नई सुबह-- कहानी ]-- अगली कडी
पिछली कडी मे आपने पढा कि नीतू घर परिवार ्र नैकरी के दो पाटौ मे पिस कर परेशान थी । एक दिन वो दफ्टर से लेट हो जाने पर कि बास की डाँट न खानी पडे अपनी एक आँटी के घर चली जाती है और उस से अपनी परेशानी बताती है। उसकी आँटी उसे समझाती है------ आगे पढिये--*बेटी ये समस्या केवल तुम्हारी ही नही ,हर कामकाजी महिला की है। अब यहाँ दो बातें आती हैं-- एक तो येकि वो बीसवीं सदी की औरत की तरह वो पूरी तरह अपने परिवार के लिये समर्पित हो कर जीये मगर किसी की ज्यादतियों के खिलाफ मुंह न खोले । अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लियेभी दूसरों पर निर्भर रहे अगर तो पति अच्छा आदमी है तब तो ठीक है नही तो आदमी दुआरा शोशित होती रहे ,प्रताडना सहती रहे। अपना आत्मसम्मान अपने सपने भूल जाये।
दूसरा पहलु है कि शोशित होने की बजाये आतम निर्भर बने और एक संतुलित समाज की संरचना करे। अभी ये काम इस लिये मुश्किल लग रहा है कि सदिओं से जिस तरह पुरुष के हाथ मे औरत की लगाम रही है वो इतनी आसानी से और जल्दी छूटने वाली नही हैुसके लिये समय लगेगा।इस आदिम समाज मे औरत की प्रतिभा और सम्मान को स्थापित करने के लिये आज की नारी को कुछ तो बलिदान करना ही पडेगा।देखा गया है कि जब भी कोई क्राँति आयी उसके लिये किसी न किसी ने संघर्ष किया और कठिनाईयाँ झेली हैं तभी आने वाली पीढियों ने उसका स्वाद चखा है।
सब से बडी खुशी की बात ये है कि पहले समय से अब तक बहुत बदलाव आया है कोई समय था जब औरत को घूँघट के बिना बाहर नही निकलने दिया जाता थ पढने नही दिया जाता था, एक आज है जब् औरत आदमी के कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है।ाउत कुछ तो इतना आगे बढ गयी हैं कि समाज की मर्यादाओं को भी भूल गयी हैं जो गलत है।
आज के बच्चे इस बदलाव को समझ भी रहे हैं। किसी स्क़मय मे आदमी ने कभी रसोई की दहलीज़ नही लाँघी थी, आज वो पत्नि के लिये बेड टी बनाने लगा है, दोनो नौकरी पेशा पति पत्नि मिल जुल कर घर चलाने लगे हैं।*
*पर आँटी , विकास के पास तो समय ही नही है अगर कभी हो भी तो कहते हैं मुझे आराम भी करने दिया करो। और सास ससुर जी को तो जैसे भूल ही गया है कि घर कैसे चलता है।*
* बेटी यहाँ भी एक बात तो ये है कि समाज की प्रथानुसार सास अपना एकाधिकार समझती है कि जब बहु आ गयी तो उसे काम की क्या जरूरत है दूसरी जो सब से बडी बात है वो आजकल के बच्चों की बडों से बढती दूरी। बच्चे अपने दुख सुख तकलीफें खुशियाँ केवल अपने तक ही रखते हैं । पार्टी सिनेमा के लिये समय है मगर ,कभी समय नही निकालते कि दो घडी बडों के पास बैठ कर उनसे दो प्यार भरी बातें कर लें या उनके दुख सुख सुन लें फिर बताओ आपस मे सामंजस्य कैसे स्थापित हो पायेगा। ये सब से अहम बात है जो परिवार मे सन्तुलन कायम करती है। क्या तुम ने कभी सास के गले मै वैसे बाहें डाली जैसे अपनी माँ के गले मे डालती थी?*
*आँटी मुझे फुरसत ही कहाँ मिलती है। क्या उन्हें खुद नही ये देखना चाहिये कि मुझे कितना काम करना पडता है?*
*नही बेटा उन्होंने अपने जमाने मे जितना काम किया है आज के बच्चे उतना नही कर सकते। क्या उन्होंने कभी तुम्हें काम के लिये टोका है? या किसी और बात के लिये?*
नही तो वो तो सब से मेरी प्रशंसा ही करती हैं कि बहु बहुत अच्छी है सारा काम करती है मुझे हाथ नही लगाने देती। पहले पहले तो मैं खुशी से फूल कर कुप्पा होती और भाग भाग कर काम करती मग अब बच्चों के होने के बाद मुश्किल हो गयी है।*
तो बेटा तुम्हारी समस्या तो कुछ भी नही है बस तुम्हे जरा सा प्रयास करने की जरूरत है अपनी सास को अपनी सहेली बना लो। उन्हें समझा कर एक नौकरानी रख लो या दोनो मिल कर घर चलाओ अपने पति को भी अपनी समस्या प्यार से बताओ। आधी मुश्किल तो किसी समस्या को अच्छे से न समझ पाने और गलत दृिष्टीकोन अपनाने से होती है। ये शुक्र करो कि तुम अपने परिवार के साथ हो अकेले रहने वाले लोग किस मुश्किल से बच्चे पाल रहे हैं ये तुम्हें अभी पता नही है।एक बार अच्छी तरह सोचो कि क्या तुम पहले रास्ते पर चल कर अपना वजूद कायम रख सकती हों ? या फिर एक नई सुबह के लिये संघर्ष करना चाहती हो।*
ये कह कर आंम्टी चाय के बरतन ले कर उठ गयी और मैं सोच मे पड गयी। आस पास देखा अपनी सहेलियों की बातों पर गौर किया तो लगा कि आँटी की बात मे दम है। अगर हम परिवार मे अपने रिश्तों को सहेज कर रखें तो जीवन की आधी मुश्किलें तो आसानी से हल हो सकती हैं । मगर हम अपने अहं या तृ्ष्णाओं के भ्रमजाल मे बहुत कुछ अनदे4खा कर देते हैं जिसे समय रहते न देखा जाये तो कई भ्रामक स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं।
मुझे शायद अपनी समस्या का समाधान मिल गया था । एक तो ये कि मेरे उपर अगर संघर्ष का दायित्व है तो निभाऊँगी,कुछ पाने के लिये कुछ खोना तो पडेगा ही। और दूसरे ापने रिश्तों को आँटी की तरह एक नई दृष्टी से देखूँगी।अँटी ने ठीक कहा है मैं घर मे माँजी और बाऊ जी से अपनी तकलीफ भी कहूँगी और उनकी भी सुनुंगी। हो सकता है वो मेरी मनोस्थिती जानते ही न हों। मैने कब कभी उनकी तकलीफ जानने की कोशिश की है। अगर समय निकक़लना हो तो बडों के लिये निकाला जा सकता है। जब माँ बिमार होती थी तो मै उनके सिरहाने से उठती नही थी मगर यहाँ आ कर कभी समय ही नही निकाला कि मैं अपनी सास के साथ भी कुछ पल बिताऊँ। पहले पहले जब कभी वो रसोई मे आती तो मैं ही उन्हें हटा देती शायद एक अच्छी बहु साबित करने के लिये । इसके बाद शायद उन्हें भी आदत पड गयी हों और भी बहुत से ख्याल इस नई सोच के साथ मेरे मन मे आने लगे। मुझे लगने लगा था कि कहीं न कहीं मेरी भी गलती जरूर है। एक आशा की किरण लिये मैं उठ खडी हुयी।
*अच्छा आँटी अब मैं चलती हूँ आपसे बात करके मन का बोझ हल्का हो गया है। मै नये सिरे से इस समस्या पर सोचूँगी। नमस्ते आँटी।*
