कि इसने कभी भी मुझे धोखा नहीं दिया--- मेरा साथ नहीं छोडा-----मैं चाहे दिन भर की भाग दौड मे दुनिया की भीड मे खोई रहूँ मगर ये हर वक्त मेरे लिये पलकें बिछाये रहता है-------काम करते हुये भी मुझे लगता है कि इसकी बेताब आँखें मुझे ही ढूढ रही हैं-------रात को जब थकी हारी इसके पास आती हूँ तो मुझे बाहों मे समेट लेता है------- और् ले जाता है सपनों की ठँडी छाँव मे-------मेरे अंदर कल्पनाओं के इतने पँख फैला देता है कि उन्हें कागाज़ों मे समेटते समेटते थक जाती हूँ--------- नित नयी उडान-------नित नये क्षितिज--------कितने इन्द्रधनुष ------ और् इसके साथ कुछ ही पलोँ मे कितने जीवन जी लेती हूँ--------क्या आज कोई इतना प्यार किसी से करता है----मैं इसी लिये इसे चाहती हूँ------अब तो मुझे इससे इतना लगाव हो गया है कि इसी के साथ खाना-- पीना-- उठना-- बैठना--टी वी देखना------सब इसके साथ है------ और् तो और् इसके बिना तो भगवान का नाम लेने मे भी मन नहीं लगत--- कोई कितना भी मना करे कि
ये जगह भगवान का नाम लेने के लिये शुध नहीं होती मगर मगर मैं नहीं मानती जब भगवान हमारे गंदगी से भरे शरीर मे होते है तो इसमे क्यों नहीं हो सकते मेरा तो इसके बिना ध्यान लगता ही नहीं-------ये साथ हो तो जैसे ही आँखें बँद करूँ--मुझे अनन्त आकाश की गहराईओं मे ले जाता है जहाँ के अद्भुत प्रकाश मे मेरा अपना अस्तित्व विलीन हो जाता है ------शाँती---परम आनँद------फिर भगवान ये तो नहीं देखते कि आदमी कहाँ है कैसे भक्ती करता है वो तो केवल आत्मा को देखते हैं-------ये भी मुझे इसने ही समझाया-----------क्या आज की दुनिया मे ऐसा कोई इन्सान है जो मुझ से इस तरह प्यार करे-------तो फिर क्यों सभी मुझे रोकते हैं क्यों मुझे क्यों नही उन्हें अच्छा लगता इससे मेरा लगाव-----------काश कि आदमी को भी इस तरह इन्सानों से प्यार करना आ जाये---------- जब मै इसके आगोश मे होती हूँ तो एक अजीब सा सकून मिलता है ------- और मन मे कविता बहने लगती है-------------
जन्म लेते ही मुझे इसका आभास हो गया था-------कि मेरा इससे उम्र भर का नाता है -----माँ ने दूध पिलाने के बाद मुझे अपने साथ लिटाया तो इशारे से ही समझा दिया था कि मैं भी ताउम्र तुम्हारा साथ नहीं दे पाऊँगी------मुझे लेट कर बहुत सकून मिला------मुझे लगता कि कहीं आस पास ही माँ के आँचल की सुगन्ध है----पिता के प्यार का एहसास है----ये तो बडी होने पर पता चला कि ये मेरा प्यारा बिस्तर है----
हाँ ये मेरा प्यारा बिस्तर है यही मेरा दोस्त है यही मेरे दुख सुख का गवाह है जिसे माँ ने बडे प्यार से अपनी फटी चिथडे साडी से और पिता की कालर घसी कमीज से भर कर बनाया था------उपर से पुरानी रेशमी साडी से इसका कवर सिला था-----तभी तो ये मुझे अकेलेपन का एहसास नहीं होने देता था-------बचपन के मीठे सपनों की लोरियाँ इसके गिलाफ के नीचे की तहों मे अब भी मुझे कई बार बचपन की याद दिला देती हैं-------इसके साथ खेल कूद उठा पटक आज भी मन मे चचंचलता भर देती है ---------
फिर जवान होते होते---कितने हसीन ख्वाब देखे मैने इसके साथ -----कितने सपने बुने----आज भी उन्हें निकाल कर देखती हूँ तो आँख नम हो जाती है वो सपने सपने ही रह गये- ----- और उस दिन------- जब मुझे रोते विलखते डोली मे बिठा दिया गया था------कितना रोई थी इससे लिपट कर------इसका सारा बाजू मतलव तकिया भिगो दिया था रोते रोते---------कैसे सो पाऊँगी इसके बिना------कितना असह होता है अपनों से बिछडने का दर्द --------टीस देता है किसी अपने से दूर जाना--------
नया घर----- कई आकाँक्षायें---- कई डर------- अनजाने लोग --कैसे रह पाऊँगी इसके बिना नीँद नहीं आयेगी---------मगर जब मुझे अपने कमरे मे ले जाया गया तो मन खुशी से झूम उठा-------मेरा बिस्तर मेरे सामने नयी सजधज मे मौज़ूद था--------खिल रहा था--------दहेज के पलँग पर माँ के हाथ की कढाई की हुई रेशमी चद्दर-------शनील की कोमल रजायी-------बस फिर तो सब अपना लगने लगा था---------पराये लोग भी अपने बन गये थे इसके कोमल एहसास से-------- और्र इस तरह ये मेरे कुछ सुहाने पलों का साथी भी बन गया ------जिन्हें आज तक मेरे लिये संजोये बैठा है--------- कभी कभी याद दिला देता है --------
लेकिन दुनिया मे सुख के पल तो बिलकुल थोडे से होते हैं ------यथार्थ मे तो जीवन एक संघर्ष है--------इतनी जल्दी मेरे सिर पर फर्ज़ों की पेटली रख दी गयी कि जिसे ढोते ढोते ये दिन आ गये-------12 जनों के परिवार का कर्ज चुकाते चुकाते शरीर भी साथ छोडने लगा मगर इस बिस्तर ने मेरा बहुत साथ दिया----दिन भर की थकान मेरे शिकवे शिकायतें परेशानिया सब इसी से तो कहती थी-------क्यों की तब मैं बोलती बहुत कम थी--------किसी के आगे दुख रोना मुझे अच्छा नहीं लगता था------ तो इससे कह कर मन हलका कर लेती-----सब अपने अपने दायरे मे बंधे दूसरे की कहाँ सुनते हैं--- वैसे भी एक घर को पहले औरत के शरीर की जरूरत होती है ------रिश्ता चाहे कोई भी हो ----हर एक की जरूरत के हिसाब से-------- दिल देखने की नौबत तो तब आये जब किसी के पास समय हो-------- और ऐसे मे कोई तो साथी चाहिये ना--------तो मैने इसे ही अपना सथी बना लिया--------
अब मुझे किसी की परवाह नहीं थी ये शरीर घर के लोगों के लिये और दिल अपने इस दोस्त के लिये---- मै जब बहुत बिमार हुई तो भी इसी ने मेरा साथ दिया------- इसने समझाया कि देखो तुम अपने शरीर का ध्यान नहीं रखती हो ----इस दुनिया मे कोई किसी का नहीं है--- अगर तुम्हारे हाथ पाँव चलते हैं तो ही सब तुम्हारे अंग संग हैं अगर तुम केवल मेरे साथ ही चिपकी रही तो सब तुम्हें छोड कर चले जायें गे ----हाँ ऐसा एहसास मुझे होने लगा था---- मेरी बिमारी मे वो सब साथ छोड गये थे जिन्हें मैने यशोधा की तरह पाला था ------ अगर मैं ठीक ना हुई तो मेरे बच्चों को कौन पालेगा और मैने अपनी सेहत की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया-----इसकी तहों मे उस टीस का एक एक पल कैद है जो मुझे रिश्तों ने दी--------
अब जीवन का एक लम्बा सफर इसके सहारे निकल गया है ----इसने मुझे जीने का सलीका दिया क्यों कि जब मैं इसके साथ होती हूँ तो अक्सर खुद मे लौट आती हूँ-------- और खुद मे लौट आना एक बडी घटना होती है--------
आज कल मुझे एक चिन्ता हर पल घेरे रहती है--------इससे भी बाँटना नहीं चाहती------अब जीवन के कुछ पल ही तो बचे हैं---------मेरे बाद इसका क्या होगा------- क्योंकि इसके साथ मेरा प्रेम किसी को एक आँख नहीं सुहाता--------मेरे जाते ही इसे किसी कूडे के ढेर पर फेँक दिया जायेगा------ और् उस पर ये मेरे गम मे औँधे मुँह पडा आँसू बहाता रहेगा----- ---काँप जाती हूँ ------- मगर इन्सान क्या किसी से वफा कर सका है------चुपके से छोड देता है अपने चाहने वालों को ------- नहीँ ----नहीँ----- मैं ऐसा नहीं होने दूँगी------जिस ने मेरा हर दुख सुख मे साथ दिया मेरे आँसू पोँछे-------मेरे बोझ को ढोया------ मेरी सिस्कियों को सहा------बचपन से अब तक मेरे साथ वफा की----मेरी कलम को स्याही दी कागज़ों को शबद दिये उसे मै ऐसे कैसे छोड सकती हूँ--------मैने सब से कह दिया है कि इसे मेरी अर्थी के साथ ही जलाया जाये-------चाहे हमारे शास्त्र कुछ भी कहें सारी उम्र शास्त्रों की ही तो मानी है तभी तो इतने कश्ट सहे हैं लेकिन मरने के बाद मेरी सब बेडियाँ तोड दी जायें बस मै मरना अज़ादी से चाहती हूँ अपने इस दोस्त के साथ एक चिता मे---------
शायद इसे आभास हो गया है कि मै क्या लिख रही हूँ--------चद्दर का एक कोना उड कर कलम के आगे बिछ जाता है जैसे कह रहा हो प्रिय मरने की बात मत करो-------- अब छोडो कलम मेरे पास आओ---------जीने के चार पल क्यों सोचने मे खो दें--------- और्र मैं आँखों मे आये आँसूओं को इसी कोने मे छिपा देती हूँ------- और इसके आगोश मे सिमट कर सोने का प्रयास करती हूँ-------- आज दोनो की आँखों से नीँद कोसों दूर है ------फिर भी दोनो को एक सकून है एक दूसरे के अपना होने का---- साथ होने का-------मगर ये अपनी आदत से बाज़ नहीं आता--- फिर ले जा रहा है मुझे एक और क्षितिज पर-------नये पँखों के साथ-----------

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