वक्त के पाँव -----गताँक से आगे -(कहानी)
यासों से बाहर आयीजहाज एयरपोर्ट पर उतरने वाला था।उसके बाद बाहर निकलते एक घन्टा लग गया ।जैसी ही बाहर निकले सामने चाचाजी दिखाई दिये।आँखें बरस पडी----- माँ पिता जी सब याद आ गये।इतने सालों बाद भी चाचा बिलकुल वैसे ही लगे बस जरा कमजोर हो गये थे।चाचा जी के गले लग कर खूब रोई।टैक्सी ले कर घर की ओर चल पडे । कितना रास्ता चुपी मे निकल गया ---क्या पूछूँ--------
```**चाचा जी घर मे सब कैसे हैं\** मैने चुपी तोडी ।
**सब ठीक हैं बेटी तेरा इन्तज़ार कर रहे हैं।**
**शीला बुआ कैसी हैं।**
**क्या येहीं सब कुछ पूछ लेगी\खुद अपनी आँखों से देख लेना।**
**क्या आई हुई हैं ।**
**हा**
मुझे लगा चाचाजी कुछ उदास से हो गये हैं। तभी चाचा इनके साथ बातें करने लगे (कारोबार और बच्चों के बारे मे।4-5 घन्टे का सफर जैसे 4 दिन मे पूरा हुआ हो।
रास्ते मे देखती आ रही थी। इतने सालों मे जैसे भारत का नक्शा ही बदल गया था।शहर गाँव काफी विकसित हो गये थे।
**लो अपने गाँव की सडक शुरू हो गयी।** चाचाजी ने बताया।मैं हैरान ये मेरा गाँव्\ मुझे खुद पर हंसी आयी* इतने सालों बाद भी मै उस पुराने गाँव की कल्पना कर रही थी।कहते हैं वक्त के पाँव कभी रुकते नहीं। ना कभी पीछे मुडते हैं।फिर वक्त के पाँव पर खडा मेरा गाँव कैसे पीछे रह सकता है। कच्चे घरों की जगह पक्के बहु मंजिले मकान । छोटा स एक बाजार भे बन गया था कूँयें की जगह ट्यूबेल जब हम लोग यहाँ थे तो इतनी लम्बी लज्ज**रस्सी** से बालटी बान्ध कर कूयें से पानी निकाला करते थे और घडे भर कर सिर पर उठा कर घर लाते थे।मैं तो बडी उत्सुकता से देख रही थी कि कोई ताई चाची भाभी लम्बा सा घूँघट निकालेसिर पर घडा उठाये जाती मिलेगी। पर ना कोई घूँघट वली ना घडे वाली मिली।प्रिधानों मे पश्चिमी साये जरूर नज़र आये।
जिस गाँव मे साईकिल भी किसी किसी के पास होती थी ाब वहाँ गाडियाँ नज़र आ रही थी।स्कूटर मोटर साईकिल तो आम थे। तालाब की जगह पंचायत घर बन गया था।
एक चौडी सी गली मे हमारी गाडी दाखिल हुई।मै हैरान उस वेहडे के इतने दरवाजे\यहां तो एक ही दरवाज सारे घरों के लिये था जैसे किसी किले मे होता है।चाचा ने एक गेट के आगे गाडी रुकवाई।
चाचीजी और बच्चे भागे आये---- मैं तो सोच रही थी कि सारा वेहडा इकठा हुया होगा----- बचपन मे देखा था कि जब भी कोई लडकी मायके आती तो सारा बेहडा क्या गांम्व ही इकठा हो जाता था ।
आज कुछ अच्छा सा नहीं लगा------ क्या घर पक्के बन जाने से दिल भी पत्थर हो गये हैं\( चारदिवारियोँ से शर्मा कर दिल भीमास के लोथदे मे सिकुड गयी हैं\ दिल को झटका लगा----- जिस प्यार संस्कृति की गाथायें सुन कर बाहर के लोग हैरान होते थे( वह सब कहाँ खो गया\15 बीस घरों मे हमारा और शीला बुआ का बेहडा ही साँझा रह गया था।पहले गाँव सरहदों मे बँटे(ाब बेहडे दिवारों से बँट गयेऔर दिल स्वार्थ से(।