*ठीक है बेटा, सदा सुखी रहो। आती रहा करो *
घर पहुँची तो विकास घर आ चुके थे। माँ जी और बाऊ जी के साथ ही ड्राईँग रूम मे बैठे थे। मुझे जल्दी आये देख कर माँजी ने पूछा कि क्या बात है आज जल्दी घर आ गयी? मैं पहले त चुप रही मेरी आँखों मे आँसू आ गये । जब माँजी ने सिर पर हाथ रखा कि बताओ तो सही क्या हुया है? सभी घबरा भी गये थे। मैने उसी समय माँजी की गोदी मे सिर रख दिया--
*माँजी, बात कुछ नही है मैं बहुत थक गयी हूँ* नुझ से अब नौकरी और घर दोनो काम नही होते।*
अरे बेटी पहले चुप करो। तुम इतनी बहादुर बेटी हो मै तो सब से तुम्हारी तारीफ करते नही थकती। तुम ने कभी बताया क्यों नही कि तुम इतनी परेशान हो?*
* मैने विकास से कहा था कि नौकरी छोड देती हूँ मगर विकास नही माने।*
*वाह बेटी बात यहाँ तक हो गयी और तुम ने अपने माँ बाऊजी को इस काबिल ही नही समझा कि हम से बात करो। असल मे मैं अपने सास होने के गर्व मे तुम्हारी तकलीफ न देख सकी और तुम बहु होने के डर से मुझ से कुछ कह न सकी बस बात इतनी सी थी और् तुम कितनी देर इसी तकलीफ को सहती रही। फिर मैं डरती भी थी कि मेरा रसोई मे दखल तुम्हें कहीं ये एहसास न दिलाये कि मुझे तुम्हारी काबलियत पर भरोसा नही या मुझे तुम्हारा काम पसंद नही। चलो आज से रात का खाना मैं बनाया करूँगी।*
*नीतू तुम खुद ही तो कहा करती थी कि विकास तुम बच्चों को पढाते हुये डाँटते बहुत हो आगे से4 मैं पढाया करूँगी। तो मुझे क्या चाहिये था। मै निश्चिन्त हो गया।* विकास के स्वर मे रोष था
सही है कुछ समस्यायें हम खुद सहेज लेते हैं। हमे लगता है कि हम दूसरे से अच्छा काम कर सकते हैं। यही बात शायद यहाँ हुयी थी।
*देखो बेटा जब तक बच्चा रोये नही माँ भी कई बार दूध नही देती। वैसे अच्छा हुया अगर तुम यही बात सीधी तरह इनसे कहती तो शायद इन पर असर न होता। आज तुम्हारे आँसूओं से देखो तुम्हारी माँ भी पिघल गयी और विकास की क्या मजाल जो अब तुम्हें अनदेखा कर दे।* कह कर बाऊ जी हंस दिये
चलो बटा मेरा आशीर्वाद ले लो इसी बहाने हमे भी कई साल बाद पत्नि के हाथ का भोजन नसीब होगा जो हमे शिकायत रहती थी।*
-----* तो क्या इसी खुशी मे एक एक कप तुलसी वाली चाय हो जाए, बहु के हाथ की? * माँजी चहकी
शायद आज माँजी को पहली बार इतने खुश देखा था। मुझे लगा सम्स्या का समाधान हमारे आस पास ही कहीं होता है मगर कई बार नासमझी मे हम उसे देख नही पाते जिस से और कई समस्यायें पैदा कर लेते हैं।
मैं झट से चाये बनाने चली गयी। सुबह इसी तुलसी वाली चाय ने ही तो मुझे नई राह दिखाई थी।मैने कप उठाने के लिये हाथ बढाया तो विकास ने मेरा हाथ पकड लिया बडे प्यार से दबा कर बोले लाओ तुम चलो अगला काम मेरा है। और विकास कपौ मे चाय डाल रहे थे। मुझे लगा नई सुबह का आगाज़ हो चुका है।इस लिये नही कि विकास काम कर रहे हैं बल्कि इस लिये कि मेरी तकलीफ मे मेरा साथ निभाने का जिम्मा ले रहे हैं। समाप्त ।