10 October, 2009


निष्ठा

माँग
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माँ अक्सर कहती
अपने बालों मे
इतनी लम्बी माँग मत निकाला करो
ससुराल का सफर लम्बा होता है
बाद मे जाना कि
इसका अर्थ् तुम तक पहुँचने मे
एक कठिन और लम्बा रास्ता
तय करना है
बस मैने इस राह को सजा लिया
लाल् सिन्दूर से
ताकि इस पर चलने मे
मेरी ऊर्जा बनी रहे
और तुम भी इस रंगोली पर
चाव से अपने पाँव बढा सको
और तब से मैने माँग मे
सिन्दूर लगाना नहीं छोडा


बिन्दी
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शादी के बाद
जान गयी थी कि मेरे माथे
पर तुम्हारा नाम लिखा है
तुम ही मेरी तकदीर लिखोगे
और माथे पर
तुम्हारे हर आदेश के लिये
पहले ही मोहर लगा दी
बिन्दी के रूप मे
स्वीकार कर लिया
अपने भाग्य विधाता का हर आदेश


मंगल सूत्र
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जब तुम ने
मेरे गले मे डाला था
मंगल सूत्र जान गयी थी
कि मुझे तुम्हारे खूँटे से
बाँध दिया गया है
अब कभी ये बन्धन नहीं तोड सकती
तुम्हे हर पल सीने पर सजाये
अपनेजीवन पथ पर बढना होगा
और तुम्हारी उलीकी गयी परिधी मे
आज तक घूम रही हूँ
तुम्हारे नाम का मंगल सूत्र पहन कर


मेहंदी
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तुम्हारे साथ चलते
जब कभी हाथ की लकीरें
कुछ धुँधली पडने लगतीं
मैं रंग लेती मेहंदी से अपने हाथ
ताकि लोगों से छुपा सकूँ
इन फीकी पडती लकीरों को
और इस मेहंदी से
फूल और तरह तरह के चित्र
बना लेती
उन मे खो कर भूल जाती
तुम्हारी अवहेलना तुम्हारी हर बात
जो मुझे अच्छी नहीं लगती
मेहंदी नहीं मरने देती
मेरा उत्साह मेरा प्यार


चूडियाँ
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जानते हो ये चूडियाँ
किस लिये पहनती हूँ
ताकि इनकी खनखनाहट मे
याद रखूँ सात फेरों के वक्त
किये गये सात वचन
अपने कर्तव्य निभाते हुये
जब ये खनकती हैं
तो मैं भाग भाग कर
तुम्हारे आदेशों का पालन करती हूँ
और घर की रोनक
और खुशियों को कभी
कम नहीं होने देती।


पायल
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ये पायल ही है एक
जिसे मैने अपने लिये नहीं
तुम्हारे लिये ही पहना है
ताकि तुम कभी भूल जाओ
अपनी चौखट का दरवाज़ा
तो इसकी झँकार तुम्हें याद दिला दे
कि कोई है जो हर वक्त जी रही है
सिर्फ तुम्हारे लिये
और खीँच लाये तुम्हें मेरे पास
सजा लेती हूँ
अपने पाँव भी मेहंदी से
रंगोली की तरह
तुम्हारे घर आने की राह मे स्वागत हेतु


करवा चौथ
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ये भी जान लो कि मैं ये व्रत
किस लिये रखती हूँ
कि तुम मेरे इस प्रण का
यकीन करो कि
मैं तुम्हारे लिये कुछ भी कर सकती हूँ
सात जन्म का तो नहीं कह सकती
मगर इस जन्म मे
तुम्हारा साथ निभाने का प्रण लेती हूँ
और छू लेती हूँ तुम्हारे पाँव
इस आशा मे कि
तुम मुझे तन से नहीं मन से
स्वीकार करो और कुछ मोहलत दो
कि मैं अपने लिये भी
कुछ अपनी मर्जी के
आदेश पारित कर सकूँ
और तुम?
बस एक घूँट पानी पिला कर
अपना कर्तव्य पूरा कर लेते हो
आज व्रत तोडने से पहले
एक सवाल करना चाहती हूँ
क्या तुम भी मेरे लिये
इतने निष्ठावान हो
जिन्दगी मेरी है
और फैसले तुम लेते हो
क्या मुझे अपनी जिन्दगी के फैसले
खुद लेने का हक दे सकते हो?
क्या मैं अपनी तकदीर
अपने हाथ से लिख सकती हूँ?
आज देखना चाहती हूँ
तुम्हारी निष्ठा मेरे प्रति
मगर सदियों से ये सवाल
ज्यों का त्यों पडा है
तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा मे