जैसे ही बेहडे मे कदम रखा सामने एक 40-- 45 साल की औरत पीठ किये कुछ कर रही थी।बराबर पहुँची तो धक से रह गयी शीला बुआ\ हाँ वो शीला बुआ थी ।बूढी लग रही थी उम्र से 10 साल आगे----- पास ही उनका भतीजा नवी खडा था----- कुछ कह नहीं पाई उसे जाने क्यों उन दिनों को याद कर आँखें भर आयी---- मैने देखा बुआ बाट पूज रही थी मै सन्न रह गयी------ मैने नवी की ओरे देखा वि भी आँसूपोँछते हुये अन्दर चला गया।मैने प्रश्नवाचक नज़रों से चाची की तरफ देखा---
** बेटी इसका पति फौज मे था भारत के लिये जासूसी करते हुये पकडा गया था अभी गौना भी नहीं हुया था।उसके बाद काफी भाग दौड की मगर कुछ नहीं हुया---ाब तो ये भी पता नहीं कि वो जिन्दा है भी या नहीं\उस सदमे से इसके दिमाग पर असर हुया है--पगला गयी है। रोज़ बाट पूजती हैफिर चुपचाप अपने काम मे लगी कुछ गुनगुनाती रहती है।चाची बता रही थी और मै रो रही थी----- मै भारी कदमों से बुआ के पास गयी और उसके कन्धे पर हाथ रखा-----
**कौन \ देखते नहीं मैं बाट पूज रही हूँ--विघ्न पड जायेगा----।
**बुआ मैं आशू!* मुश्किल से गले से आवाज़ निकली------
** आशू\ तू\ एक साल बाद आई है तू। अरे कितनी बदल गयी है----- देख तेरी पूजा वाली चूडियाँ मैने संभाल कर रखी हैं--- तूने अपने फूफा से कहा था ना कि गौना जल्दी करवा लें\** एक साँस मे बुआ इतना कुछ बोल गयी जैसे मेरा हे इन्तज़ार कर रही हो----- बुआ के इन्तज़ार मे अभी भी आशा की एक किरण थी------ जब वक्त रुकता नहीं है तो बुआ का वक कैसे रुक गया था 25 साल को वो एक साल बता रही थी------ और मैं बूआ के गले लग कर खूब रोई----- । बूआ भी उस दिन खूब रोई। चाची ने बताया कि आज पहली बार रोई है ये सब ने कोशिश कर के देख ली है।
मुझे लगा कि अगर ये बेहडे की दिवारें ना होती तो कोई कन्धा उसका सहारा बन सकता था------ बेहडे मिट्टी के ना बने होते तो ये आँगन की मिट्टी उसके आँसू सोख लेती ।
इस तरह बूआ के वक्त के पाँव थम गये थेउन जालिमों ने उनके पाँव मे बेडियाँ डाल दी थी---- सरहदों के पार बूआ के सारे अरमान दफन हो गये थे----ये सरहदें भी कितनी बेरहम होती हैं--------
भारत आने का उत्साह ठँडा पड गया था।सुना था कि भारत पाक की कुछ सीमायें खुल रही हैं।कुछ लिग एक दूसरे को मिल भी सकेंगे ( शायद कुछ कैदियों को भी छोडा जा रहा था----ाब यहाँ नहीं रहेंगे ये हम ने सोच लिया था वापिस विदेश चले जायेंगे मगर जाने से पहले एक आशा मे रोज़ अखबार देखती कि शायद हुक्मरानों के दिल पसीज जायें---- बूआ के वक्त के पाँव की बेडियाँ खुल जायें--- आशा पर ही तो इन्सान का जीवन है और बूआ का भी-------