26 December, 2009

प्यार रिश्तों का मोहताज़ नहीं होता। अन्तर्ज़ाल जैसी आभासी दुनिया मे भी रिश्ते कैसे फलते फूलते हैं ये महसूस कर अभिभूत हूँ।24 दि. रात 9 बजे अचानक फोन आया *मासी जी मैं दीपक बोल रहा हूँ, मै कल सुबह सात बजे आपसे मिलने आ रहा हूँ।* सुन कर खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दीपक और कोई नहीं आपका दीपक मशाल है जिसे आप रोज़ ब्लाग पर पढते हैं। बाकी जानकारी फिर से अलग पोस्ट मे दूँगी। अभी एक गज़ल पढिये------
गज़ल

बेवज़ह बातों ही बातों में सुनाना क्या सही है
भूला-बिसरा याद अफसाना दिलाना क्या सही है

कुछ न कुछ तो काम लें संजींदगी से हम ए जानम
पल ही पल में रूठ जाना और मनाना क्या सही है

मुस्करा ऐसे  कि  जैसे  मुस्कराती  हैं   बहारें
चार दिन की ज़िन्दगी घुट कर बिताना क्या सही है

ख्वाब में आकर मुझे आवाज़ कोई  दे  रहा    है
बेरुखी दिखला के उसका दिल दुखाना क्या सही है

तुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द   साथी
छेड़  कर सारी खरोचें दिल दुखाना क्या सही है

अब बड़े अनजान बनते हो हमारी ज़िन्दगी   से
फूल  जैसी ज़िन्दगी को यूँ सताना क्या सही  है

ज़िन्दगी का बांकपन खो सा गया जाने कहाँ अब
सोचती हूँ ,तुम बिना महफ़िल सजाना क्या सही है



23 December, 2009

एक पुरानी कविता जो अभी आप लोगों ने पढी नहीं है। आज भी नया कुछ लिख नहीं पाई। तो इसे ही झेलले़ ।
कविता
मुझे मेरे दिल के करीब रहने दो
न पोंछो आँख मेरी अश्क बहने दो
ये इम्तिहां मेरा है जवाब् भी मेरा होगा
दिल का मामला है खुद से कहने दो
जीते चले गये ,जिन्दगी को जाना नहीं
मुझे मेरे कसूर की सजा सहने दो
उनकी जफा पर मेरी वफा कहती है
खुदगर्ज चेहरों पे अब नकाब रहने दो
तकरार से कभी फासले नहीं मिटते
घर की बात है घर में रहने दो !!

20 December, 2009

कविता
आज एक छोटी सी कविता जो पहले भी शायद कुछ लोगों ने पढी है। आजकल घर की व्यस्ततायों के चलते कुछ नया लिख नहीं पा रही। इसे ही झेल लीजिये।
छोटी सी बात

कई बार
जब हो जाते हैं
हम
मैं और तू
छोटी छौटी बातों पर
कर देते हैं रिश्ते
कचरा कचरा
तर्क---वितर्क
तकरारें--
आरोप--प्रत्यारोप
छिड जाता है
महाँसंग्राम
अतीत की डोर से
कटने लगती है
भविश्य की पतंग
और खडा रह जाता है
वर्तमान
मौन, निशब्द
पसर जाता है
एक सन्नाटा
उस सन्नाटे मे
कराहते हैं
छटपटाते हैं
और दम तोड देते हैं
जीवन के मायने
ओह!
रह जाते हैं
इन छोटी- छोटी  बातों मे
जीने से
जीवन के बडे बडे पल


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