08 October, 2009

दोहरे माप दंड ---कहानी [गताँक से आगे

पिछली बार आपने पढा
कि रिचा और रिया दोनो स्कूल मे इकठी पढती थीं । दोनो सहेलियाँ थी। रिया शहर मे और रिचा साथ लगते गाँव मे रहती थी। जिस दिन स्कूल मे छुटियाँ हुई उस दिन जब रिचा स्कूल से घर नहीं पहुँची तो उसके घर वालों को चिन्ता हुई। उसके पिता पोलिस मे केस दर्ज नहीं करवाना चाहते थे। सभी इसी सोच मे थे कि क्या किया जाये उसे कहाँ ढूँढा जाये। tतभी पता चला कि वो खून् से लथपथ खेत मे पडी है उसे असपताल लाया गया। पोलिस मे केस दर्ज हुया मगर रिचा के पिता ने उसे मना कर दिया कि किसी का नाम मत बताये क्योंकि उन्हें रिचा ने बता दिया था कि वो साथ के गाँव के ्रपंच का बेटा था रिचा घर आ गयी। मगर उसे किसी से बात करने की इजाजत नहीं थी वो अकेली अन्दर बैठी आँसू बहाती रहती उसकी सहेली रिया उससे मिलने आती है। रिचा रिया को बताती है कि कैसे उसके दिल मे एक लावा सा फूट रहा है घर वालों .समाज और उन दरिन्दों के लिये। औसके पढने पर भी प्रतिबँध लग जाता है रिया उसे आश्वासन देती है कि वो अपने माँ बाप को कह कर उसके घर वालों को समझायेगी। ्रिया के पिता के समझाने पर रिचा के पिता उसे घर मे ही पढने की इजाजत दे देते हैं उसकी शादी के लिये भी कोशिश शुरु हो जाती है रिया के पिता उसका रिश्ता अपने पडोसी रवि से करवा देते हैं जिसकी पत्नि की मौत हो चुकी हओ रवि अच्छा लडका है मगर उसकी माँ इस रिश्ते से खुश नेहीं थी और रिचा को तंग करती रहती थी। अब आगे पढिये-------



घर आ कर मै अपनी माँ की गोद मे सिर रख कर खूब रोई। क्या सच मे एक लडकी इतनी कमज़ोर और बेबस होती है?बिना किसी कसूर के हर तरफ से उसे ही सज़ा? मैने माँ और पिता जी को सारी बातें बतायी।फिर माँ और पिता जे के साथ दो तीन बार उनके घर गयी । पिताजी ने धीरे धीरी उसके पिता से उसके बारे मे बात की कि इसे अब स्कूल भेजना चाहिये मगर वो स्कूल भेजने के लिये किसी तरह भी राज़ी ना हुये।मगर पिता जी के बहुत समझाने पर उसके पिता उसे घर रह कर पढाने के लिये मान गये। उसने अब घर रह कर पढना शुरू कर दिया मै हर दूसरे तीसरे दिन उसके घर चली जाती । उसने पलस टू के बाद घर मे ही बी.ए करनी शुरू कर दी और मैने इन्जनीरिन्ग मे प्रवेश ले लिया। उसके माँ बाप उसके लिये लडका ढूँढने लगे। वो जल्दी से उसकी शादी कर देना चाहते थे ।अभी 18 साल की भी पूरी नहीं हुई थी। वो जहाँ भी बात चलाते, वहीं उसके अतीत की परछाई पहले पहुँच जाती। अब तो हम लोग भी चाहते थे कि उसकी शादी हो ही जाये तो सही रहेगा ।इन हालात मे वो अच्छी तरह पढ भी नहीं पा रही थी।

