आज की प्राथमिकता।--- लघु कथा
राजेश जैसे ही आफिस के लिये बाहर निकलने लगा , बाहर आँगन मे बैठी माँ ने आवाज़ दी'' बेटा तुम से बात करनी थी"
'माँ कितनी बार कहा कि मुझे बाहर जाते हुये पीछे से आवाज मत दिया करो।' राजेश ने नाराज़गी जाहिर की
'असल मे कल तुम्हारे पिता का श्राद्ध है यही याद दिलवाना था"
'हाँ मैं आफिस से आते हुये पंडित जी को बोल आऊँगा।"
" साथ ही अपनी बहनों को भी फोन कर देना।
'असल मे कल तुम्हारे पिता का श्राद्ध है यही याद दिलवाना था"
'हाँ मैं आफिस से आते हुये पंडित जी को बोल आऊँगा।"
" साथ ही अपनी बहनों को भी फोन कर देना।
"" माँ इसकी क्या जरूरत है केवल पंडित जी को खाना खिला देंगे। तुम्हें पता है कि हमारी मैरिज एनिवरसरी पर कितना खर्च आ चुका है। फिर अगले महीने बेटे का जन्म दिन है, तभी बुलायेंगे।"
'मगर बेटा वो पास रहती हैं इस लिये कहा।" माँ ने डरते हुये स्पष्टीकरण दिया। लेकिन राजेश अनसुना कर आगे बढ गया। तभी अन्दर से भागते हुये उसकी पत्नि ने पीछे से आवाज़ दी--' अजी सुनते हो? हमारी एनिवरसरी वाली एल्बम भी लाने वाली है।"
हाँ अच्छा किया याद दिला दिया। आते हुये ले आऊँगा।" माँ ठगी सी देखती रह गयी।
'मगर बेटा वो पास रहती हैं इस लिये कहा।" माँ ने डरते हुये स्पष्टीकरण दिया। लेकिन राजेश अनसुना कर आगे बढ गया। तभी अन्दर से भागते हुये उसकी पत्नि ने पीछे से आवाज़ दी--' अजी सुनते हो? हमारी एनिवरसरी वाली एल्बम भी लाने वाली है।"
हाँ अच्छा किया याद दिला दिया। आते हुये ले आऊँगा।" माँ ठगी सी देखती रह गयी।