गजल
प्यार मे फकीर हूँ
वक्त की जंजीर हूँ
आत्मा तो मर गयी
सिर्फ इक शरीर हूँ
वश नहीं चला कहीं
हाथ की लकीर हूं
मांगता उधार जब
मारता जमीर हूँ
चार शब्द लिख लिये
सोचता कबीर हूँ
कुछ पता नहीं कि क्यों
आज मै अधीर हूँ
हूँ तो मै गरीब ही
दिल का पर अमीर हूँ
वक्त की जंजीर हूँ
आत्मा तो मर गयी
सिर्फ इक शरीर हूँ
वश नहीं चला कहीं
हाथ की लकीर हूं
मांगता उधार जब
मारता जमीर हूँ
चार शब्द लिख लिये
सोचता कबीर हूँ
कुछ पता नहीं कि क्यों
आज मै अधीर हूँ
हूँ तो मै गरीब ही
दिल का पर अमीर हूँ