हमारे पडोस मे धर्मपाल जी रहते थे।उनके एक बेटा और दो बेटियां थी।उनका लडका रवि जिस कीदो वर्श पहले शादी हो चुकी थी,मगर शादी के बाद बहुएक बेटे को जन देते ही दुनिया से विदा ले गयी। छोटा सा बच्चा अपनी दादी के पास पलने लगा।रवि की नौकरी दिल्ली मे थी । उसके माँ बाप चाहते थे कि उसकी दोबारा शादी कर दें तो बच्चे को माँ मिल जायेगी ।एक दिन मेरी मम्मी ने ये रिश्ता सुझाया मेरे पिता जी ने रिचा के पिता से बात की। उन्हें क्या आपति हो सकती थी जानते थे कि उनकी बेटी को अब इस से अच्छा घर और लडका नहीं मिल सकता। उसे जो दाग लग गया है इस के साथ इसे कौन स्वीकार करेगा वही जिसमे खुद मे कोई कमी होगी। मगर रवि बहुत अच्छा लडका था पडोस मे होने के कारण हम लोग इकठे खेला भी करते थे मेर अच्छा दोस्त था वो। पिता जे ने और मैने रवि को समझाया तो वो भी मान गया।उसके घर मे सभी मान गये मगर उसकी माँ कुछ असमजस मे थी। रवि की हाँपर उसे भी मानना पडा। उसकी मां को भी यही बात सता रही थी कि लोग क्या कहेंगे कि ऐसी लडकी ही मिली थी इनके लडके को क्योंकि लडके की कोई भी कमी समाज को कमी नहीं लगती।मगर लडकी बेकसूर होते हुये भी अपराधी बन जाती है।लडके मे चाहे लाख अवगुण हों मगर लडकी 16 कला सम्पूर्ण चाहिये होती है। उनको ये भी था कि अभी अपनी लडकियों की शादियाँ करनी हैं तो उनके रिश्ते करने मे इस लडकी के कारण अडचने आयेंगी। लेकिन रवि के समझाने से उन्हें झुकना पडा।मै बहुत खुश थी इस रिश्ते से चाहे रवि एक बच्चे का बाप था मगर फिर भी हर तरह से रिचा के लिये अच्छा पति साबित होगा ये मुझे विश्वास था। वो बहुत संवेदन शील और सनझदार लडका था।वैसे भी उससे अच्छा लडका उसे और कोई मिल नहीं सकता था। शादी हो गयी और रिचा हमारे शहर मे आ गयी पडोस मे होने से मुझे तो खुशी थी ही मगर वो भी खुश थी ।

