गज़ल
तमन्ना सर फरोशी की लिये आगे खड़ा होता
मैं क़िसमत का धनी होता बतन पर गर फना होता
अगर माकूल से माहौल में मैं भी पला होता
मेरा जीने का मक़सद आसमां से भी बड़ा होता
न कलियां खिलने से पहले ही मुरझातीं गुलिस्तां में
खिज़ाओं का अगर साया न गुलशन पर पड़ा होता
करें क्या गुफ्तगू उससे चुरा लेता है जो से नज़रें
बताता तो सही मुझसे अगर शिकवा गिला होता
कुरेदा है मिरे ज़ख्मों को अकसर तूने फितनागर
यकीं करते न अपना जान कर तो क्यों दगा होता
परिंदे ने भी देखे थे बुलंदी के कई सपने
न दुनिया काटती जो पंख तो ऊँचा उड़ा होता
न हरगिज़ भूख लेजाती उन्हें कूड़े के ढेरों पर
गरीबों के लिए सरकार ने गर कुछ किया होता\
तमन्ना सर फरोशी की लिये आगे खड़ा होता
मैं क़िसमत का धनी होता बतन पर गर फना होता
अगर माकूल से माहौल में मैं भी पला होता
मेरा जीने का मक़सद आसमां से भी बड़ा होता
न कलियां खिलने से पहले ही मुरझातीं गुलिस्तां में
खिज़ाओं का अगर साया न गुलशन पर पड़ा होता
करें क्या गुफ्तगू उससे चुरा लेता है जो से नज़रें
बताता तो सही मुझसे अगर शिकवा गिला होता
कुरेदा है मिरे ज़ख्मों को अकसर तूने फितनागर
यकीं करते न अपना जान कर तो क्यों दगा होता
परिंदे ने भी देखे थे बुलंदी के कई सपने
न दुनिया काटती जो पंख तो ऊँचा उड़ा होता
न हरगिज़ भूख लेजाती उन्हें कूड़े के ढेरों पर
गरीबों के लिए सरकार ने गर कुछ किया होता\