04 July, 2009

पृथ्वि आहत है --भाग-- 3

संवेदनाओं की ज़ुबाँ नहीं होती
कोई कोई आकार
या रूप नहीं होता
मगर उमड पडती हैं
करा देती हैं एहसास
अपने अस्तित्व का
और ढल जाती हैं
परिस्थिती के अनुसार
वो जात पात रंग भेद नहीं करती
आती हैं सब मे बराबर
दुख मे ेआँसू बन कर
बहा ले जाती हैं पीडा
सुख मे समा जाती हैं पाँव मे
थिरकन बन कर
और दे जाती हैं हो्ठ पर्
सुन्दर मुस्कान
वात्सल्य मे माँ
गरीब के लिये करुणा
मगर इन्सान
अपने सुख के लिये
मार देता है इन्हें भी
और बन जाता है
मानव से दानव
नहीं सहेज पाता
इन संपदाओं को
क्या प्रकृति आहत नहीं होगी
अपनी इन संपदाओं के तिरस्कार से
निश्चित ही होगी

03 July, 2009

प्रकृति आहत है भाग -2
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हवा के पँख नहीं होते
फिर भी उडती है जाती है
ब्राह्म्ण्ड के हर छोर तक
क्यों कि उसे देना है जीवन
देनी हैँ सब को साँसें
मगर इन्सान
हाथ पाँव होते हुये भी
किसी की साँसें
छीन लेना चाहता है
काट लेना चाहता है
उडने वालों के पर
और कभी क्भी
बैठा रहता है कर्महीन
बन कर पृथ्वी पर बोझ
निश्चित ही
प्रकृति आहत होगी
अपनी रचना के
इस व्यवहार से
क्या जीव निर्जीव से भी
गया गुज़रा हो गया है

02 July, 2009

प्रकृति आहत है ---1 भाग्

वक्त के पाँव नहीं होते
फिर भी भागता है
उसका शरीर रँग रूप
नहीं होता
फिर भी करवाता है
अपने अस्तित्व का एहसास
अतीत को छोड कर
वर्तमान को जीते हुये
चलता है अपने लक्ष्य
भविश्य की ओरे
कोई दिन वार महीना
उसे बाँध नहीं पाता
अपने मोहपाश मे
मगर इन्सान
प्रकृति की अनुपम रचना
भूल जाती है आगे बढना
वर्तमान मे जीते हुये
जमाये रखती है एक पाँव
अतीत की कश्ती मे
और नहीं छू पाती
भविश्य के मील पत्थर को
निश्चित ही
प्रकृति आहत होगी
अपनी इस रचना के व्यवहार से

30 June, 2009

ik chhoti si muskaan chaheye
माँ का प्यार
एक दिन किसी ब्लागर ने सवाल उठाया था कि लोग ब्लोग पर रिश्ते क्यों बनाते हैं 1 मुझे लगता है कि आजकल के बच्चे एकल परिवारों मे पलते हैं इस लिये उन्हें रिश्तों की अहमियत काa एहसास नहीं हो पाता 1यहाँ मै अपनी बात करूँ तो बचपन से ही बहुत बडे परिवार मे रही हूँ शादी के बाद भी सँयुक्त परिवार था यहाँ मेरी जेठानी जी की मौत हो चुकी थी और उन पाँच बच्चों को भी हमने पढाया पाला मेरे दो जवान भाई चल बसे उन दोनो के 6 बच्चे भी हमारी जिम्मेदारी थी इस लिये बच्चों को पालते पढाते उम्र बीत गयी अब जब सभी अपने अपने परिवार मे मस्त और व्यस्त हो गये हैं तो हम दोनो को अकेलापन सालता है 1मेरे पति ने तो जरूरत मंद बच्चों के लिये खुद को समर्पित कर दिया है1मगर मुझे चाहत होती है कि मेरे आसपास बहुत से बच्चे हों तो उन मे खुद को व्यस्त करूँ 1मैने जीवन मे एक अनुभव किया है कि प्यार बाँटने से बढता हैशायद तभी मुझे किसी भी बच्चे को देख कर अँदर से स्नेह का सागर ठाठेँ मारने लगता है1 मेरे सभी बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं और अपने परिवारों मे भी उन्हों ने इस प्यार को बाँटा है1 और मैं कहना चाहती हूँ कि अगर आप अपनी माँ से गहरे से जुडे हैं तो आपको प्यार का अद्भुत करिश्मा महसूस होगा कई सुन्दर अनुभूतियाँ इस प्यार से उपजती हैं जिन्हें हर कोई महसूस नहीं कर सकता1ाउर यही अनुभूतियां जीवन मे हर रिश्ते को निबाहने मे काम आती हैं----प्यार के नये नये आयाम इस रिश्ते को जी कर ही मिलते हैं------ इस लिये मैं तो ब्लोग पर भी रिश्ते ढूँढती रहती हूँ--- और र मुझे मिले हैं यहाँ ऐसे बच्चे जो मुझे बहुत प्यार करते हैं छोटे भाई जो हर वक्त मुझे साहस देने की कोशिश करते हैं आज शायद मै इसी स्नेह के कारण यहाँ तक पहुँची हूँ
मेरे कुछ बेटे मुझे अपनी कवितायें समर्पित कर अपना स्नेह बाँट रहे हैं तो फिर इन रिश्तों मे क्या बुराई है जीनी के लिये और क्या चाहिये मेरी एक बेटी भी इसी ब्लोग जगत मे है जो मुझे कई बार इतनी लम्बी 2 मैल करती है मुझे अकेलापन लगता ही नहीं------ तो क्या ये सवाल वाज़िब है कि ऐसे रिश्ते बना कर ब्लोग्गेर्स कया साबित करना चाहते हैं 1 क्या ये एक परिवार नहीं है1 आप किसी की भावनाओं को क्यों कैद कर लेना चाहते हैं------- मगर मुझे किसी की चिन्ता नहीं मुझे जीने के लिये यही सही लगता है तो मैं सब से अपना प्यार बाँटूँगी------ इसी बात पर मेरी एक रचना पढें कि माँ के स्नेह मे क्या है----- एक बार माँ के पास बैठ कर उसके प्यार को महसूस कर के देखें--फिर जो अनुभूतियाँ आप मे उपजेंगी वो जीवन भर सब रिश्तों मे काम आयेंगी-----


