29 August, 2009

आओ कर लो मेरा वरण Align Centre

हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
शुद्ध करो मेरा
अन्त:करण
आओ कर लो मेरा वरण
मेरे अवचेतन मन पर
त्रिश्णाओं स्पर्धाओं का धूआँ
बन जायेगा एक दिन
मेरे विनाश का कूआँ
लगा लो अपनी शरण
आओ कर लो मेरा वरण्
मन को लगी है चोट
मन रही कचोट
छटपटा रहा मन दर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
दे दो चेतन प्राण
दे दो दिव्य ग्यान
स्वीकार करो समर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
सुसंकल्प जगा दो
सुविग्य बना द
लगाओ मुझे शरण्
आओ कर लो मेरा वरण
हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
आओ कर लो मेरा वरण
शुद्ध करो अन्त:करण


28 August, 2009

ये क्या हो गया
साथ ही एक गाँव की घटना पर ये पँक्तियां मन मे आयी।
एक औरत पंचायत मे चुनाव जीत गयी ।
कहने को वो पंच थी मगर काम सारा उसका पति करता था
वो तो बस आँगूठा छाप ही थी।
पंचायत मे हेरा फेरी के केस मे उस औरत पर केस बन गया।
गलती आदमी ने की भुगत रही है औरत ।जिसे कुछ पता नहीं कि क्या हुआ।
ऐसे और पता नहीं कितने केस होंगे। अब ऐसे केस मे कानून भी क्या कर सकता है।
उस औरत ने कई बार कोशिश की थी कि वो पंचायत मे जाया करे
मगर आदमी ने उसकी एक नहीं चलने दी।
इस पर कुछ शब्द कविता के रूप मे------


ये क्या हो गया
पुरुष,
औरत के कन्धे से
कन्धा मिला कर
आज़ाद हो गया
नारी के कन्धे से
बन्दूक चला कर
बेदाग हो गया
देखो! मुज़रिम बनी
उसकी माँ बहन बेटी का
क्या हश्र हो गया
और इन्साफ ?
कानून की अन्धी
चद्दर ओढ कर
जाने कहाँ सो गया

26 August, 2009

गज़लAlign Centre
दुख मे पलती नारी तौबा
जीवन भर लाचारी तौबा

मेरे चैन का दुश्मन है जो
उस से ही दिल हारी तौबा

मुह पर मीठा बोलें सब
दिल मे देख कटारी तौबा

कौन किसी का दुख बँटाता
झूठी रिश्तेदारी तौबा

माँ ना हो तो पीहर कैसा
भाई की सरदारी तौबा

आटा नकली दालें नकली
देखो चोर बजारी तौबा

अन्धी पीसे कुत्ता चाटे
माल जु है सरकारी तौबा

जनता का रखवाला सांसद
जमता पर अब भारी तौबा

चोरों मे से चोर चुनें अब
वोटर की लाचारी तौबा

अफसर करते सैर सपाटे
कारें हैं सरकारी तौबा

चाल समझ तू दुनिया की
बात करें दो धारी तौबा

कैसे रिश्ते रह गये"निर्मल"
माँ ने बेटी मारी तौबा


24 August, 2009

आना मेरी रूह के शहर

अर्धांगिनी
आधेपन की साक्षी
Align Centreफिर भी चाहते हो
सात जन्मों का बन्धन?
अगर चाहते हो
तो बनाओ
पूर्णागिनी ,पूर्णाक्षरी।
केवल जिस्म नही
अपनी रूह के साथ ।
आना मेरी रूह के शहर।
तुम आते हो
आधेपन मे और
टाँग जाते हो
कीली पर कुछ आपेक्षाओं की
गठरियाँ कुछ बन्धन कुछ सवाल
जिन्हें हल करते हुये
रह गयी हैं
मेरी कुछ कल्पनायेंअनव्याही
कुछ सपने अधूरे
तुम चाहते हो
जन्म जन्म का साथ
सम्पूर्ण समर्पण
तो आना
मेरी रूह के शहर
मगर आना एक एहसास ले कर
कुछ अरमान ले कर
एक उन्मुक्त भाव ले कर
सिर्फ मेरे लिये
और
बरस जाना
बादल बन कर
मेरे हृदय की धरा पर
मैं समा लूंगी तुझे
और बुझा लूँगी
जन्मों की प्यास
और व्याह दूँगी
अपनी कुंवारी कल्पनायें
तुम्हारी रूह के साथ
जन्म जन्म के लिये
कभी आना
हवा का झोँका बन कर
उडूँगी तुम्हारे पाँव की धूल बन कर
तुम्हारे साथ साथ्
और सजा लूँगी अपने सब सपने
कभी बहना झरना बन कर
मैं आऊँगी प्यासी बन कर
और बुझा लूँगी अपनी
जन्मों की प्यास
मगर आना एक एहसास बन कर
मत लाना अपनी आपेक्षायें साथ
आना मेरी रूह के शहर
व्याह दूँगी अपनी कुंवारी कल्पनायें
तुम्हारी रूह के साथ्
कर दूँगी सम्पूर्ण समर्पण
और बन जाऊँगी
सम्पूर्णाक्षरी
सम्पूर्णांगिनी
जन्म जन्म के लिये
आना मेरी रूह के शहर

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