11 July, 2009

एक कवि दरबार ऐसा भी

कल यू के के एक रेडिओ चैनल् के लिये एक आन लाईन कवि दरबार हमारे शहर नंगल टाउन शिप मे आयोजित किया गया इस रेडिओ चैनल को य़ू के की एक एन जी ओ हर माह पंजाब के किसी ना किसी शहर मे आयोजित करती है इस बार इसे लंदन के प्रवासी पंजाबी स दलजीत सिंह कालडा जी ने सपाँसर किया था इसके आयोजन की रूप रेखा तो नौ जून को ही निश्चित हो गयी थी मगर इसका आयोहन करने वाले साहित्यकार अचानक बीमार हो गये मुझे नौ जुलाई रात को मिसज किरन राय जी का फोन आया कि हमारी कुछ सहायता करें ताकि इसका आयोजन समय पर किया जा सके इतने अल्प समय मे साहित्य प्रचार मंच और अखर चेतना मंच ने मिल कर सभी कवियों से संपर्क किया मुश्किल इस लिये था कि इसका समय बहुत औड था 10 और 11 की रात को तीन बजे से सुबह 6-30 तक फिर भी हमारे कविओं ने साथ दिया औरतों के लिये समय 4-30 बजे रखा गया इस प्रोग्राम की एनाउँसर मिसेज किरन रइ जी थी जो सुबह 2-30 पर ही तयार हो कर आ गयी थी- किरन जी अभी एम एस सी आई टी की पढाई कर रही हैं और इस एन गी ओ के साथ मिल कर पंजाब मे उनकी ओर से चलाये जा रहे लोक भलाई के कार्य भी देखती हैं हर माह कवि दरबार भी आयोजित करती है वो एनाउँसर हैं और इसके हेड श्री हरबँस हीओन जी हैं
ये कवि दरबार इनका अठाहरवाँ कवि दरबार था इसमे कुल बीस लोगों ने भाग लिया जिनमे चार औरतें एक दस साल का लडका जिसने अपनी लिखी कविता पढी और बाकी पुरुष थे हम लोग मोबाईल पर कविता पढते जो साथ साथ यू के के इस चैनल पर प्रसारित हो रही थी ये चेनल एक सौ अठतालीस देशों मे चलता है सब इतने उत्साहित थे कि किसी को ये आभास तक नहीं हुआ कि हम लोग आधी रात से जाग रहे हैं चाय आदि का प्रबँध भी उन लोगों ने हमे नहीं करने दिया और कवि सम्मेलन समाप्त होने पर सब को एक एक लिफाफा दिया घर आ कर देखा तो उसमे पाँच सौ रुपये थे यहाँ ये रुपये मायने नहीं रखते जो कवि दरबार मे आनन्द आया उसके आगे कितने भी पैसे बेकार होते इसका पूरा विवरण मैं अपने पँजाबी ब्लाग पंजाब दी खुश्बू मे दूँगी मुझे इस बात का दुख रहा कि इसकवि दरबार मे कोई गौतम राज रिशी जी जैसे सज्जन नहीं थे जो इस की पूरी रेकार्डिँग कर सकते वैसे बाद मे वो इसकी पूरी सी डी बनवायेंगे और हमे भी देंगे तब तक आपलोग भी इन्तज़ार करें हां ये बताना भूल गयी कि ये पंजाबी कविता गज़ल के लिये ही आयोजित किया जाता है
is chennel kaa adress--- www.panjab radio.com.uk

09 July, 2009

अमर कवितायें (कविता )