माँ की ममता गीता कुरान है
मे की ममता वेद पुराण है

माँ की ममता मंदिर गुरदुवारा है
माँ की ममता प्रेम न्यारा है

माँ की ममता अल्लाह रहमान है
माँ की ममता बडी महान है

खुद भूखी रह कर बच्चों को खिलाती है
वो बच्चों को अपना लहू पिलाती है

उनकी आँख के आँसू पीती है
बच्चों के लिये सब रिश्ते जीती है

माँ जैसी कुर्बानी कोई दे नहीं सकता
माँ की जगह कोई रिश्ता ले नहीं सकता

माँ के कदमों मे बच्चों की जन्नत है
सब देवी देवों की वो मन्नत है

माँ की ममता का ऊँचा ओहदा है
माँ की ममता कृष्ण यशोधा है

माँ की ममता ब्रह्मण्ड से विशाल है
माँ की ममता की नहीं कोई मिसाल है

माँ की ममता का नहीं कोई दाम है
माँ की ममता मे ही चारों धाम हैं

जाने कब मिट जाये माटी का खिलौना है
किस पल छूट जाये प्यार का बिछौना है

माँ के प्यार की जोत जलाये रखना
माँ के प्यार मे पलकें बिछाये रखना

माँ की ममता मे सारा जहान है
माँ की ममता ही तेरी पहचान है

ये बच्चे माँ की जान हैं
उसकी दुआ एक वरदान है

28 June, 2009


100 th post

सब से पहले मै आप सब से इस बात के लिये क्षम माँगना चाहती हूँ कि मै कई दिन से नियमित रूप से आपके ब्लोग पर नहीं आ पा रही हूँ1बस एक दो दिन बाद मै नियमित हो जाऊँगी1आज ये मेरी 100 वीं पोस्ट है और मै ये पोस्ट अपने छोटे दामाद श्री ललित सूरी को समर्पित करना चाहती हूँ1बेशक आप सब के लिये ये एक मामूली बात हो मगर मेरे लिये ये बहुत अहम है क्योंकि जिन प्रिस्थितियों से हमारा परिवार गुजरा है उसमे ऐसी कलपना करना ही मुमकिन नहीं फिर भी मेरे पति की कर्मनिष्ठा और बच्चों की मेहनत ने आज मेरी बेटियौ को इस ऊँचे मुम्काम पर पहुँचाया है और अपने परिवार की प्रेरणा से मैं भी कलम पकडने की हिम्मत जुटा पायी हूँ1

बेटियों का होना अभी भी समाज मे जिस नजर से देखा जाता है उस से मैँ भी अछूति नहीं थीबहुत कुछ देख सुन और भुगत कर कई बार मन बहुत दुखी हो जाता1 मगर भगवान की दया से मुझे दामाद बहुत अच्छे मिले 1

