28 November, 2009


गज़ल
ये गज़ल भी प्राण भाई साहिब के आशीर्वाद और संवारने से
कहने लायक बनी है।

हौसला दिल में जगाना साथिया
देश दुश्मन से बचाना साथिया

जो करे बस सोच कर करना अभी
फिर न तू आँसू बहाना साथिया

क़ैद कर् पलकों में रखना हर घड़ी
यूँ बना काजल सजाना साथिया

जान हाल-ए- दिल न ले तेरा कहीं
चेहरा ऎसे छुपाना साथिया

कौन कहता है तुझे अब आदमी
भ्रूण मारे क्यों,बताना साथिया

रूप उसका जान का दुश्मन बना
प्रेम का जलवा दिखाना साथिया

छोड़ कर चल दे मुसीबत में कोई
दोस्त कैसा वो,बताना साथिया

दोस्ती निर्मल है "निर्मल" की सदा
जब जी चाहे आज़माना साथिया

26 November, 2009

मेरे ब्लाग की आज वर्षगाँठ है
कल मेरा जन्म दिन था । आप सब की इतनी शुभकामनायें पा कर अभिभूत हूँ। पता नहीं क्यों मेरी हर खुशी के साथ गम की कोई न कोई दास्ताँ क्यों जु ड जाती है। अब 26/11 की घट्ना को भी शायद कभी भूल नहीं पाऊँगी। इतनी खुश शायद मैं कभी नहीं हुई थी।