रवि ने दो महीने की चुटी ले रखी थी। उन दो महीनों मे रिचा के मुँह पर् रोनक लौटने लगी थी।ब्च्चे को वो ऐसे सम्भालती जैसे उसकी सगी माँ हो। शायद उसे ये भी एहसास हो गया था कि रवि एक अच्छा पति है जो उसकी भावनाओं का ध्यान रखता है तो उसे भी अपना ्र्तव्य अच्छी तरह से निभाना है।रवि ने उसे पूरा प्यार दिया उससे कभी उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया ना ही उसे एहसास होने दिया कि उसमे कोई दोश है। समाज मे विरले ही ऐसे लोग होते हैं। अब रिचा को भी विश्वास होने लगा कि पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती समाज मे अच्छे बुरे सब तरह के लोग होते हैं। दो महीने की छुट्टी के बाद रवि दिल्ली चला गया अपनी ड्यूटी पर।उसका विचार था कि दिल्ली मे मकान ढूँढ कर फिर रिचा को साथ ले जायेगा। दूसरी बात कि रिचा तब तक बच्चे को सम्भालना नहलाना भी सीख लेगी। रवि की माँ पुराने विचारों की औरत थी। र्वि के कारण चाहे उसने शादी की रज़ामंदी दे दी थी मगर अन्दर ही अन्दर उसे रिचा का अतीत कचोटता रहता । आस पडोस की कोई औरत कभी सहानुभूति जताने के बहाने बात छेड लेती तो वो तिलमिला उठती। उसे रिचा का बन ठन कर रहना भी अच्छा न लगता था।बेटियों के रिश्ते की बात कहीं नहीं बनती तो रिचा के सिर भँडा फोड देती।* मै पहले ही कहती थीहमारी बेटियों को कोई अपनी बहु नहीं बनायेगा इस कुलटा के कारण । रवि के जाने के बाद वो उसे काफी रोकने टोकने लगी थी।,पर रिचा कोई जवाब न देती। कई बार मैं उसे बाज़ार ले जाती तो आते ही उसे ताने सुनाने लगती।---* मुझे तुम्हारा कहीं जाना अच्छा नहीं लगता।कहीं पहले जैसी कोई बात हो गयी तो हमारी भी नाक कटवायेगी।* रिचा अन्दर ही अन्दर आहत हो जाती।रवो को पत्र लिखती या फोन करती तो भी माँ की बातें न बताती। वो रवि की एहसान मंद थी कि कम से कम उसने उसका हाथ थामने की हिम्मत तो की।

रवि के कहने पर उसने आगे पढाई भी शुरू कर दी। रिचा उस दिन सारी रात सो न पाई थी।सुबह देर से आंम्ख खुली तो सास गर्म हो गयी।मगर वो कुछ न बोली।सरा काम जल्दी से खत्म किया। आज वो बाज़ार जाना चाहती थी।ागले हफ्ते रवि का जन्म दिन था उसके लिये कोई तोह्फा खरीदना चाह्ती थी।उसने अपनी ननद को साथ चलने के लिये कहा तो उसने मना कर दिया।------ * न बाबा न तेरे साथ नहीं जा सकती।मैं ही ला देती हूँ जो मंगवाना है।* *नहीं दीदी मैं अपनी पसंद से लेना चाहती हूँ।* उधर उसकी सास सुन रही थी ,बोल पडी * हाँ हँ इसे तो बाहर घूमने के लिये बहाना चाहिये। मायके मे भी तो ऐसे ही घूमती थी तभी तो बदमाश उठा कर ले गये।* *माँ क्या ऐसा खतरामुझे ही है भगवान से डरिये,अप बेटियों की मा होकर भी ऐसी बातें करती हैं। * कह कर रिचा अंदर चली गयी और रोने लगी।

आज मेरी दादी ने उसकी यही बात सुनी थी सास ने क्या कहा ये उन्होंने ध्यान नहीं दिया। जिस से दादी पर मुझे भी गुस्सा आ गया था। अपना गुस्सा शाँत होने पर मैने दादी को सारी बात बताई।कि उसकी सास किस तरह के ताने उसे देती है ।तब दादी को भी बुरा लगा। क्रमश: अगले दिन मैं अभी सोयी हुई थी कि पिता जी के कमरे से कुछ आवाज़ें आ राही थी मै उठ खडी हुई । उनके कमरे मे जा कर देखा तो रिचा की सास रो रही थी और रिचा सकते की हालत मे खडी थी। उनकी छोटी बेटी घर से गायब थी।जब वो सुबह पाँच बजे उठे तो आशा उनकी बेटी अपने बेड पर नहीं थी।इस लिये वो पिता जी के पास सहायता के लिये आयी थी। मैं जानती थी कि उसका किसी लडके के साथ अफेयर चल रहा है वो जरूर उसके साथ भाग गयी होगी।एक बार तो मन मे आया कि चुप रहूँ इसकी भी बदनामी हो तो रिचा का दर्द ये समझे। लेकिन मैं ऐसा न कर सकी। बदले की भावना से एक लडकी की ज़िन्दगी क्यों बर्बाद होने दूंम फिर रवि को कितना दुख होगा जब उसे पता चलेगा। मैने अपना शक पिता जी को बताया।पिता जी भी समझ गये। उन्होंने उन्हें समझा कर घर भेज दिया कि मैं देखता हूँ।अप वो रिचा के ससुर को ले कर थाने चले गये।थाने के एस़ एच़ औ पिता जी के दोस्त थे।उन्हों ने सारी बात सुन कर तुरन्त गुप चुप तरीके से कार्यवाई की और -23 घन्टे मे लडकी बरामद कर ली।मामला लडकी की इज़्जत का था सो केस दर्ज नहीं करवाया। लडकी घर वापिस आ गयी।