नवम्बर्2008 मे मेरी छोटी बेटी की शादी श्री ललित सूरी से हुई थी ललित एम बी ए के बाद सैम सँग कम्पनी मे एरिया मैनेजर हैं और मेरी बेटी भारत बिजली मे सेल्ज मैनेजर है बडी दोनो बेटियों के ससुराल जाने पहचाने परिवार थे बडी बेटी ने एम एस सी मैथ और उससे छोटी ने एम सी ए की है दोनो के पती सोफ्ट वे. इजनियर हैं मगर ललित का परिवार दिल्ली मे था हमारी कोई जानपहचान नहीं थी एक अनजाना सा डर कि पता नहीं बाद मे क्या होगा ? फिर भी दोनो परिवारों मे एक बार मिलने से ही लगने लगा कि जैसे बहुत पुरानी जान पहचान हो1 रिश्ता और फिर 7माह बाद शादी हो गयी 1जब ललित शादी के बाद पहली बार मेरे घर आये तो मुझे एक पल को भी नहीं लगा घर मे नये दामाद आये हैं बच्चों की तरह मेरे आगे पीछे जहाँ तक कि रसोई मे भी मेरे पास खडे रहना मा ये बनाओ--- मा वो बनाओ--- और मेरे पति तो जैसे ललित को पा कर फूले नहीं समाते हैं----उनको भी पूरी हिदायतें कि पापा आप धूप मे ना घूम करो आप ऐसे किया करो वैसे किया करो----कहने का भाव ये कि अपना बेटा भी शायाद इतना ध्यान ना रखता हो जितना ललित को हमारी चिन्ता रहती है रोज फोन पर भी बडी देर तक बात करना उसकी हमारे प्रति निष्ठा का परिचायक है1 रिश्तों के प्रति बहुत संवेदन्शील हूँ1 बहुत रिश्ते खोये हैं भगवान के हाथों--बस इन बच्चों ने सब कुछ भुला दिया है 1

हाँ अब असली बात तो आज की पोस्ट की हो रही थी 1ललित जब पहली बार मेरे पास नन्गल आये थे तो मैने इन से ब्लोग्गि की चर्चा की बस एक घँटे बाद मेरा ब्लोग बन कर तयार हो गया था 1 25 नव.को मुझे मेरा बर्थडे गिफ्ट दिया था ललित ने1

पर मुझे तो कम्पयूटर की ए बी सी भी नहीं आती थी मगर ललित ने एक दिन मे मुझे गुजारे लायक सिखा दिया मेरा काम शुरू हो गया जो नहीं पता लगता था वो मैं फोन करके पूछ लेती थी नहीं तो मेरे घर मे कम्पयूटेर का इतना ही काम था के अमेरिका मे रह रही बेती से याहू मेसेन्जर पर बाते करती थी वो भी बच्चों ने डेस्क टाप पर सब कुछ रख छोडा था मुझे क्लिक करना सिखा दिया था1

अब धीरे धीरे आप सब के और आशीश खण्डेलवाल जी के सहयोग से कई कुछ सीख गयी हूँ1

आज ललित ने टिकटें ही कटा कर भेज दी थी सो दिल्ली आना पडा मेरी बेटी का जन्म दिन था इस लिये आज ये पोस्ट भी दिल्ली से ही लिख रही हूँ अभी अभी बाहर से डिनर कर के लौटे हैं बच्चों के साथ खुश हूँ 1

आज ललित की वजह से ही मुझे इतना बडा ब्लोग जगत का परिवार मिला है आप सब का स्नेह पा कर भी अभिभूत हूँ शायद इस काबिल नहीं थी जितना आप सब से प्यार और सहयोग मिला है सब से अधिक जिन लोगों ने मुझे सहयोग दिया उनमे श्री प्रकाश सिह अर्श श्री आशीश ख्ण्डेलवालजी नीरज गोस्वामी जी राज भाटिया जी दिगम्बर नास्वाजी जिन्हो ने समय समय पर मुझे सहयोग दिया और मेरा उत्साह वर्धन किया मै उन सभी की धन्यवादी हूँ-- ( सब का नाम ले कर लेख को बडा नही करना चाहती )जो रोज मुझ पर अपना स्नेह बरसाते हैं और मेरा उत्साहवर्धन भी करते हैं1

आज अर्श से माफी चाहती हूँ कि मैने उस से वादा किया था कि मै दिल्ली आ रही हू और उस से मिलूँगी मगर गर्मी और समयाभाव के कारण मिल नहीं पाई 1जल्दी जल्दी मे लेख को अच्छे ढंग से लिख नहीं पायी इस समय रात के दो बजने वाले हैं जाते जाते आप सब का एक बार तहे दिल से धन्यवाद करती हूँ और अपने बच्चों के लिये आपका आशीर्वाद चाहती हूँ1ौर चाहती हूँ कि ललित जैसा दामाद हर बेटी वाले को मिले और इनके परिवार जैसा हर परिवार हो

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