कुछ कवितायें
कहीं लिखी नहीं जाती
कही नहीं जाती
बस महसूस की जाती हैं
किसी कोख मे
वो कवियत्री सीख् लेती है
कुछ शब्द उकेरने
भाई की कापी किताब से
जमीन पर उंगलियों से
खींच कर कुछ लकीरें
लिखना चाह्ती है कविता
बिठा दी जाती है
डोली मे
दहेज मे नहीं मिलती कलम
मिलता है सिर्फ
फर्ज़ो का संदूक
फिर जब कुलबुलाते हैं
कुछ शब्द उसके ज़ेहन मे
ढुढती है कलम
दिख जाता है घर मे
बिखरा कचरा,कुछ धूल
और कविता
कर्तव्य बन समा जाती है
झाडू मे और सजा देती है
घर के कोने कोने को
उन शब्दों से
फिर आते हैं कुछ शब्द
कलम ढूढती है
पर दिख जाती हैं
दो बूढी बीमार आँखें
दवा के इंत्ज़ार मे
बन जाती है कविता करुणा
समा जाते हैं शब्द
दवा की बोतल मे
जीवनदाता बन कर
शब्द तो हर पल कुलबुलाते
कसमसाते रहते हैं
पर बनाना है खाना
काटने लगती है प्याज़
बह जाते हैं शब्द्प्याज़ की कडुवाहट मे
ऐसे ही कुछ शब्द बर्तनों की
टकराहत मे हो जाते है
घायल
बाकी धूँए की परत से
धुंधला जाते हैं
सुबह से शाम तक
चलता रहता है
ये शब्दों का सफर्
रात में थकचूर कर
कुछ शब्द बिस्तरकी सलवटों
मे पडे कराहते
तोड देते हैं दम
पर नहीं मिलती कलम
नही मिलता वक्त
बरसों तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर
बेटे को सरहद पर भेज
फुरसत मे लिखना चाहती है
वीर रस मे
दहकती सी कोई कविता
पर तभी आ जाती है
सरहद पर शहीद बेटे की लाश
मूक हो जाते हैं शब्द
मर जाती है कविता
एक माँ की
अंतस मे समेटे शहादत
की गरिमा ऐसे ही
कितनी ही कवियत्रियों को
नहीं मिलती कलम
नहीं मिलता वक्त
नहीं मिलता नसीब
हाथ की लकीरों पर ही
तोड देती हैं दम
जन्म से पहले
जो ना लिखी जाती हैं
ना पढी जाती हैं
बस महसूस की जाती हैं
शायद यही हैं वो
अमर कवितायें