सुबह पोस्ट लिखी तो दिन मे ये घटना घट गयी। और दूसरी परेशानी, ये कि कल रात को जब पोस्ट लिखने लगी तो देखा टिप्पणी और पोस्ट वाला विजेट गलत सँख्या बता रहा था। बहुत परेशान हुई । कल दोपहर को 3500 तक टिप्पनी पहुँच गयी थी मगर रात को 405 दिखाने लगा। क्या कोई इसका कारण बता सकता है? खैर मैने फिर सभी पोस्ट और टिप्पनियाँ गिनी ।कुछ पोस्ट भी गायब लगती हैं । आज फिर देखती हूँ। खैर अब बात करती हूँ आज की। आज मेरे ब्लाग की पहली वर्षगाँठ है।
एक साल मे 172 -- प्रविष्टियाँ और 3510 कमेन्ट्स इस के अतिरिक्त मेरा दूसरा ब्लाग वीराँवल गाथा भी है जिस पर केवल 11 प्रविश्टियाँ ही डाल पाई वहाँ कमेन्ट्स पता नहीं कितने हुये । बहुत से फालोयर --- मुझ जैसी अल्पग्य के लिये बहुत बडी उपल्ब्धि है।
मेरे ब्लाग के जन्म की कहानी भी बहुत रोचक है।दिसम्बर 2007 मे रिटायर होने के बाद हम अपने नये घर मे आ गये नया मोहल्ला और नया घर यहाँ मन नहीं लगता था लोग तो नंगल के ही जाने पहचाने थे मगर जो घर जैसे सम्बन्ध पहले वाली जगह बन गये थे वैसे यहाँ नहीं थे। कुछ एक माह बाद छोटी बेटी की शादी तय हो गयी तो उसमे समय कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। 1 नवम्नर 2009 मे बेटी की शादी की। अब ब्च्चों को भी चिन्ता हुई कि मम्मी पापा अकेले हैं दिल कैसे लगेगा। मेरे छोटे दामाद ललित जी से आप पहले भी मिल चुके हैं। शादी पर उनके दोस्त सिरिल जी [ब्लागवाणी वाले} ने उनके कान मे फूँक मार दी कि अगर पत्नि को खुश रखना है तो पहले सासू माँ को खुश करना होगा। बस जब पहली बार ललित शादी के बाद मेरे पास 25 नवम्बर को आये तो शाम को सिरिल जी को फोन लगा दिया कि यार अब कोई तरीका भी बताओ कि सासू माँ को कैसे खुश किया जाये। वो एक लेखिका हैं। बस फिर क्या था, सिरिल जी ने झट से ब्लाग बनाने का मश्विरा दे डाला। मैने कहा भी कि मुझे कम्पयूटर तो आता नहीं ब्लाग क्या खाक चलाऊँगी? मगर ललित ने मेरा ब्लाग उसी समय बना दिया और मुझे टाईप करना भी सिखा दिया। बाकी सब कुछ डेस्क टाप पर रख दिया कि यहाँ यहां कलिक करना है। बस फिर क्या था हम भी बन गये ब्लागर । अब हाल ये है कि ललित खुद तो दिल्ली मे बैठे मुस्कुरा रहे हैं और हमारे पास कहीं नज़र उठा कर देखने का समय नहीं है। 2-3 महीने तो इन्टरनेट का बिल 600 के आस पास आया मगर फिर 2000 से उपर जाने लगा तो पति देव भी कुछ कसमसाये। ये शौक तो बहुत मंहगा है। फिर बच्चों ने उनसे कहा कि आप अनलिमिटिड कनेक्शन ले लें।उसमे 750 रुपये लगेंगे बस फिर पति देव ने हिसान किताब लगाया कि अगर मैं सारा दिन खाली रहूँगी तो जरूर मेरा मन अपनी सहेलियों से मिलने को करेगा । अगर महीनी मे चार पाँच चक्कर भी शहर के लगाने गयी तो 500 का तो पट्रोल ही फूँक देगी { ये भी एक बहुत बडी बात है, नहीं तो भारतिय पति शराब पर तो खर्च कर सकते हैं मगर पत्नि के शौक के लिये हर माह इतना खर्च करना कहाँ सहन कर सकते हैं } इससे अच्छा ये कनेक्शन ही ले लेते हैं क्यों कि मुझ से अधिक उन्हें इस का फायदा था।वो तो अपनी किताबों मे इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके पास बात करने का भी समय नहीं होता।चलो इसी बहाने वो अपनी शाँति तो बरकरार रख ही सकते हैं। कुछ सोशल सर्विस मे समय निकल जाता है। पहले हाल ये था कि मुझे बात करने के लिये देखना पडता कि कब किताब छोडें मैं बात करूँ । जैसे ही बात शुरू करती वो अपना काम करते हुये इधर उधर चले जाते और मुझे पूरी बात करने के लिये उनके पीछे पीछे जाना पडता कई बा्र इसी बात पर मैं नाराज़ हो जाती । यूँ भी मुझे हूँ हाँ मे ही निपटा देते । मुहल्ला पुराण न तो इन्हें अच्छा लगता है न मुझे।
जब से बलाग्गिंग शुरू की है मैं जरूरी बात करना भी भूल जाती हूँ और हाल ये है कि इन्हें बार बार मुझ से बात करने के लिये मेरे पास आना पडता है। अब मेरे पास टाईम नहीं होता मैं भी इन्हें हूँ हाँ मे ही निपटा देती हूँ। सब्जी की कडाही और कुकर कितनी बार जला चुकी हूँ। इन्हें पता है कि सब्जी गैस पर रख कर भूल जाऊँगी और जल जायेगी।अपने कमरे मे से आवाज़ लगा कर मुझे याद दिलाते रहते हैं।आगे कभी ये बाहर से देर से आते तो प्रश्नों की झडी लगा देती, अब कभी भी आयें मैं आराम से ब्लाग पर काम करती रहती हूँ। कई बार खुद आ कर कुछ बताने लगते हैं तो हूँ हाँ करती रहती हूँ मुझे लगता है ये सब अब गैर जरूरी बातें हैं । फिर इनके होते मैं बाहर की टेंशन क्यों लूँ?
तो है न सब के लिये फायदे का सौदा? मुझे शुरू से महमानवाज़ी बहुत पसंद है अब एक दो महमान आ जायें तो लगता है कि बहुत समय खराब हो गया। पहले मैं रोज़ पोस्ट लिखती थी फिर एक दिन छोड कर्। मगर पिछले कुछ दिनों बिमार हुई तो अब कई कई दिन बाद पोस्ट लिखने लगी हूँ दूसरा बेटी और नातिन साल बाद USA से आयी हैं उनके साथ भी मस्त हूँ। बस कुछ दिन मे ही पहले वाले रुटीन मे आ जाऊँ गी।
एक और बात ब्लागिन्ग ने मुझे बहुत से रिश्तों की खुशी दी है मेरे बेटे बेटियाँ भाई बहने इतना बडा परिवार है कि ये खुशी मुझ से सँभाले नहीं सम्भलती। और आप सब का प्यार और प्रोत्साहन पा कर अभिभूत हूँ। हाँ कुछ दिन से सभी ब्लाग पर नियमित रूप से नहीं जा पा रही हूँ मगर जल्दी सब की शिकायत दूर कर दूँगी। सिरिल जी का धन्यवाद करना चाहूँगी कि उन्हों ने ललित को ये मन्त्र दे कर सच मे मुझे ललित की प्रिय सासू जी बना दिया। ललित और सिरिल जी को बहुत बहुत धन्यवाद और ढेरों आशीर्वाद भी।
और आप सब का भी बहुत बहुत धन्यवाद। यहाँ अर्श बेटे का इस लिये जरूरी जिक्र करना चाहूँगी कि कम्प्यूटर की जानकारी न होने से जब शुरू मे मुझे मुश्किल आती तो अर्श ही मेरी मुश्किल दूर करते थे। उसे आशीर्वाद । एक नाम मेरे भानजे प्रदीप मेहता का जो मेरे कम्प्यूटर को टीम व्यूवर पर लगा कर ठीक करता रहता था मगर अब मैने पुराने की जगह नया कम्प्यूटर ले लिया है। प्रदीप अर्थात छोटू को बहुत बहुत आशीर्वाद। बस ये है कहानी मेरे एक साल के सफर की। अन्त मे ब्लागवाणी का धन्यवाद करना चाहूँगी जिन की वजह से मैं आज यहाँ हूँ। आशा है आप सब पहले की तरह आपना स्नेह और विश्वास बनाये रखेंगे। धन्यवाद।


