12 March, 2011

 दोहे

कौन बिछाये बाजरा कौन चुगाये चोग
 देख परिन्दा उड गया खुदगर्जी से लोग

लुप्त हुयी कुछ जातियाँ छोड गयीं कुछ देश \
ठौर ठिकाना ना रहा पेड रहे ना शेष

कौन करेगा चाकरी कौन उठाये भार
खाने को देती नही कुलियों को सरकार

धन दौलत हो जेब मे ,हो जाते सब काम
कलयुग के इस दौर मे  चुप बैठे हैं राम

जहाँ जिधर भी देख लो रहती भागम भाग
 देख लगे जैसे सभी चले बुझाने आग

07 March, 2011

दोहे--- dohe

 दोहे

सूरत से सीरत भली सब से मीठा बोल
कहमे से पहले मगर शब्दों मे रस घोल

रिश्ते नातों को छोड कर चलता बना विदेश
डालर देख ललक बढी फिर भूला अपना देश

खुशी गमी तकदीर की भोगे खुद किरदार
बुरे वक्त मे हों नही साथी रिश्तेदार

हैं संयोग वियोग सब  किस्मत के ही हाथ
 जितना उसने लिख दिया उतना मिलता साथ

कोयल विरहन गा रही दर्द भरे से गीत
खुशी मनाऊँ आज क्या दूर गये मन मीत

बिन आत्म सम्मान के जीना गया फिज़ूल
उस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल

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