रिचा के घर मे आज सुबह से ही शाँति थी नहीं तो सुबह उठते ही रिचा के पीछे पड जाती थी। रवि को रात ही फोन कर दिया था।दोपहर तक वो पहुँचने वाला था। आज मुझे भी मौका मुल गया था और मैने सोच लिया था कि अब रिचा के दुखों का अन्त कर दूँगी। उसे सब कुछ बता दूँगी। दोपहर को वो घ आया मैने सोचा अभी खा पी ले बाद मे शाम को बात करूँगी। सारे शहर मी बात फैल गयी थी। शाम को पाँच बजे मैं रिचा के घर पहुँची। सभी एक कमरे मे बैठे थे।रवि अपनी बहन को डाँट रहा था मुझ से कोई लुकाव छुपाव तो था नहीं इस लिये बात चलती रही।थोडी देर बाद मैने अपनी बात शुरू की * देखो माँ जी जो हुया बहुत बुरा हुया।मगर सच पूछो तो रिचा के कारण आपकी कुछ इज़्जत बच गयी।क्यों कि पिता जी रिचा को अपनी बेटी मानते हैं।अज आपसे एक सवाल जरूर पूछना चाहूँगी कि आपने आज तक रिचा को इतना बुरा भला कहा रोज़ दिन मे सौ बार उसे आप उस बात का ताना देती मगर रिचा ने कभी उफ तक न की क्या उस बात मे रिचा का कोई कसूर था?। नहीं ना? आज आपकी बेटी के साथ जो हुया उसमे आपकी बेटी का कसूर है।

मुझे ये समझ नहीं आता कि एक औरत दूसरी औरत का दर्द क्यों नहीं समझती? क्यों उसके दुखों का कारण बन जाती है?* रवि हैरान सा मेरे मुँह की तरफ देख रहा था उसे तो कुछ पता नहीं था कि माँ रिचा के साथ कैसा सलूक करती है। *रवि,मैं जानती हूँ कि आप एक अच्छे इन्सान हैं। आपने रिचा को बहुत सम्मन और प्यार दिया मगर आपके जाने के बाद जो उसे सहना पडा वो अगर मैं होती तो कब की घर चोड कर चली जाती।ाब कहीं ऐसा न हो कि उसकी सहनशक्ति जवाब दे जाये इस लिये मैं एक बहन और दोस्त के नाते चाहती हूँ कि तुम रिचा को अपने साथ ले जाओ।* * नहीं नहीं बेटा मुझे माफ कर दो। मैं रिचा के पाँव पकड कर माफी माँगती हूँ कि मैने उसका दिल दुखाया है।* वो सच मुच रिचा के पाँ पकडने लगी। * नहीं नहीं मा जी मुझ पर पाप मत चढायें* वो पीछे हट गयी। रवि कब से सब कुछ सिन रहा था एक दम से उठा *रिचा चलो सामान बान्धो, हमे आज ही निकलना है।* * सुनो कोई मेरी भी सुनो।* रिचा जोर से बोली देखो रवि मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। माँ जी ने मुझे जो भी कहा वो अपनी तरफ से सही हैं जो समाज से इन्होंने लिया सीखा वही कहा । वो समाज का हिस्सा हैं और समाज्के लोग दूसरों की इज़्जत को इज़्जत नहीं समझते झट से दूसरे की तरफ उँगली उठा देते हैं ये नहीं सोचते कि एक उंगली दूसरे की तरफ उठी है तो चार अपनी तरफ भी उठी हैं। फिर जब तक अपना हाथ न जले जलन का एहसास कैसे हो सकता है?

मुझे इतना ही बहुत है कि आपने कम से कम समाज की परवाह न करते हुये मुझे अपनाया,मेरे अतीत के साथ और अपने मन से।इसलिये आज मैं इस घर को अपने मन से अपनाना चाहती हूँ।माँ और पिताजी की बेटी बनना चाहती हूँ। आज किसी से कोई गिला शिकवा नहीं है।* कह कर वो चुप हो गयी मुझे लगा कि आज उसके अन्दर का सारा लावा बह गया है। आज वो बिलकुल शाँत और दृ्ढ लग रही थी। आज उसकी सास भी समझ गयी थी लेकिन तब जब अपनी इज़्जत पर बन आयी। *आज तक जिसने जो कहा मैं मानती रह, मगर आज आप सब को मेरी बात माननी होगी ।मैं अभी तक यहीं अपने घर मे ही रहूँगी।जब तक ये बच्चा भी कुछ बडा नहीं हो जाता और दोनो बहनों की शादी नहीं हो जाती।* रवि माँ की ओरे देख रहा था कि अब बताऔ रिचा अभागिन है या हम लोग? * माँ देखा हम कितने भाग्यवान हैं जो हमे रिचा जैसी लडकी मिली?।* आज रिचा के चेहरे पर फिर से वही विश्वास लौट आया था जिसने उसके अतीत को भगा दिया था। और र्मैं सोच रही थी कि काश ये समाज नारी के प्रति कुछ संवेदन शील हो सके कम से कम नारी तो नारी की भावनाओं को समझे।उसके साथ हो रहे अन्याय से लडे न कि खुद ही उससे अन्याय करने लगे। अपनी और पराई बेटी के लिये समाज के दोहरे मापदंड क्यों, अखिर क्यों।

समाप्त

05 October, 2009

दोहरे माप दंड ---कहानी [गताँक से आगे

पिछली बार आपने पढा कि रिचा और रिया दोनो स्कूल मे इकठी पढती थीं । दोनो सहेलियाँ थी। रिया शहर मे और रिचा साथ लगते गाँव मे रहती थी। जिस दिन स्कूल मे छुटियाँ हुई उस दिन जब रिचा स्कूल से घर नहीं पहुँची तो उसके घर वालों को चिन्ता हुई। उसके पिता पोलिस मे केस दर्ज नहीं करवाना चाहते थे। सभी इसी सोच मे थे कि क्या किया जाये उसे कहाँ ढूँढा जाये। tतभी पता चला कि वो खून् से लथपथ खेत मे पडी है उसे असपताल लाया गया। पोलिस मे केस दर्ज हुया मगर रिचा के पिता ने उसे मना कर दिया कि किसी का नाम मत बताये क्योंकि उन्हें रिचा ने बता दिया था कि वो साथ के गाँव के ्रपंच का बेटा था रिचा घर आ गयी। मगर उसे किसी से बात करने की इजाजत नहीं थी वो अकेली अन्दर बैठी आँसू बहाती रहती उसकी सहेली रिया उससे मिलने आती है। रिचा रिया को बताती है कि कैसे उसके दिल मे एक लावा सा फूट रहा है घर वालों .समाज और उन दरिन्दों के लिये। औसके पढने पर भी प्रतिबँध लग जाता है रिया उसे आश्वासन देती है कि वो अपने माँ बाप को कह कर उसके घर वालों को समझायेगी। अब आगे पढिये------------