24 November, 2009

गज़ल
इस गज़ल को भी आदरणीय प्राण भाई साहिब ने संवारा है ।तभी कहने लायक बनी है।

नज़र ज़रा सी उठा के तो देख्
अपनों से शरमाना कैसा?

चाहे भी शरमाये भी तू
अब नखरा यूँ दिखाना कैसा?

आते ही जाने की जिद्द?
पल दो पल का आना कैसा?

आईना तो सच बोले है
फिर खुद को भरमाना कैसा?



जलना है बस काम शमा का
जो न जले परवाना कैसा?

मतलव के तराजू मे तोले?
प्यार का ये पैमाना कैसा?

वो तोड गये दिल चुपके से
मुहबत का नज़राना कैसा?

तकरार से दूरी मिटती नहीं
इतनी बात बढाना कैसा?


23 November, 2009


गज़ल
ज़िन्दगी से मैने कहा कि मैं गज़ल सीखना चाहती हूँ तो उसने कहा कि तुम्हारे पास क्या है जो गज़ल लिखोगी? मैने कहा देखो इस मे काफिया भी है रदीफ भी है तो वो हंसी और बोली अरे! मूर्ख ये बहर मे नहीं है। और मैं इसे गज़ल न बना पाई। तो आप भी इस बेबहरी को ऐसे ही सुन लीजिये। आज पोस्ट करने के लिये और कुछ नहीं है न ।


चाहता हूँ खुद तेरी तकदीर लिख दूँ
खामोश होठौं पर एक तहरीर लिख दूँ

तू मिले या ना मिले कभी ज़ालिम्
दिल पर तेरे अपनी तस्वीर लिख दू

क्या दूँ तुझे इश्क मे इस के सिवा कि
तेरे नाम दिल की जागीर लिख दूँ

आओगी कभी तो कोई दुआ मांगने गर
खुद को इश्क ए फकीर लिख दूँ

मैं जानता हूँ अपनी हस्ती को ------
आ तेरे माथे की लकीर लिख दूँ

पोस्ट ई मेल से प्रप्त करें}

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