07 July, 2009

गताँक से आगे दिल के पन्ने---------- संस्मरण

तीनो जब सफदरजँग अस्पताल पहुँचे तो वहाँ काफी पूछताछ करने पर पता चला कि इस अस्पताल मे जगह नहीं थी उन दिनों सेल्फ इमोलेशन के बहुत केस हो रहे थे इस लिये इस अस्प्ताल मे जगह नहीं मिली थी या कम्पनी वालों का कोई षडयँत्र था------- मुझे आज भी विश्वास है कि अगर उसे सही उपचार मिलता तो शायद बच जाता
उसे जे.पी अस्पताल ले गये थे हमलोग फिर जेपी अस्पताल पहुँचे तब मोबाईल तो होते नहीँ थे---- और जो मुश्किल हमे उस दिन आयी उसे शब्दों मे लिखा नहीं जा सकता एक ओर जवान बेटा जिन्दगी और मौत से लड रहा था दूसरी ओरे कंपनी वालों का ये गैरज़िम्मेदाराना रवैया! फिर हम लोग जे पी अस्पताल पहुँचे तो बाहर कम्पनी की एक गाडी खडी थी---हमने जल्दी मे उन्हे बताया कि हम लोग नगल से आये हैं और शशी के पेरेँटस हैं------वहाँ उसके कुछ दोस्त हमे वार्ड मे ले गये-------
जैसे ही हमने बेटे को देखा कलेजा मुँह को आ गया 80 प्रतिशत बर्न था-----सारा शरीर ढका था----था जैसे वो हम लोगों का ही इन्तज़ार कर रहा था----देखते ही उसने मुझे इशाराकिया कि रोना नहीं और अपने दोस्त को स्टूल लाने के लिये इशारा किया-------हमारे आँसू नहीं थम रहे थे ----उसके दोस्तों ने हमे पानी पिलाया मगर एक घूँट भी हलक से नहीं उतर रहा था------उसने मेरा हाथ जोर से पकड लिया ये दोनो भाई तो बाहर चले गये और उसके दोस्तों से पूछताछ करने लगे------मैने उसके चेहरे को सहलाया--- उसके माथे को चूमा----- और उसके हाथ को जोर से पकड लिया उसके चेहरे और हाथों के उपर के हिस्से के सिवा हर जगह जले के निशान थे---- कपडा उठा कर उसके शरीर को देखने लगी तो उसने मेरा हाथ जोर से दबा कर मुझे मना कर दिया मैने पूछा बेटा ये तुम ने क्या किया--------ये किस जन्म का बदला लिया------उसने बस इतना ही कहा----मैने कुछ नहीं किया ----वो जो मैने बताया था कि------ अभी उसने इतना ही कहा था ---कम्पनी के एक आदमी ने उसे चुप करवा दिया और मुझ से कहा कि आँटी अभी आप बाहर बैठिये डाक्टर आने वाले हैं-----बाद मे आप जितनी चाहें बातें कर लेना वो चुप तो हो गया मगर उसने मेरा हाथ नहीं छोडा और ना ही मैं बाहर गयी--------
सामने लाडला बेटा क्षण क्षण मौत के मुँह मे जा रहा था और हम कुछ भी कर पाने मे असमर्थ -----------
बाहर ये दोनो रो रो कर बेहाल हो रहे थे मगर कोई हमे कुछ भी बताने से कतरा रहा था-----वो एक टक मेरी ओर देख रहा था----पता नहीं कहाँ से उसकी आँखों मे इतना दर्द उभर आया था मुझे लगा कि जलन से दर्द हो रहा होगा मगर वो जान गया था कि मै इन्हें सदा के लिये तडपने के लिये छोडे जा रहा हूँ--------जरा मुंह खोला मैं आगे हुई ------- वो बोला-----जैसे कहीं दूर से आवाज़ आ रही थी-------- मैने आपको बताया था कि मुझे----
कि मुझे सपना आया था कि कोई मुझे---मारने------ के लिये आता है------वो------- और इसके आगे वो कुछ ना कह सका------- बेहोश हो गया-----सारा दिन हम उसके सिरहाने कभी हाथ पकडते कभी उसे बुलाने की कोशिश करते----मगर उसकी नीँद गहरी होती गयी------ उसके दोस्तों ने हमे बहुत कहा कि आपके लिये पास ही कमरे बुक करवा दिये हैं आप चल कर खाना खा लें और आराम कर लें मगर आराम तो शायद जीवन भर के लिये छिन गया था-------फिर वो खाना वहीं ले आये मगर सामने जवान बेटा जाने की तयारी कर रहा हो तो कोई एक भी कौर कैसे खा सकता था------ ुसके बेड के साथ ही हमने एक चद्दर बिछा ली और दोनो वहीं बैठ गये भाई साहिब को जबरन कमरे मे भेज दिया मगर वहाँ कहाँ उनका मन टिकता था अभी पत्नि और बेटी के गम से उभर नहीं पाये थे कि अब बेटा भी----------- बार बार कमरे से बेटे को देखने आ जाते---------
