03 September, 2010

आज कल कुछ लिख नही पा रही हूँ। अनूप की मौत के बाद उसके ब्लाग पर कुछ पँक्तियाँ लिखी थी वही लिख रही हूँ। कुछ सवाल उठे हैं उसके जाने से क्योंकि उसने पुराने जख्म फिर से हरे कर दिये हैं । आजकल बस उसी पर लिख रही हूँ।   ब्लाग बन्द करना भी नही---- चाहती कोशिश करूँगी जल्दी से उसी फार्म मे आऊँ।
कुछ सवाल 
सच मानो-- तुम्हारे जाने से दुखी नही हूँ
दुखी हूँ उस आसमान को देख कर
 जो इस रात के अन्धेरे मे
हम सब को0 आँसू दे कर खुद
जगमगा रहा है
चाँद इतरा रहा है
तारे जैसे मस्ती मे झूम रहे हैं
तुम्हारे उन के पास लौट जाने का जश्न
मगर धरती पर सब ओर सन्नाटा
गहरी उदासी सबकी शब्द भी मूक से हैं
अनुभूतियाँ, अभिव्यक्तियाँ, संवेदनायें
त्रस्त हैं ,कौन किस से क्या कहे?
 कुछ भी नही छोडा तुम्ने कहने को
और मेरा मन कुछ सवालों की
सलीब पर लटक गया है?
सब से पहला सवाल तुम से है
क्या तुम नही जानते थे
कि इन्सान को रोने के लिये भी
एक कन्धा चाहिये होता है
और तुम ने कितनी आसानी से,
या कहूँ कि बेरहमी से
अपना कन्धा खींच लिया
शायद तुम भी आजकल के हिसाब से
प्रैक्टीकल हो गये थे-- यही तो दुख है
 जो दिल से अपने होते हैं
उनका दुख की घडी मे कन्धा खींच लेना
कितना दर्द देता है
दिल की किचरें सम्भाले नही सम्भलती
काश! तुम ये महसूस कर पाते
बाकी सवाल फिर कभी-----

ये सवाल जब तक हम ज़िन्दा रहेंगे उठेंगे
शायद इतना दर्द उस मसीहे को भी
सलीब पर लटक कर नही हुया होगा
तभी तो वो उपदेश दे कर चले गये
मगर हम तो एक दूसरे को
सान्तवना भी नही दे सकते
फिर भी उसे जी कर दिखाना ही होगा

पोस्ट ई मेल से प्रप्त करें}

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner