कई दिन से बच्चे आये हुये हैं कुछ अधिक नया लिख नहीं पा रही। ये छोटी सी गज़ल जिसे प्राण भाई साहिब ने संवारा है उनके आशीर्वाद से आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ
गज़ल
करें कितना भरोसा हम इन्हें तो टूट जाना है
दरार आयी दिवारों का भला अब क्या ठिकाना है
ज़मीन पर पाँव रखती हूँ नज़र पर आसमां पर है
नहीं रोके रुकूँगी मैं कि ठोकर पर जमाना है
कहाँ औरत रही अबला कहाँ बेबस सी लगती है
वो पहुँची है सितारों तक ,किसीको क्या दिखाना है
है ऊंची बाड़ के पीछे जड़ें खुद काटता माली
लुटा जो अपनों के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है
ख़यालों में ही तू खोया रहेगा कब तलक यूँ ही
कि उठ मन बावरे अब ढूंढना तुझको ठिकाना है
दरार आयी दिवारों का भला अब क्या ठिकाना है
ज़मीन पर पाँव रखती हूँ नज़र पर आसमां पर है
नहीं रोके रुकूँगी मैं कि ठोकर पर जमाना है
कहाँ औरत रही अबला कहाँ बेबस सी लगती है
वो पहुँची है सितारों तक ,किसीको क्या दिखाना है
है ऊंची बाड़ के पीछे जड़ें खुद काटता माली
लुटा जो अपनों के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है
ख़यालों में ही तू खोया रहेगा कब तलक यूँ ही
कि उठ मन बावरे अब ढूंढना तुझको ठिकाना है