घर आ कर मै अपनी माँ की गोद मे सिर रख कर खूब रोई। क्या सच मे एक लडकी इतनी कमज़ोर और बेबस होती है?बिना किसी कसूर के हर तरफ से उसे ही सज़ा? मैने माँ और पिता जी को सारी बातें बतायी।फिर माँ और पिता जे के साथ दो तीन बार उनके घर गयी । पिताजी ने धीरे धीरी उसके पिता से उसके बारे मे बात की कि इसे अब स्कूल भेजना चाहिये मगर वो स्कूल भेजने के लिये किसी तरह भी राज़ी ना हुये।मगर पिता जी के बहुत समझाने पर उसके पिता उसे घर रह कर पढाने के लिये मान गये। उसने अब घर रह कर पढना शुरू कर दिया मै हर दूसरे तीसरे दिन उसके घर चली जाती । उसने पलस टू के बाद घर मे ही बी.ए करनी शुरू कर दी और मैने इन्जनीरिन्ग मे प्रवेश ले लिया। उसके माँ बाप उसके लिये लडका ढूँढने लगे। वो जल्दी से उसकी शादी कर देना चाहते थे ।अभी 18 साल की भी पूरी नहीं हुई थी। वो जहाँ भी बात चलाते, वहीं उसके अतीत की परछाई पहले पहुँच जाती। अब तो हम लोग भी चाहते थे कि उसकी शादी हो ही जाये तो सही रहेगा ।इन हालात मे वो अच्छी तरह पढ भी नहीं पा रही थी।

हमारे पडोस मे धर्मपाल जी रहते थे।उनके एक बेटा और दो बेटियां थी।उनका लडका रवि जिस कीदो वर्श पहले शादी हो चुकी थी,मगर शादी के बाद बहुएक बेटे को जन देते ही दुनिया से विदा ले गयी। छोटा सा बच्चा अपनी दादी के पास पलने लगा।रवि की नौकरी दिल्ली मे थी । उसके माँ बाप चाहते थे कि उसकी दोबारा शादी कर दें तो बच्चे को माँ मिल जायेगी ।एक दिन मेरी मम्मी ने ये रिश्ता सुझाया मेरे पिता जी ने रिचा के पिता से बात की। उन्हें क्या आपति हो सकती थी जानते थे कि उनकी बेटी को अब इस से अच्छा घर और लडका नहीं मिल सकता। उसे जो दाग लग गया है इस के साथ इसे कौन स्वीकार करेगा वही जिसमे खुद मे कोई कमी होगी। मगर रवि बहुत अच्छा लडका था पडोस मे होने के कारण हम लोग इकठे खेला भी करते थे मेर अच्छा दोस्त था वो। पिता जे ने और मैने रवि को समझाया तो वो भी मान गया।उसके घर मे सभी मान गये मगर उसकी माँ कुछ असमजस मे थी। रवि की हाँपर उसे भी मानना पडा। उसकी मां को भी यही बात सता रही थी कि लोग क्या कहेंगे कि ऐसी लडकी ही मिली थी इनके लडके को क्योंकि लडके की कोई भी कमी समाज को कमी नहीं लगती।मगर लडकी बेकसूर होते हुये भी अपराधी बन जाती है।लडके मे चाहे लाख अवगुण हों मगर लडकी 16 कला सम्पूर्ण चाहिये होती है। उनको ये भी था कि अभी अपनी लडकियों की शादियाँ करनी हैं तो उनके रिश्ते करने मे इस लडकी के कारण अडचने आयेंगी। लेकिन रवि के समझाने से उन्हें झुकना पडा।

मै बहुत खुश थी इस रिश्ते से चाहे रवि एक बच्चे का बाप था मगर फिर भी हर तरह से रिचा के लिये अच्छा पति साबित होगा ये मुझे विश्वास था। वो बहुत संवेदन शील और सनझदार लडका था।वैसे भी उससे अच्छा लडका उसे और कोई मिल नहीं सकता था। शादी हो गयी और रिचा हमारे शहर मे आ गयी पडोस मे होने से मुझे तो खुशी थी ही मगर वो भी खुश थी ।रवि ने दो महीने की चुटी ले रखी थी। उन दो महीनों मे रिचा के मुँह पर् रोनक लौटने लगी थी।ब्च्चे को वो ऐसे सम्भालती जैसे उसकी सगी माँ हो। शायद उसे ये भी एहसास हो गया था कि रवि एक अच्छा पति है जो उसकी भावनाओं का ध्यान रखता है तो उसे भी अपना ्र्तव्य अच्छी तरह से निभाना है।रवि ने उसे पूरा प्यार दिया उससे कभी उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया ना ही उसे एहसास होने दिया कि उसमे कोई दोश है। समाज मे विरले ही ऐसे लोग होते हैं।

