दुखान्त-- सुखान्त
उस दिन सोच कर आयी थी --- बाजी को बता दूँगी कि मै अमन से प्यार करती हूँ और उससे शादी करना चाहती हूँ अमन की मम्मी भी मुझ से कितना प्यार करती है और मुझे बहु बनाने के लिये कितनी उतावली हैं।
घर पहुँचते पहुँचते ख्यालों के पुलाव बनाये जा रही थी---- ये उतावलापन भी दूध के उफान सा होता है बिना सोचे समझे सब कुछ उगल देने को आतुर-----। समझ नही आ रहा था कि बात कैसे शुरू करूँ? क्या बाजी मान जायेंगी? बस फिर उफान नीचे सरक जाता---- अगर मान भी गयी तो क्या पापा को मना पायेंगी?----- कुछ आशा की झाग समेटे घर मे दाखिल हुयी। बाजी ड्राईंग रूम मे बैठी कोई किताब पढ रही थीं। कितना ओज़ था उनके चेहरे पर आत्मविश्वास के रुपहली पर्त ---- । सामने दीवार पर उनकी आदमकद फ्रेम मे जडी फोटो लगी थी। बाजी कभी अपनी शादी की कोई बात नही करती थी।मुझे उनके पति के बारे मे कुछ पता नही था बस इतना पता था कि वो विधवा हैं। मै उनकी फोटो के पास जा कर खडी हो गयी----
"बाजी मुझे आपकी ये फोटो बहुत अच्छी लगती है---- जैसे कोई महारानी खडी हो। इतनी भारी साढी और जेबर क्या ये जेबर असली हैं?" --- बात शुरू करने से पहले मैं उन्हें टटोलना चाहती थी।
"खाइस सोने और हीरे के"
"फिर तो बहुत मंहगे होंगे? कितनी कीमत होगी इनकी?"
"बेटी इनकी कीमत मत पूछ । इन जेबरों की ऋण मै आज तक नही चुका पाई।" बाजी ने ठँडी साँस भरते हुये कहा।
"ऋण? क्या ये आपने खुद बनवाये थे?" मैने हैरानी से पूछा।
" नही ससुराल वालों ने शादी मे पहनाये थे और बदले मे मेरे सारे सपने गिरवीं रख लिये थे।"
" वो कैसे?" मै विस्मित सी उनकी तरफ देख रही थी।
न जाने कितनी पीडा कितने अतीत के साये उनकी आँखों मे बदली बन कर छा गये थे। आँखों की नमी बता रही थी कि उन्होंने बहुत दुख झेले हैं।
"क्या करोगी जान कर ? जाओ अपनी पढाई करो।" बाजी जरा सोचते हुये बोली।
"बाजी आज मै जानकर ही रहूँगी। आज आपसे अपने मन की बात करने आयी थी। आपकी तस्वीर देख कर मुझे भी लगता है कि मै अपनी शादी किसी अमीर परिवार मे ही करूँगी जहाँ महाराणी की तरह राज करूँ धन दौलत बढिया कपडे,जेबर ,ऎश आराम गाडी बंगला सब कुछ हो और नौकर चाकर आगे पीछे हों------"
"अच्छा अब जमीन पर आ जाओ। जितने पँख फैला सको उतनी ऊँचाई तक ही उडान भरनी चाहिये। मगर तुम ऐसी बातें कैसे सोचने लगी?पहले खुद को इस काबिल बनाओ कि खुद इतना धन कमा सको। आत्मनिर्भरता का सुख और खुशी दुनिया की किसी भी दौलत से बडी होती है। फिर तेरे मध्यम परिवार के माँ बाप कहाँ से ऐसा घर ढूँढेंगे?"
" बाजी मेरी बात छोडो पहले आप बताओ कि जब आपके ससुराल वाले इतने आमीर थे तो आपने इतनी छोटी सी नौकरी क्यों की और इस छोटे से घर मे क्यों रह रही हैं?" आज उनके आतीत को जानने की उत्सुकता बढ गयी थी। हम दो साल पहले ही इस घर मे, उनके पडोस मे आये थे बस इतना ही जानती हूँ कि वो विधवा हैं और उनका एक बेटा है जो डाक्टरी की पढाई कर रहा है। दो साल मे ही बाजी हमारे घर की सदस्य जैसी हो गयी थी।
" शुची आज तुम्हें ये सब बताना जरूरी हो गया है। क्योंकि जिस आसमान के तुम सपने ले रही होउसके मैने भी सपने देखे थे। बिना पँख ऊदने की कोशिश की लेकिन धडाम से नीचे जमीन पर आ गिरी।" बाजी ने अपनी कहानी शुरू की और मैं उनका बाजू पकड कर उनसे सट कर बैठ गयी।
" हमारे पडोस मे एक शादी थी। उस शादी मे मेरे ससुराल वालों ने मुझे देखा तो मै उनको भा गयी। उन्होंने अपने इसी पडोसी के दुआरा मेरे रिश्ते की बात चलाई।------ क्रमश: