18 December, 2009

कई दिन से बच्चे आये हुये हैं कुछ अधिक नया लिख नहीं पा रही। ये छोटी सी गज़ल जिसे प्राण भाई साहिब ने संवारा है उनके आशीर्वाद से आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ
                                                                   गज़ल


करें कितना भरोसा हम इन्हें तो टूट जाना है
दरार आयी दिवारों का भला अब क्या ठिकाना है

ज़मीन पर पाँव रखती हूँ नज़र पर आसमां पर है
नहीं रोके रुकूँगी मैं कि ठोकर पर  जमाना   है

कहाँ औरत रही अबला कहाँ बेबस सी लगती   है
वो पहुँची है सितारों तक ,किसीको क्या दिखाना है

है ऊंची बाड़ के पीछे जड़ें खुद काटता    माली
लुटा जो अपनों के हाथों कहाँ उसका ठिकाना   है

ख़यालों में ही तू खोया रहेगा कब तलक यूँ ही
कि उठ मन बावरे अब ढूंढना तुझको ठिकाना है
               

16 December, 2009

मैं नेता बनूंगा [व्यंग ]
एक दिन बेटे से पूछा ;बेटा क्या बनोगे?:
कौन सा प्रोफेशन अपनाओगे,किस राह पर जाओगे
वह थोडा हिचकिचाया,फिर मुस्कराया और बोला
मैं नेता बनूंगा
मैं हुआ हैरान उसकी सोच पर परेशान
नेता बनना होता है क्या इतना आसान?
फिर पूछा :बेटा नेता जैसी योग्यता कहां से लाओगे?
लोगों में अपनी पहचान कैसे बनाओगे?
वो जरा सा मुस्कराया
और  बोला मुझे सब पता है
नेता के लिये मिनिमम कुयालिफिकेशन है---
1पहली जमात से ऊपर पास हो या फेल
2 किसी न किसी केस में कम से कम एक बार हुई हो जेल
3 गणित मे करोडों तक गिनत जरुरी है
इस के बिना नेतागिरी अधूरी है
4 माइनस डिविजन चाहे ना आये पर
प्लस मल्टिफिकेशन बिना
नेता बनने की चाह अधूरी है
5 सइकालोजी थोडी सी जान ले
ताकि वोटर की रग पह्चान ले
6 डराईंग में कलर स्कीम का ग्याता हो
गिरगिट  की तरह रंग बदलना आता हो
लाल, काले सफेद से ना घबराये
नेता की पोशाक में हर रंग समाये
पिताजी बस अब भाई दादाओं के हुनर जानना है
 उस के लिये किसी अच्छे डान को गुरू मानना है
डाक्टर इंजनिय्र बनकर मै भूखों मर जाऊंगा
नेता बन कर ही होगा गाडी बंगला और विदेश जा पाऊंगा
मैने सोचा, और  बहुमत में नेताओं को ऎसा पाया
बस फिर क्या? अपने बेटे की बुद्धि पर हर्शाया

14 December, 2009

  गज़ल
अपना इतिहास पुराना भूल गये
लोग विरासत का खज़ाना भूल गये
रिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरे
लोग बसंतों का जमाना भूल गये
दौलत की अँधी दौड मे उलझे वो
मानवता को ही निभाना भूल गये
भूल गये  आज़ादी की वो गरिमा
कर्ज़ शहीदों का चुकाना भूल गये
वो बन बैठे ठेकेदार जु धर्म के
वो अपना धर्म निभाना भूल गये
बीवी  के आँचल मे ऐसे उलझे
माँ का ही ठौर ठिकाना भूल गये
परयावरण बचाओ,  देते भाषण
पर खुद वो पेड लगाना भूल गये
भूल गये सब प्यार मुहब्बत की बात्
अब वो हसना हंसाना भूल गये


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