अब रिचा को भी विश्वास होने लगा कि पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती समाज मे अच्छे बुरे सब तरह के लोग होते हैं। दो महीने की छुट्टी के बाद रवि दिल्ली चला गया अपनी ड्यूटी पर।उसका विचार था कि दिल्ली मे मकान ढूँढ कर फिर रिचा को साथ ले जायेगा। दूसरी बात कि रिचा तब तक बच्चे को सम्भालना नहलाना भी सीख लेगी। रवि की माँ पुराने विचारों की औरत थी। र्वि के कारण चाहे उसने शादी की रज़ामंदी दे दी थी मगर अन्दर ही अन्दर उसे रिचा का अतीत कचोटता रहता । आस पडोस की कोई औरत कभी सहानुभूति जताने के बहाने बात छेड लेती तो वो तिलमिला उठती। उसे रिचा का बन ठन कर रहना भी अच्छा न लगता था।बेटियों के रिश्ते की बात कहीं नहीं बनती तो रिचा के सिर भँडा फोड देती।* मै पहले ही कहती थीहमारी बेटियों को कोई अपनी बहु नहीं बनायेगा इस कुलटा के कारण । रवि के जाने के बाद वो उसे काफी रोकने टोकने लगी थी।,पर रिचा कोई जवाब न देती। कई बार मैं उसे बाज़ार ले जाती तो आते ही उसे ताने सुनाने लगती।---* मुझे तुम्हारा कहीं जाना अच्छा नहीं लगता।कहीं पहले जैसी कोई बात हो गयी तो हमारी भी नाक कटवायेगी।*

रिचा अन्दर ही अन्दर आहत हो जाती।रवो को पत्र लिखती या फोन करती तो भी माँ की बातें न बताती। वो रवि की एहसान मंद थी कि कम से कम उसने उसका हाथ थामने की हिम्मत तो की। रवि के कहने पर उसने आगे पढाई भी शुरू कर दी। रिचा उस दिन सारी रात सो न पाई थी।सुबह देर से आंम्ख खुली तो सास गर्म हो गयी।मगर वो कुछ न बोली।सरा काम जल्दी से खत्म किया। आज वो बाज़ार जाना चाहती थी।ागले हफ्ते रवि का जन्म दिन था उसके लिये कोई तोह्फा खरीदना चाह्ती थी।उसने अपनी ननद को साथ चलने के लिये कहा तो उसने मना कर दिया।------ * न बाबा न तेरे साथ नहीं जा सकती।मैं ही ला देती हूँ जो मंगवाना है।* *नहीं दीदी मैं अपनी पसंद से लेना चाहती हूँ।* उधर उसकी सास सुन रही थी ,बोल पडी * हाँ हँ इसे तो बाहर घूमने के लिये बहाना चाहिये। मायके मे भी तो ऐसे ही घूमती थी तभी तो बदमाश उठा कर ले गये।* *माँ क्या ऐसा खतरामुझे ही है भगवान से डरिये,अप बेटियों की मा होकर भी ऐसी बातें करती हैं। * कह कर रिचा अंदर चली गयी और रोने लगी। आज मेरी दादी ने उसकी यही बात सुनी थी सास ने क्या कहा ये उन्होंने ध्यान नहीं दिया। जिस से दादी पर मुझे भी गुस्सा आ गया था। अपना गुस्सा शाँत होने पर मैने दादी को सारी बात बताई।कि उसकी सास किस तरह के ताने उसे देती है ।तब दादी को भी बुरा लगा।
क्रमश:

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