------- मै भी कभी फिर से उसका हाथ पकड कर बैठ जाती----कभी दोनो इसकी बातें करने लगते------उसके दोस्तों से भी सच्चाई का कुछ पता नहीं चला----सब जैसे अजीब सी खामोशी ओढे हुये थे------- बास का कहीं अता पता नहीं था---- अर्जेन्ट काम के लिये गये ---क्या मौत से भी कुछ अधिक काम हो सकता है -----शायद------
हमने उसके शरीर से जब कपडा उठा कर देखा तो उसकी छाती मे बाई ओर चाकू का निशान था चाकू से उसके सीने पर वार कर उपर से
से मिट्टी का तेल डाल कर जलाया गया था------ अगर ये दिल पर चाकू नहीं लगा होता तो शायद वो बच जाता मगर जिसने भी मारा था बडी होशियारी और पूरे पलान से मारा थाएक आदमी का तो काम हो नहीं सकता क्यों कि वो भी 6 फुट का भरवां शरीर का जवान था------ लडकियों की तरह सुन्दर गोरा और बहुत शरमीला सही मायने मे एक इन्सान था------- देश के लिये और समाज के लिये कुछ करने का जज़्वा लिये कुछ भविश्य के पलान मेरे साथ बनाता था-------इससे पहले वो जब घर आया था तो एक महीना घर रहा अर उसने कहा था कि अब आपसे नौकरी छुडवा लूँगा अपने ज़िन्दगी मे बहुत मेहनत कर ली अब हम मिल कर एक ऐसी संस्था चलायेंगे जो गरीब बच्चों की पढाई लिखाई के लिये काम करेगी-------- इस उम्र मे ये जज़्वा मुझे हैरानी होती थी------- आज जब भी ऐसे किसी लडके को देखती हूँ तो मुझे उस मे वही दिखाई देता है-------- बस कम्पनी के लोग इस बात पर अडे रहे कि इसने सेल्फ इमोलेशन की है अब तो कोट दवार जा कर ही कुछ पता लग सकता था-----कभी पोलिस से पाला नहीं पडा था--------- समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें-------
अगले दिन तक उसका चेहरा और आँखें भी सूज गयी थी------ अस्पताल वालों का रवैया इतना खराब था कि यहाँ कुछ ना ही कहूँ तो अच्छा है-------सुबह से ही उसके मुँह से काफी सक्रीशन्स निकल्ने लगी थी बाहर से तो साफ कर देते मगर उसके गले से घर्र घर की आवाज बहुत आ रही थी एक बार स्ताफ ने मशीन से साफ किया पर बार बार कहते तो डाँट देती फिर कई बार उनकी नज़र बचा कर मैं मशीन से साफ कर देती------- डरिप की बोतल भी कई बार खुद ही बदल देती------ागले दिन के शाम के 6 बज गये थे और मैं तो आते ही समझ गयी थी कि बस अब इसका हमारा साथ इतना ही है फिर भी जो दो दिन मिले उन्हें जी भर कर उसके साथ जी लेना चाहते थे---------
ये दोनो उसके दोस्तों से बाहर बातें कर रहे थे और मै उसका हाथ पकड कर उसके बेड के पास बैठ गयी----उस समय अपने दिल का हाल शायद मैं दिल छीर कर भी ना बता पाऊँगी मेरे अपने तीन बेटियाँ थी और ये दोनो बेटे थे सोचती हूँ उधार की कोई चीज़ मुझे फलती ही नहीं है------- संकट के समय मेरा सरा ध्यान उस संकट को दूर करने मे होता है मैं औरतों की तरह उस समय ्रोती नहीं हूँ--------- और अब जब जान गयी थी कि ये संकट अब टलने वाला नहीं तो हिम्मत जवाब दे गयी और मेरे सब्र का बाँध टूट गया था उसका हाथ जोर से पकड कर मैं फूट फूट कर रोने लगी--------कोई आज मुझ से मेरी जान ले ले और बदले मे बेटे की जान दे दे------हम सब इसके बिना नहीं जी पायेंगे---------कैसे महसूस होता होगा जब कोई दिल का टुकडा आप से बिछुड रहा होता है और आपके सामने तड्प तडप कर दम तोड रहा है आप कुछ नहीं कर पा रहे हैं हम तीनो बस रो रहे थे------ और 26 aअक्तुबर की काली रात 11 बजे उसने आखिरी साँस ली------- सब कुछ जैसे खत्म हो