06 October, 2010

गज़ल

आदरणीय प्राण भाई साहिब ने आपकी खिदमत मे ये गज़ल भेजी है पढिये और दाद दीजिये। धन्यवाद।
माना कि आदमी को हँसाता  है आदमी
इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी

माना  गले से सबको लगाता  है आदमी
दिल में किसी- किसी को बिठाता है आदमी

कैसा सुनहरा  स्वांग  रचाता है आदमी
खामी को अपनी खूबी बताता है आदमी

सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर  मचाता है आदमी

हर आदमी की  ज़ात  अजीबोगरीब  है
कब आदमी को दोस्तो भाता  है आदमी

आक्रोश, प्यार, लालसा  नफ़रत, जलन, दया
क्या - क्या न जाने दिलमें जगाता है आदमी


दिल का अमीर हो तो कभी  देखिए  उसे
क्या  क्या  खजाने सुख के लुटाता है आदमी
 
दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता  नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी

अपने को खुद ही दोस्त उठाने का यत्न कर
मुश्किल से आदमी  को उठाता  है आदमी

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