माना कि आदमी को हँसाता है आदमी
इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी
माना गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी- किसी को बिठाता है आदमी
कैसा सुनहरा स्वांग रचाता है आदमी
खामी को अपनी खूबी बताता है आदमी
सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर मचाता है आदमी
हर आदमी की ज़ात अजीबोगरीब है
कब आदमी को दोस्तो भाता है आदमी
आक्रोश, प्यार, लालसा नफ़रत, जलन, दया
क्या - क्या न जाने दिलमें जगाता है आदमी
दिल का अमीर हो तो कभी देखिए उसे
क्या क्या खजाने सुख के लुटाता है आदमी
दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी
अपने को खुद ही दोस्त उठाने का यत्न कर
मुश्किल से आदमी को उठाता है आदमी
69 comments:
हो हुनर आप जैसा, और प्राण साब जैसे तो,
खुद की फितरत लफ़्ज़ों में खूब बताता है आदमी ...
बहुत खूब लिखते रहिये ...
आप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
मेरि तरफ से.......मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
माना की हंसाता है आदमी , मगर उतना नहीं जितना की रुलाता है आदमी ...
पहले शेर पर ही कुर्बान हो गए ...
सुख में आराम से सोने वाले जरा से दुःख में हल्ला गुल्ला मचाते ही हैं ...
शानदार ग़ज़ल ...
आभार ..!
बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप .......
बेहतरीन ग़ज़ल ....... बधाई और शुभकामनायें स्वीकारें
ये आदमी भी न...
पिट जाएगा किसी दिन मेरे हाथों ।
गज़ब की रचना है, कई बार पढ़ गया।
आदमी ... आमादा अदावत पर
आमदनी को मोहताज है.
बहुत सुन्दर गज़ल
बहुत उम्दा गज़ल!
माना कि आदमी को हँसाता है आदमी
इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी
माना गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी- किसी को बिठाता है आदमी
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आपका आभार ।
सभी अशआर बहुत ख़ूब हैं. उम्दा ग़ज़ल के लिए शुक्रिया.
भई वाह..क्या बात है ?
बहुत ही सुंदर और सार्थक लिखा है .
जितनी भी तारीफ़ की जाए उतनी कम है .
आभार .....
माना गले से सब को लगाता............
ख़ूबसूरत ग़ज़ल का उम्दा शेर
सुख में लिहाफ़...............
बिल्कुल सच
मुश्किल से आदमी को उठाता है आदमी !
बहुत ही खुबसूरत रचना...
मेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता संघर्ष
माना कि आदमी को हँसाता है आदमी
इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां
बहुत ही बेहतरीन गजल ...हर शेर लाजवाब
आप तो गज़ल लिखने मे महारत हासिल करती जा रही हैं………………हर शेर आदमी को परिभाषित कर गया…………।बेहद उम्दा।
बढ़िया गज़ल है.
समा से बाँध देती हैं आप अपनी ग़ज़लों में ..... हर शेर कुछ अलग रंग लिए होता है .... बहुत बधाई इस सुंदर ग़ज़ल के लिए ..
उस्ताद की कलम से उस्ताद सी ग़ज़ल
कल भी ये मौज़ू थी मौज़ू रहेगी कल।
बेहतरीन अशआर। प्राण साहब की ग़ज़लें मुझे तो आमंत्रित करती हुई प्रतीत होती हैं।
आम आदमी के चित्र को आपने बहुत खूबसूरती से संजो दिया है।
बहुत ही सुन्दर गज़ल है !
ग़ज़ल तो बेहतरीन है ही ... एक एक शेर लाजवाब है ... मुझे खास कर ये शेर बहुत अच्छा लगा
दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी
प्राण साहब कि बेहद खूबसूरत गज़ल ...इसे यहाँ पढवाने के लिए आपका आभार
वाह , आदमी की पोल खोल कर रख दी । बढ़िया ग़ज़ल ।
khoobsurat!
आदमी के हर पहलू पर एक शेर , वाह वाह
हर आदमी की ज़ात अजीबोगरीब है
कब आदमी को दोस्तो भाता है आदमी
खूबसूरत गजल .....
एक आदमी के इतने रूप....एक बेहतरीन ग़ज़ल..सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ..प्रणाम
प्राण साहब की ग़ज़ल और आपका चयन... कुछ कहने को रह कहाँ जाता है निम्मो दी!! लाजवाब भी कहूँ तो शायद ये लफ्ज़ छोटा पड़ जाए!
प्राण साहब की ग़ज़ल और आपका चयन... कुछ कहने को रह कहाँ जाता है निम्मो दी!! लाजवाब भी कहूँ तो शायद ये लफ्ज़ छोटा पड़ जाए!
(पता नहीं कैसे ये कमेंट बेनामी हो गया)
.
माना गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी- किसी को बिठाता है आदमी
क्या बात कही है...बहुत खूब...
पूरी ग़ज़ल ही शानदार है
वाह आप ने तो आदमी की असली ऒकात बता दी, धन्यवाद
बहुत खूबसूरत गज़ल..हर शेर लाजवाब...हर शेर दाद के काबिल...माहिर हो गईं हैं गज़ल लिखने में
बहुत ही सुन्दर गज़ल प्रस्तुत की है !बधाई।
निर्मला जी,
प्राण जी इतनी सुन्दर गज़ल पढ़वाने के लिए आपको बधाई और प्राण जी का तो मैं न जाने कब से प्रशंसक हूं. उनकी हर गजल मन को छू जाती है. उन्हें भी साधुवाद.
रूपसिंह चन्देल
प्राण जी की यह रचना निश्चय ही सुंदर है.
प्राण भाई साहब ,
आप की ग़ज़लें सचमुच आमंत्रित करती हैं, तिलक भाई ने सही कहा है |
मैं तो आप की ग़ज़लों से सीखती हूँ और उन्हीं से प्रेरित हो कर कई ग़ज़लें लिखी भी हैं |
इस ग़ज़ल का शे'र --
दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी
वाह क्या कहने, बधाई ..
lajawab gazal......
badee khoobsooratee se insaan ke vyktitv ke har pahloo par roshanee daltee ye gazal dilo dimag par cha gayee.....
प्राण जी की गजलों में अक्सर किसी जीवन मूल्य की तलाश रहती है. आजकल का सबसे बड़ा संकट है, मनुष्य का मनुष्य नहीं रह जाना. यह गजल मनुष्य के अनेक चेहरों और छद्मों की पड़्ताल करती है. वह कितना स्वार्थी है, कितने चेहरे बदलता है, प्राण जी की चिंता में यही बात है. अच्छी रचना के लिये धन्यवाद.
इस ग़ज़ल में ज़िन्दगी के फ़लसफ़े भरे हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
निर्मला जी, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। बधाई।
http://sudhirraghav.blogspot.com/
बधाई जी.किसलिए?गजल सीखने के लिए.मुझे वो लोग बहुत अच्छे लगते हैं जो सीखना चाहते हैं.उम्र जिनको सीखने से रोक नही पाती.उम्र का समबन्ध दिल और दिमाग से होता है.
शे'र अच्छे हैं.इंसान है ही ऐसा जीव जिस पर युगों से लिखा जाता रहा है किन्तु अब तक समझ नही पाए उसके 'भीतर'को.
फिर भी बेशक ईश्वर और इस धरती की सबसे खूबसूरत रचना ये इंसान,आदमी(मानव जाति) ही है.चाहे वो कितना भी छली है.पर उसका होना ही कम नही.
हा हा हा
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
आज तो आदमी की पूरी व्याख्या कर दी आपने। बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
jitni taarif karun kam hai
gazal laazwaab hai .har sher me gahri sachchai dabi hai .
बहुत सुन्दर गज़ल
अच्छी गज़ल है
हर आदमी की ज़ात अजीबोगरीब है
कब आदमी को दोस्तो भाता है आदमी
प्राण साहब का उम्दा कलाम...
आक्रोश, प्यार, लालसा नफ़रत, जलन, दया
क्या - क्या न जाने दिल में जगाता है आदमी
इंसान की फ़ितरत को बयान करता शेर...
अपने को खुद ही दोस्त उठाने का यत्न कर
मुश्किल से आदमी को उठाता है आदमी
ज़िन्दगी की तल्ख हकीक़त...
हर शेर लाजवाब है.
ye keval net aur blog pe hi sambhav he ki itni kamzor aur halki ghazal (?) ko 51 tarifon ke comment mil jayen. bahut hi nimn star ki ghazal he. kuchh raz apne sath le jata he aadmi, kya ye pankti sahi matra me he ? mujhhe to nahin lag rahi, ghazal ke tathakathit guru log hi kuchh bata saken.
आप सभी को हम सब की ओर से नवरात्र की ढेर सारी शुभ कामनाएं.
Dear anonymous I,
Can you wirte more better than this?
You havn't any right to talk in this foolish way to a senior writer;she is like your mother.
आदरणीय बेनामी (anonymous) जी
नमस्ते
बीच में बोलने के लिए मैं माफी चाहूँगा.
देखिये यहाँ जितने भी लोग टिप्पणी लिखते हैं उन्हें ग़ज़ल का व्याकरण पता हो ये ज़रूरी नहीं;मात्रा,हलन्त आदि आप वरिष्ठ और विद्वत जनों के अध्ययन का विषय है.तथापि गज़लकार की भावना को समझकर कि वो क्या कहना चाहते हैं शायद ये समझकर यहाँ टिप्पणियाँ दी गयीं हैं.
इंसानी फितरत को चिंदी चिंदी बिखेरती इस ग़ज़ल के लिए सिवा वाह के और क्या कहा जा सकता है...गुरुदेव की कलम का ये तो कमाल है...सीधे सरल शब्दों में वो कितनी गहरी बातें कह जाती है...इस लाजवाब ग़ज़ल को फिर से पढवाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
नीरज
आपको और सभी को नवरात्रों की शुभकामनाएँ.
माफ़ी चाहती हूँ प्राण साहब की गज़ल को आपकी कह गयी………………अभी अर्श जी ने इस तरफ़ ध्यान दिलाया…………उनके लेखन के लिये कुछ कहना तो सूरज को दीया दिखाना होगा……………आपने इतनी उम्दा गज़ल पढवाई उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया।
लाजवाब गजल पढवाने के लिए शुक्रिया.....
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
किसी के द्वारा ध्यान दिलाने पर मुझे यहां आना पड़ा है । तथा टिप्पणी नहीं करने की अपनी 6 माह पुरानी क़सम तोड़ते हुए लिखना पड़ रहा है कि अनामी जी ने जिस पंक्ति की मात्राओं पर आपत्ति ली है वह पंक्ति पूरी तरह से बहर में है । मेरे विचार में प्राण जी जैसे बहरों के जानकार के मिसरे पर आपत्ति लेकर बेनामी जी ने अपनी विद्वता झाड़ने का कुप्रयास किया है । जहां तक ग़ज़ल का प्रश्न है पूरी ग़ज़ल नये तौर पर लिखी गई है । संभवत: बेनामी जी रवायती ग़ज़लों के हिमायती हैं । उनहें याद रखना चाहिये कि हर युग में साहित्य बदलता है और नये तौर तरीके अपनाता है । अगर ऐसा न होता तो पिछले समय में दुष्यंत जैसा शाइर इतना लोकप्रिय नहीं होता । अनुरोध करूंगा कि कुछ भी कहने से पहले ये देख लिया करें कि किस के बारे में कहा जा रहा है । प्राण जी उस्ताद शाइर हैं । इन दिनों हर जगह एक बहुत गंदी परंपरा चल रही है वो ये कि किसी बड़े नाम की छिछालेदार कर दो तुरंत सस्ती लोकप्रियता मिल जाएगी । गंभीर लोगों का ब्लाग से मोहभंग होने का कारण भी ये ही है । आशा है बेनामी जी अपनी बेनामी गंदगी को अब इधर उधर इस प्रकार फैलाते हुए नहीं घूमेंगें ।
दिल का अमीर हो तो कभी देखिए उसे
क्या क्या खजाने सुख के लुटाता है आदमी
- ऐसे ही अमीर दिल इंसानों की जरूरत है |
अपने को खुद ही दोस्त उठाने का यत्न कर
मुश्किल से आदमी को उठाता है आदमी ...
उम्दा गज़ल --बहुत बहुत शुक्रिया।
अब जब गुरु जी ने अपना मनतब्य रख दिया है तो मेरा कुछ कहना सही न होगा , मगर लोग इस तरह छुप कर वार क्यूँ करते हैं ! अपने नाम के जगह बेनामी लगाकर .. बेनामी जी से आग्रह करूँगा की वो ही इस गजल का तक्तीय करें सभी के सामने कोई भी कहीं भी कुछ भी बोल का चला जाता है , यही आजकल हो गया है अपनी लोक प्रियता बढाने के लिए किसी भी बड़े के बारे में कुछ भी कह दो लोग जन जायेंगे ... अगर ज्यादा अपने को लोगों तक उनके दिल तक पहुंचनी हो तो अपनी रचनाओं से पहुँचो ... आदरणीय प्राण साब के लिए इस तरह की बात कहना निंदनीय है इस ब्लॉग जगत के लिए , शायद यह भी एक कारन है जिससे अछे लोग ब्लॉग से दूर होते जा रहे हैं....
अर्श
प्यारी गजल। मतला और मक्ता दोनो लाज़वाब। यह शेर तो क्या खूब..
सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर मचाता है आदमी।
ओह ! मै दो दिन अपने ब्लाग पर नही आ पाई तो मेरे पीछे से इतना कुछ हो गया कि इस ब्लाग जगत के गुरूजनों को मेरे ब्लाग पर आना पडा। धन्यवाद बेनामी जी< बदनाम जो होंगे तो क्या नाम न होगा? लेकिन मेरे ब्लाग पर टिप्पणियों को ले कर आपने जो कुछ कहा उससे मुझे भी गुरूजनो के स्पष्टीकरण से कुछ सीखने को मिला। अगर आप उस कम्जोर मक्ते की गलती को विस्तार से लिखते तो मुझे और भी प्रसन्नता होते मेरा ब्लाग इतने संकीर्ण विचारों के लिये नही बनाया गया। आप जरूर आईये कम से कम मुझे ये तो उत्साह मिले कि मेरे ब्लाग पर टिप्पणियाँ बहुत आती हैं। अगर आप अपने असली नाम से आते तो मुझे बहुत खुशी होती। आप भी अपनी शानदार या कमजोर कोई भी गज़ल भेजिये मै खुशी से अपने ब्लाग पर लगाऊँगी। मगर असली नाम से भेजें। आपका धन्यवाद। मगर आदरणीय प्राण भाई साहिब जी से कहूँगी कि ऐसी टिप्पणीयों को सकारात्मक सोच से ये समझ कर लें कि उन्हें किसी ने ललकारा है अगर वो बहस के लिये तैयार है तो सामने आये। सभी का धन्यवाद जिन्होंने मेरे ब्लाग पर अपनी प्रतिक्रियायें दी है और जिन्होंने केवल पढा भी है। नवरात्रपर्व की सभी को शुभकामनायें
मेरे ब्लॉग पर इस बार रश्मि प्रभा जी की रचनायें....
बेहतरीन गजल के लिये प्राण साहब को हार्दिक ---शुभकामनायें----आपको भी नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।
आदरणीय प्राण साहब
नमस्कार !
यहां ग़ज़ल देखने के लिए आपका मेल मिलने के बाद दो दिन के लिए राजस्थान साहित्य अकादमी के एक साहित्यिक आयोजन और कवि सम्मेलन में घर-शहर से दूर चले जाने के कारण विलंब से हाज़िर हो पाया हूं , क्षमा चाहता हूं ।
ग़ज़ल बहुत ख़ूबसूरत बन पड़ी है , बधाई !!
कैसा सुनहरा स्वांग रचाता है आदमी
ख़ामी को अपनी ख़ूबी बताता है आदमी
वाह ! आदमी की स्वीकारोक्ति प्रभावित करने वाली है … बधाई !
दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी
क्या बात है !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर !
हर शेर नयापन लिये हुये और लाजवाब है.
सुन्दर रचना ..
ब्लॉग जगत पर लाने के लिए धन्यवाद
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