गया-----हम लुटे से देख रहे थे मौत का तमाशा------- सुबह तक उसके सिरहने रोते बिलख्ते बैठे रहे------ सुबह उसे पोस्ट मार्टम के लिये ले गये------ काश कि कोई उसका दिल चीर कर मुझे देता तो पूछती ये सब कैसे हुआ------- हमे दोपहर एक बजे लाश मिली------- घर मे किसी को बताया नहीं था------- यही कहा था कि इलाज चल रहा है बूढे दादा दादी का बुरा हाल था-------- कम्पनी वालों ने गाडी का प्रबँध किया और उसके 4-5 दोस्त साथ दूसरी गाडी मे भेज दिये--- गाडी मे सीट के नीचेलाश थी और उपर हम लोग बैठे थे----कितना भयावह होगा वो पल कोई भी सोच सकता है------ अब दो दिन से कुछ खाया भी नहीं था--- रो रो कर दिल बैठा जा रहा था भाई सहिब का भी बुरा हाल था रास्ते मे लडकों ने गाडी रुकवाई और एक ढाबे से खाने का प्रबँध किया-------- ये सब तो नीचे ढाबे मे चले गयी मगर मैं वहीं बैठी रही------ उससे एक पल भी -----पल भी दूर नहीं होना चाहती थी-----कल के बाद दूर चला जयेगा तो कहीं भी बैठी रहूँगी कौन पूछेगा------- मन मे पता नहीं क्या आया कि मुझे लगा कि जोर की भूख लगी है वैसे भी मुझे टेन्शन मे बहुत भूख लगती है और उस दिन बेटे की लाश के उपर बैठ कर मैने खाना खाया------- मैं भी उसे बता देना चाहती थी कि तुझ बिन भी हम जिन्दा रहेंगे तू बिलकुल चिन्ता मत करना-------
रात को हम घर पहुँछे तो शहर और गाँव से सब लोग जमा थे---हमने एक घँटा पहले फोन कर दिया था कि हम लाश ले कर आ रहे हैँ--------बेटे की शादी के सपने देख रहे थे आज उसकी लाश देख कर दुनिआ ही रो पडी------ फिर पता नहीं कैसे सब लोग उतरे मुझे इतना पता है कि मैं रात भर मे एक मिनट उसका हाथ नहीं छोड पाई----- मगर अगले दिन उसे सब ले गये मेरा हाथ छुडा कर----- सारा शहर और गाँव उसकी उसकी आखिरी यात्रा मे हुमहुमा के चल रहा था------- और उसके बाद आज तक उसे तलाश रही हूँ
इसके बाद क्या होना था उस की करम किरिया के बाद कोटद्वार मेरे पति और भाई सहिब गये थे पोलिस को साथ ले कर जब घर खोला तो कफी सामान गायब था रसोई मे गये जहाँ बताया था कि उसने अपने आप आग लगायी तो नीछे फर्श पर कोई ऐसा निशान नहीं था कि यहाँ तेल डाला गया हो रसोई की शेल्फों पर कागज़ बिछे हुये थे जो तस के तस थे हाँ दिवार पर हाथ के जले पँजे के निशान जरूर थे बाहर बरामदे मे उसका ट्रँक पडा था जिसके नीचे जले के निशान थे शायद उसके जले हुये कपडों से आग बुझाने क्वे लिये रखा गया था ट्रँक के बीच पडे कपडे भी नीचे की तह जल गयी थी मतलव उसे रसोई से बाहर जलाया गया था वहाँ घर भी कुछ दूर थे मगर उसके बास का घर इतना दूर नहीं था कि उसकी चीखें सुनाई ना देती खैर बहुत हाथ पैर मारे मगर कुछ पता ना चला जब वो पिछली बार घर आया था तो उसने बताया था कि उसे बास के कुछ राज पता चले हैं कि वो कम्पनी को किस तरह लूट रहा है इसके बारे मे बास से उसकी बात भी हुई बास के एक नेपाली नौकर था जो उसे आजकाल घूर घूर कर देखता था इससे पहले भी वो बैंगलोर टूर पर गया तो उसके घर चोरी हो गयी थी हम लोग उसकी ट्राँसफर पँचकूला करवाने के लिये प्रयास रत थे मगर तभी ये घटना हो गयी निस्ँदेह उस नेपाली नौकर और बास का कहीं ना कहीं हाथ था मगर हमारा उस शहर मे कौन था जो सहायता करता एक दो बार फिर गये मगर पोलिस ने आत्म हत्या का मामला कह कर उसे केस को बाद मे फाईल कर दिया------ इस तरह हम लुटे हुये सब कुछ देखते समझते हुये भी कुछ ना कर सके---------- आज भी इन्तज़ार रहता है कि शायद कहीं से निकल कर एक बार आ जाये मगर जाने वाले कहाँ आते है------------

06 July, 2009

International Blogger's Community


मै आपको बताना चाहूँगी कि श अनिल काँत जी ने मुझे international blogger's community award दिया है मैं अनिल जी की दिल से शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे इस काबिल समझा
1. The person who tagged me:- Anil kant
3. Date of Tag:- 5th july, 2009
4. Persons I have tagged are (जिन्हें मै आगे अवार्ड देना चाहूँग)
The Rules for this tag are:
1. Link the person who tagged you.
2. Copy the image above, the rules and the questionnaire in this post.
3. Post this in one or all of your blogs.
4. Answer the four questions following these Rules.
5. Recruit at least seven (7) friends on your Blog Roll by sharing this with them.
6. Come back to BLoGGiSTa iNFo CoRNeR (PLEASE DO NOT CHANGE THIS LINK) at http://bloggistame.blogspot.com and leave the URL of your Post in order for you/your Blog to be added to the Master List.
7. Have Fun!
Questions & Your Answers:
1. The person who tagged you:
2. His/her site's title and url:
3. Date when you were tagged:
4. Persons you tagged:
दिल से एक पन्ना------------- संस्मरण

एक दिन अपनी एमरजेन्सी ड्यूटी पर् थी सुबह से कोई केस नहीं आया था ऐसे मे मैं किताबें पढती रहती या किसी मरीज के रिश्तेदार या मरीज से बाते करती रहती थी उस दिन किताब पढने मे मन नहीं था कुछ परेशान भी थी तो बाहर धूप मे कुर्सी रखवा कर बैठ गयी कुछ देर बाद एक बज़ुर्ग औरत मेरे सामने आ कर स्टूल पर बैठ गयी वो एक दुखी औरत थी अक्सर अस्प्ताल मे आती रहती थी और मेरे साथ कई बार अपने दुख रो लेती थी उसने बैठते ही पूछा कि बेटी क्या बात है आज कुछ उदास लग रही हो ------ मन ही मन उस की पारखी नज़र के लिये आश्चर्य हुआ मगर अनुभव एक ऐसी चीज़ है जो दिल को आँखें दे देती है मैने कहा नहीं कोई बात नहीं तो वो कहने लगी कि बेटी देखो मैं तुम से पूछूँगी नहीं मगर मैने तुम्हें कभी उदास नहीं देखा इस लिये कह रही हूँ कि कभी कोई दुख सताये तो उस समय उस दुख से निज़त पाने का एक तरीक है मै तो ऐसे ही करती हूँ कि उस समय अपने किसी पहले के उससे भी बडे दुख के पन्ने खोल लो उन्हें पढो फिर सोचो कि इतने मुश्किल समय मे भी तो तुम जीती रही हो खाया पीया और सब काम किये फिर भी मरी तो नहीं न इसी तरह ये दुख तो शायद उसके आगे कुछ भी ना हो अगर तुम्हारे पास कोई बडा दुख नहीं है तो किसी अपने से दुखी को देखो तो तुम्हें अपना दुख बहुत छोटा लगने लगेगा -------- ऐसे ही मुझे समझा कर वो चली गयी--------- और तब से मैने इस सूत्र को जब भी आजमाया तो पाया कि जैसे मेरा दुख आधा रह गया है और मैं जल्दी उदासी पर काबू पा लेती------ अब तक बहुत दुख सुख झेले मगर इस सूत्र को कभी हाथ से जाने नहीं दिया इसी लिये तो कहते हैं कि दुख बाँटने से घटता है और खुशी बढ जाती है------ आज कल भी कुछ मन की स्थिती ऐसी ही रही है तो आज फिर से अपने मन का एक पन्ना खोल कर बैठ गयी और कुछ देर के लिये परेशानी तो भूल ही गयी जब याद भी आयी तो इतनी बडी नहीं लगी जितनी मैं इतने दिन से सोच रही थी ऐसे ही एक पन्ने से आज आपका परिचय करवाना चाहूँगी------
कभी कभी मन की परतों के किसी पन्ने को खोल लेना भी मन को सकून देता है -- ( पन्ना जो सब से कीमती हो दिल के करीब हो------ इसे संस्मरण तो तभी कहा जा सकता है जब ये भूल गया हो मगर ये एक पल भी कभी भूला नहीं है तब भी इसे संस्मरण ही कहूँगी आज तक हर दुख को बडे साहस से सहा है वैसे भी असपताल जैसी जगह मे जहाँ हर पल लोगों को दुखी ही देखा है तो आदमी यूँ भी दलेर हो जाता है और शहर मे मैं अपने साहस और जीवटता के लिये जानी जाती हूँ--- मगर शायद ये उम्र का तकाज़ा है या दिल का कोई कोना खाली नहीं रहा कि आज कल मुझे जरूरत महसूस होती है कि किसी के साथ इन्हें बाँटू कई बार ये भी लगता है कि दुख मेरे हैं किसी को क्यों दुखी करूँ और इन कागज़ों से कह कर मन हल्का कर लेना ही श्रेस्कर लगता है 1 फिर दुख तो जीवन की पाठशाला हैं जिन मे आदमी जीवन जीने के पाठ पढता है औरों के साथ बाँटने से दूसरे आदमी को पता लगता है कि उससे भी दुखी कोई और है तो उसे अपना दुख कम लगने लगता है मैने लोगों के दुख बाँट कर यही सीखा है 1
24--10--1990
उस दिन मैं और मेरे पति एक पँडित जी से अपने बेटे की कुन्डली दिखा कर आये थे---उसकी शादी के लिये साथ मे लडकी की कुन्डली भी थी------- मुझे लडकी बहुत पसंद थी और बेटा भी कहता था कि मुझे तो आपकी पसंद की लडकी ही चाहिये और मजाक मे कह देता मा उसके साथ अपनी कुन्डली जरूर मिलवा लेना--अगर सास बहु की नहीं पटी तो मैं मारा जाऊँगा------ वो कोट दुआर मे बी ई एल कम्पनी मे 1990 मे सीनियर इन्जीनियर था शायद कोई ब्लोगर जो अब इस कम्पनी मे हो उसे जानता हो 1-----हम अभी घर आये ही थे कि अस्पताल से किसी के हाथ सन्देश आया कि कोट दुआर से टेलीफोन आया है कि ेआपके बेटे ने सेल्फ इमोलेशन कर ली है और उसे देल्ली सफदरजंग अह्पताल ले कर जा रहे हैं आप वहीं आ जाईये----उन दिनो आरक्षण के खिलाफ बच्चे सेल्फ इमोलेशन कर रहे थे हम तो हैरान परेशान तभी हमरे स्पताल से डक्टर और कई स्टाफ के लोग आ गये----हमे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था------वो तो ऐसा नहीं था फिर उसके घर मे कोई बेकार नहीं थ वो क्यों ऐसा कदम उठायेगा हम लोगों ने इनके बडे भाई सहिब को फोन किया---वो उनका बेटा था मगर बचपन मे जब वो 8--9 साल का था माँ की मौत हो जाने से हमने ही उसे पाला पोसा था शुरू से वो हमारे पास ही था अपने पिता के पास या गाँव कम ही जाता था वो इतना समझदार था कि कई बार मैं भी हैरान हो जाती थी और मेरी परेशानी का हल वो इतनी जल्दि निकाल लेता कि उसके बिना मुझे लगता कि मुझ पर मुसीबतों का पहाड टूट पडा है मेरी शादी के तीन महीने बाद ही इनकी मौत हो गयी थी तब हम गाँव मे ही रहते थे 1
ये पाँच भाई बहन थेऔर मेरी नौकरी के साथ इनका पालन पोशण कोई आसान काम नहीं था सब को तयार करना स्कूल भेजना और घर के काम निपटा कर खुद ड्यूटी जाना और वो उम्र तो मौज मस्ती की होती है --- खास कर जब नयी नयी शादी हुई हो फिर भी हम दोनो पति पत्नि ने मिलकर इसे निभाया----- गाँव का सकूल पाँचवीं तक था मुझे भी ड्यूटी आने जाने मे मुश्किल आ रही थी इस लिये हमने शहर मे रहने का फैसला कर लिया जो कि साथ ही तीन किमी दूर था-----------

भाई सहिब गांव से20 मिनट मे आ गये उस समय आठ बज गये थे और गाडी 9-30 पर जाती थी-----हमने जल्दी से कुछ जरूरी सामान लिया हमे डाक्टर साहिब स्टेशन छोड आये-------- बाकी बच्चों को मेरे स्टाफ ने ही संभाला हम ने ये सफर कैसे काटा होगा इसे बताने की जरूरत नहीं है ऐसा सफर उस दिन भी किया था जब इसकी बडी बहन की दहेज हत्या हुई थी और हम ऐसे ही गये थे उस दिन भी-------

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