15 August, 2015

कविता

बहिनो भाईओ सब से पहले सब को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ्कामनायें1
उसके बाद  सब के भाजी स बी एस पावला जी का धन्यवाद जिन्हों ने मेरी समस्या का समाधान किया 1पूरी कहानी तो वही बता सकते हैं लेकिन मुझे इतना पता है कि वो शरारत किसने की नाम बताने की मजबूरी ये है कि वहां कुछ अच्छे लोग भी हैं जिनकी वजह से इस बार मै चुप कर गयी वो ये मत सोचें कि आगे से भी चुप रहूंगी1 सरकारें आती जाती रहती हैं  ये भी याद रखें 1किसी ने उसमे एक स्म्रिती इरानी की वीडिओ के साथ जगल नेट वर्क नाम से  कुछ डाउन्लोद कर दिया था1 इस कम्प्यूटर को मै या मेरे बच्चे ही चलाते हैं बच्चे तो आये नही और मै ऎसी चीज़ें डाउन लोड करती नही इस लिये उस शक्स का पता चल गया1लानत है ऎसे लोगों पर, जिनके मन मे इतनी बेईमानी है और जिसके कहने पर ये घ्रिणित काम किया गया उसे भी लानत है1 आज आज़ादी मनाने का दिन कैसे कहूँ कलम की आज़ादी ही छिनती जा रही है1 चलिये एक कविता जो 2006 मे छपी मेरी पुअस्तक से है -------

यथा राजा तथा प्रजा
 
जब समुदाय ,कुल और देश के प्रधान
अधर्म को देंगे अधिमान
 कर आदर्शों का परित्याग
प्रजा पर करेंगे अत्याचार
जब काम क्रोध मोह बढ जायेंगे
तो सत्युग त्र्ता दुआपर से
कलयुग ही आयेंगे
तब
प्रक्रितिक प्रकोप बढ जायेंगे
इन्द्र अग्नि वायू का प्रकोप
माहाप्रलय ही लायेगा
जो सारी मानवता को बहा ले जायेगा

जब जुल्मों की हवाय्रं
तूफां बन जाएंगी
प्रेम प्यार मानवता की
किश्तियां  डूब जायेंगी
धरा हिचकोले खायेगी
भुकम्प की त्रास्दी आयेगी
ऋतु विकार तांडव दिखायेगा
कण कन शोर मचायेगा

यथा राजा तथा प्रजा
नही कहा किसी ने बेवजह
अभी वक्त रहते इसको जान लो
खुद गर्ज़ी के लिये
न मानवता के प्राण लो

अधर्म का कर परित्याग
मानवता और जनपद से कर सद्व्यवहार
तो प्रक्रिति
तुझ पर रहम खायेगी
नही तो  सच मान
कि अब  जल्दी
महा प्रलय ही आयेगी

14 August, 2015

कविता -----ज़िन्दगी

बहुत दिनो बाद आना हुया1 मेरी रूह का शहर कितना सुनसान  पडा है! असल मे जब से इसका टेमलेट बदल गया है तब से यहाण आना अच्छा नही लगता सजावट न हो तोक्या करें इतनी लायक नही हूँ कि खुद इसका टेम्लेट बदल लूँ दूसरी जब पिछली बार खुद कोशिश की तो ब्लाग लिस्ट उड गयी1 उसके बिना भी मुश्किल लगता है1 दूसरा अधिक देर बैठने की समस्या1 देखती हूँ कैसे निपट पाती हूँ इन समस्याओं से1 लीजिये मेरी सब से पहली रछना जो इस ब्लाग पर पोस्ट की थी 1


कविता (जिन्दगी)
खिलते फूल सी मुसकान है जिन्दगी
समझो तो बडी आसान है जिन्दगी
खुशी से जियें तो सदा बहार है जिन्दगी
दुख मे तलवार की धार है जिन्दगी
पतझर बसन्तो का सिलसिला है जिन्दगी
कभी इनायतें  तो कभी गिला है जिन्दगी
कभी हसीना की चाल सी मटकती है जिन्दगी
कभी सूखे पते सी भट्कती है जिन्दगी
आगे बढने वालों के लिये पैगाम है जिन्दगी
भटकने वालों की मयखाने मे गुमनाम है जिन्दगी
निराशा मे जी का जन्जाल है जिन्दगी
आशा मे सन्गीत सी सुरताल है
कहीं मखमली बिस्तर पर सोती है जिन्दगी
कभी फुटपाथ पर पडी रोती है जिन्दगी
कभी होती थी दिल्बरे यार जिन्दगी
आज चौराहे पे खडी है शरमसार जिन्दगी
सदिओं से मा के दूध की पह्चान है जिन्दगी
उसी औरत की अस्मत पर बेईमान है जिन्दगी
वरदानो मे दाऩ क्षमादान है जिन्दगी
बदले की आग मे शमशान है जिन्दगी
खुशी से जीओ चन्द दिन की मेहमान है जिन्दगी
इबादत करो इसकी भगवान है जिन्दगी

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