08 August, 2009

वक्त के पाँव -----गताँक से आगे -(कहानी)


ये रोज़ का उत्सव मै बहुत याद करती थी।
यासों से बाहर आयीजहाज एयरपोर्ट पर उतरने वाला था।उसके बाद बाहर निकलते एक घन्टा लग गया ।जैसी ही बाहर निकले सामने चाचाजी दिखाई दिये।आँखें बरस पडी----- माँ पिता जी सब याद आ गये।इतने सालों बाद भी चाचा बिलकुल वैसे ही लगे बस जरा कमजोर हो गये थे।चाचा जी के गले लग कर खूब रोई।टैक्सी ले कर घर की ओर चल पडे । कितना रास्ता चुपी मे निकल गया ---क्या पूछूँ--------

```**चाचा जी घर मे सब कैसे हैं\** मैने चुपी तोडी ।
**सब ठीक हैं बेटी तेरा इन्तज़ार कर रहे हैं।**
**शीला बुआ कैसी हैं।**
**क्या येहीं सब कुछ पूछ लेगी\खुद अपनी आँखों से देख लेना।**
**क्या आई हुई हैं ।**
**हा**
मुझे लगा चाचाजी कुछ उदास से हो गये हैं। तभी चाचा इनके साथ बातें करने लगे (कारोबार और बच्चों के बारे मे।4-5 घन्टे का सफर जैसे 4 दिन मे पूरा हुआ हो।
रास्ते मे देखती आ रही थी। इतने सालों मे जैसे भारत का नक्शा ही बदल गया था।शहर गाँव काफी विकसित हो गये थे।
**लो अपने गाँव की सडक शुरू हो गयी।** चाचाजी ने बताया।मैं हैरान ये मेरा गाँव्\ मुझे खुद पर हंसी आयी* इतने सालों बाद भी मै उस पुराने गाँव की कल्पना कर रही थी।कहते हैं वक्त के पाँव कभी रुकते नहीं। ना कभी पीछे मुडते हैं।फिर वक्त के पाँव पर खडा मेरा गाँव कैसे पीछे रह सकता है। कच्चे घरों की जगह पक्के बहु मंजिले मकान । छोटा स एक बाजार भे बन गया था कूँयें की जगह ट्यूबेल जब हम लोग यहाँ थे तो इतनी लम्बी लज्ज**रस्सी** से बालटी बान्ध कर कूयें से पानी निकाला करते थे और घडे भर कर सिर पर उठा कर घर लाते थे।मैं तो बडी उत्सुकता से देख रही थी कि कोई ताई चाची भाभी लम्बा सा घूँघट निकालेसिर पर घडा उठाये जाती मिलेगी। पर ना कोई घूँघट वली ना घडे वाली मिली।प्रिधानों मे पश्चिमी साये जरूर नज़र आये।
जिस गाँव मे साईकिल भी किसी किसी के पास होती थी ाब वहाँ गाडियाँ नज़र आ रही थी।स्कूटर मोटर साईकिल तो आम थे। तालाब की जगह पंचायत घर बन गया था।
एक चौडी सी गली मे हमारी गाडी दाखिल हुई।मै हैरान उस वेहडे के इतने दरवाजे\यहां तो एक ही दरवाज सारे घरों के लिये था जैसे किसी किले मे होता है।चाचा ने एक गेट के आगे गाडी रुकवाई।
चाचीजी और बच्चे भागे आये---- मैं तो सोच रही थी कि सारा वेहडा इकठा हुया होगा----- बचपन मे देखा था कि जब भी कोई लडकी मायके आती तो सारा बेहडा क्या गांम्व ही इकठा हो जाता था ।
आज कुछ अच्छा सा नहीं लगा------ क्या घर पक्के बन जाने से दिल भी पत्थर हो गये हैं\( चारदिवारियोँ से शर्मा कर दिल भीमास के लोथदे मे सिकुड गयी हैं\ दिल को झटका लगा----- जिस प्यार संस्कृति की गाथायें सुन कर बाहर के लोग हैरान होते थे( वह सब कहाँ खो गया\15 बीस घरों मे हमारा और शीला बुआ का बेहडा ही साँझा रह गया था।पहले गाँव सरहदों मे बँटे(ाब बेहडे दिवारों से बँट गयेऔर दिल स्वार्थ से(।
जैसे ही बेहडे मे कदम रखा सामने एक 40-- 45 साल की औरत पीठ किये कुछ कर रही थी।बराबर पहुँची तो धक से रह गयी शीला बुआ\ हाँ वो शीला बुआ थी ।बूढी लग रही थी उम्र से 10 साल आगे----- पास ही उनका भतीजा नवी खडा था----- कुछ कह नहीं पाई उसे जाने क्यों उन दिनों को याद कर आँखें भर आयी---- मैने देखा बुआ बाट पूज रही थी मै सन्न रह गयी------ मैने नवी की ओरे देखा वि भी आँसूपोँछते हुये अन्दर चला गया।मैने प्रश्नवाचक नज़रों से चाची की तरफ देखा---
** बेटी इसका पति फौज मे था भारत के लिये जासूसी करते हुये पकडा गया था अभी गौना भी नहीं हुया था।उसके बाद काफी भाग दौड की मगर कुछ नहीं हुया---ाब तो ये भी पता नहीं कि वो जिन्दा है भी या नहीं\उस सदमे से इसके दिमाग पर असर हुया है--पगला गयी है। रोज़ बाट पूजती हैफिर चुपचाप अपने काम मे लगी कुछ गुनगुनाती रहती है।चाची बता रही थी और मै रो रही थी----- मै भारी कदमों से बुआ के पास गयी और उसके कन्धे पर हाथ रखा-----
**कौन \ देखते नहीं मैं बाट पूज रही हूँ--विघ्न पड जायेगा----।
**बुआ मैं आशू!* मुश्किल से गले से आवाज़ निकली------
** आशू\ तू\ एक साल बाद आई है तू। अरे कितनी बदल गयी है----- देख तेरी पूजा वाली चूडियाँ मैने संभाल कर रखी हैं--- तूने अपने फूफा से कहा था ना कि गौना जल्दी करवा लें\** एक साँस मे बुआ इतना कुछ बोल गयी जैसे मेरा हे इन्तज़ार कर रही हो----- बुआ के इन्तज़ार मे अभी भी आशा की एक किरण थी------ जब वक्त रुकता नहीं है तो बुआ का वक कैसे रुक गया था 25 साल को वो एक साल बता रही थी------ और मैं बूआ के गले लग कर खूब रोई----- । बूआ भी उस दिन खूब रोई। चाची ने बताया कि आज पहली बार रोई है ये सब ने कोशिश कर के देख ली है।
मुझे लगा कि अगर ये बेहडे की दिवारें ना होती तो कोई कन्धा उसका सहारा बन सकता था------ बेहडे मिट्टी के ना बने होते तो ये आँगन की मिट्टी उसके आँसू सोख लेती ।
इस तरह बूआ के वक्त के पाँव थम गये थेउन जालिमों ने उनके पाँव मे बेडियाँ डाल दी थी---- सरहदों के पार बूआ के सारे अरमान दफन हो गये थे----ये सरहदें भी कितनी बेरहम होती हैं--------
भारत आने का उत्साह ठँडा पड गया था।सुना था कि भारत पाक की कुछ सीमायें खुल रही हैं।कुछ लिग एक दूसरे को मिल भी सकेंगे ( शायद कुछ कैदियों को भी छोडा जा रहा था----ाब यहाँ नहीं रहेंगे ये हम ने सोच लिया था वापिस विदेश चले जायेंगे मगर जाने से पहले एक आशा मे रोज़ अखबार देखती कि शायद हुक्मरानों के दिल पसीज जायें---- बूआ के वक्त के पाँव की बेडियाँ खुल जायें--- आशा पर ही तो इन्सान का जीवन है और बूआ का भी-------

07 August, 2009

वक्त के पाँव (कहानी )


गाँव की मिट्टी की सोंधी खुश्बू मे जाने कैसी कशिश थी कि इस बार खुद को अपने गाँव भारत आने से रोक नहीं पाई।शादी के तुरँत बाद पति के साथ विदेश चली गयी थी दो साल बाद माँ और पिताजी एक दुर्घटना मे चल बसे थे। भाई बहन कोई था नहीं।इनका भी एक ही बडा भाई था। माँ बाप के बिना घर घर ही नहीं लगता ।जब भी कभी अवसर आता कि घर जायेँ - मैं घबरा जाती।कैसे देख पाऊँगी उस घर को\ बीस पच्चीस वर्ष से हम भारत नहीं आये थे।एक चाचा थे बस पहले उन से चिठी पत्री अब जब से टेलीफोन उनके लगा है तब से टेलीफोन पर ही कभी कभार बात हो जाती है। दस दिन बाद चाचा जी के बेटे की शादी है । उन्हों ने बहुत ताकीद की थी कि हम लोग जरूर आयें।वे बीमार भी रहते हैं।बस एक बार मुझे जरूर देखना मिलना चाहते हैं।अब बच्चे सेटल हो गये( मरा मन भी विदेश मे नहीं लगता था।हम लोग सोच रहे थे कि भारत जा कर ही बस जायें।
जहाज से भी तेज मन दौड रहा था।बचपन की यादें खेत ( खलिहान पास लगती] शिवालिक की पहाडियाँ(सत्लुज दरिया पर बना मंदिर] गुरदवारा( दरिया के किनारे वैसाखी का मेला( वो गाँव की रामलीला ( दशहरे पर निकलती सुन्दर भव्य झाँकियाँ( बचपन की सखियाँ] संगी- साथी( बेरी] आम] अमरूद के पेड(जहाँ एक दूसरे की पीठ पर खडे हो कर आम] अमरूद तोडते(गन्ने के खेतों से गन्ने चूपते(खेत मे लगे बेलन से गन्ने का रस पीते ] गरम गरम भट्टी से निकलता गुड खाते( । क्या बचपन था उडती फिरती तितली जैसा।अज के बच्चे तो उस बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकते। तनाव मुक्त( स्वच्छ्न्द बचपन ।
फिर वो तालाब क्या वैसा ही होगा\ जहाँ हम घडे पर तैर कर उस पार निकल जाते।वो मेमणा जिसके पीछे भागते पर पकड ना पाते( वो मक्की के बडे बडे झुन्ड जिन के पीछेछुपा छुपी खेलते(वो सफेद गाय जिसके थन से दूध की धार दादी सीधे हमरे मुह मे डालती(और वो शीला बूआ और उनका भतीजा मनु हमारी पलटन का रिंग लीडार और उस आँगन मे तारों की छाँव मे( गरमी के दिनो मे बिछी 50 - 60 चारपाईयाँ( बारी बारी सब कथा कहानियाँ चुटकुले सुनाते एक दूसरे को छेडते( बातों का दौर चलता और लगता ही नहीं था कि ये सब अलग अलग परिवार हैं।
सब का एक साँझा आँगन और उसके आसपास सब घर। कुछ घर कच्चे होते थे ।सारे आँगन के लिये एक ही ढियोडी*दरवाजा* होता था। उस दरवाजे के अंदर के सभी दुख सुख साँझे होते थे।उस आँगन को बेहडा कहते थे हर बेहडे का अपना अपना नाम था।
पंजाब के चिभाजन के बाद हमारा गाँव रायपुर हिमाचल मे आ गया।जो ऊन्ना जिले मे पडता था।इस गांवँ का बचपन पंजाबी( और जवानी पहाडी है इस लिये रिती रिवाज़ भी मिले जुले हैं।इन बेहडों का प्यार पंजाबियों की दरिया दिली और पहाडों की सादगी और सुसंस्कृति की पहचान थी।
बेहडे की याद आते ही शीला बुआ की शादी की याद आ गयी।बुआ बहुत सुन्दर थी। लडका भी अच्छी घर से और सुन्दर था।बूआ को गहनों से लाद दिया था ससुराल वलों ने।उस जमाने मे लडका लडकी देखने का आम रिवाज़ नहीं था।माँ बाप (घर जमीन (और लडके की नौकरी या धन्धा देखा जाता था।
जैसे ही बुआ की बारात आयी थी( बुआ ने मुझे घूँघट निकाल कर अपनी जगह बिठा दिया था और अन्दर से कुन्डी लगाने की ताकीद कर खुद घूँघट मे और शाल मे चूडा कलीरे लपेट कर छत पर चढ गयी। दुल्हा देखने की बेचैनी वो रोक ना पाई। सभी बारात की अगवाई मे लगे थे ।किसी ने बुआ को नहीं देखा। जैसे ही बुआ ने दुल्हे को देखा खुशी से दिवानी सी हो गयी। और भाग कर नीचे आते ही मुझ से लिपट गयी
**अशू तुम्हारे फूफा बहुत सुन्दर हैं।बिलकुल राजकुमार्! हाँ देखो तुम उन्हें फूफा नहीं कहना( जीजा जी कहना और उनके कान मे मेरी तरफ से कहना कि जल्दी गौना करवा कर मुझे ले जायें । मैं इन्तज़ार करूँगी।**
तब रिवाज़ था कि गौना शादी के कुछ माह बाद ही होता था।उस समय का इन्तज़ार लडकियाँ एक उत्सव के रूप मे करती। नई नई शादी शुदा लडकियाँ जिन का गौना नहीं हुया होता वो अपने पति के जल्दी आने के लिये एक पूजा करती जिसे *बाट -पूजना* कहा जाता था \बाट कअर्थ है रास्ता ।
सुबह नहा धो कर सभी लडकियाँ अच्छे से तैयार हो कर बेहडे मे इकठी हो जाती।फिर गाय के गोबर से जमीन तीन छोटी छौटी गोलाकार जगह लीपती]धूप टिक्का[ चावल मौली से पूजा कर आटे के दिये मे दीप जलाती। पूजा के बाद कन्या पूजन मे सब लडकियों को सजाती चूडियां पहनाती नेल पोलिश मेहँदी लगाती। इस तरह ये पूरे बेहडे का उत्सव बन जाता। अगले दिन उस जगह से आगे फिर उसी क्रम मे पूजा करतीं।ये माना जाता था कि पूजा करते करते जब वो डियोडी तक पहुँच जायेंगी तो उनके पति उन्हें लेने जरूर आ जायेंगे। अगर तब तक गौना नहीं होता तो दोबारा फिर वहीं से शुरू कर देतीं कि शायद पूजा मे कोई विघ्न पड गया होगा।उस उत्सव को मै बहुत याद करती थी। बूआ से वैसी भी मेरा लगाव अधिक था इस लिये उसे मिलने को उतावली हो रही थी।---------------------------------------------क्रमश।

06 August, 2009

एक और पंजाबी गज़ल स. बल्बीर सैणी जी की [हिन्दी अनुवाद के साथ ।
अनुवाद गज़ल के रूप मे नहीं है ।


मै तां जीवी जाणा अपणी हिम्मत अपणे जेरे नाल
वरना इस दुनिया ने यारो की नहीं कीता मेरे नाल

[अर्थात-- मै तो जीए जाऊँगा अपनी हिम्मत और जोर के साथ
वरना इस दुनिया ने यारो क्या नहीं किया मेरे साथ}

इस ने दिल दा खून है पीता इस ने लुटिया मन दा चैन
हैरत है दिल रहिन्दा लोचे ताँ वी उसे लुटेरे नाल

[अर्थात-- इस ने दिल का खून है पीया इस ने लूटा मन का चैन
हैरत है दिल रहने को तडपे फिर भी उस लुटेरे के साथ]

मै जाणिया सी तेरे पिछों कल्ला रह जावाँगा पर
हँजू हौके चीसाँ पीडाँ किना कुझ सी मेरे नाल

[अर्थात-- मैने जाना था तेरे पीछे सेअकेला मैं रह जाऊँगा पर
आँसू आहें टीसें पीडा कितना कुछ था मेरे पास]

किने सालाँ तो बेशक तूँ आया नहीं बनेरे ते
फिर वी मेरी नीझ है लगी पौडी वाँग बनेरे ते

[अर्थात--कई सालों से बेशक तू आया नहीं बनेरे पर [बनेरे मतलव मँडेर]
फिर भी मेरी नजर है लगी सीढी की तरह बनेरे से]

की सची तूँ भुल गिया एँ या तैनू ने याद उवें
आये दिन जो सौ सौ वादे कीते सी तू मेरे नाल

[क्या सच तू भूल गया है? या तुझे है याद उसी तरह
आये दिन सौ सौ वादे किये थे जो मेरे साथ ]

इस दुनिया नू जे चाहो ताँ दूर सगों इह भजदी है
लेकिन जे इस नू दुतकारो लिपटे होर वधेरे नाल

[ अर्थात इस दुनिय को गर चाहो तो दूर बल्कि ये भागती है
लेकिन गर इस को दुतकारो लिपटे और बहुत ही साथ ]

तेरे नाल जे तुरदै जे कोई उस दा कोई मतलव है
मतलव नाल इह दुनिया सैणी तेरे नाल ना मेरे नाल

[अर्थात तेरे साथ अगर चलता है तो उसका कोई मतलव है
मतलव साथ ये सारी दुनिया सैणी तेरे साथ ना मेरे साथ्]

अनुवाद ---- निर्मला कपिला


03 August, 2009

गज़ल ------एक और सफर पर

पिछले दिनों मुझे द्विजेन्द्र "द्विज"जी ने अपनी पुस्तक गज़ल संग्रह `जन गण मन ` भेजी और उस पर अपनी प्रतिक्रिया करने को कहा । मै कई दिन बहुत तनाव मे रही कि मुझे तो गज़ल की ABC भी नहीं पता तो इतने बडे शायर की इतनी लाजवाब पुस्तक के बारे मे कैसे क्या कहूँ।अंत मे मैने उन से क्षमा प्रार्थना की कि इस पर कुछ भी कहना मेरे सामर्थ्य से बाहर है।इसके बाद एक बहुत बडे गज़लकार की गज़lल पर टिप्पणी दी और जो शेर मुझे बहुत अच्छा लगा उस पर लाजवाब लिख दिया फिर उनका मुझे ई मेल आया कि चलो अपको एक शेर तो पसंद आया धन्यवाद ।तब मुझे महसूस हुय कि अब मुझे गज़ल सीख लेनी चाहिये।
उसके बाद जब मैने अपने शहर के कवि सम्मेलन मे जाना शुरू किया तो कई बार सोचा कि गज़ल सीखूँ स. बलबीर सौणी जी की गज़लों से इतना प्रभावित हुई कि उनसे गज़ल सीखने का निर्णय लिया ।कल ही उन्हें गुरू जी के रूप मे माना और उन से पंजाबी गज़ल सीखनी शुरू कर दी। स. सैणी जी की लगभग 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे अधिक गज़ल संग्रह हैं। हरियाणा अकेडमी दुआरा भी उनकी पुस्तक का प्रकाशन हुआ है और सम्मानित हुये हैं जालन्धर दूर दर्शन पर भी उनकी गज़लों का प्रसारण होता रहता है ।उनके पहले सबक मे एक पंजाबी गज़ल लिखी मगर उसे अभी पोस्ट नहीं कर सकती क्यों कि अभी पंजाबी मे टाईप करने मे अस्मर्थ हूँ उस सबक से एक हिन्दी गज़ल लिखने की कोशिश की है। उन्हीं के आशीर्वाद से उसे आपके सामने प्रस्तुत करूँगी।
। पहली कोशिशै है इस लिये आप सब का सहयोग चाहूँगी और गुरू जी का आशीर्वाद। वैसे तो वो मुझे गुरू जी नहीं कहने देना चाहते उनका कहना है कि तुम अपने शहर की बेटी हो और मेरी छोटी बहन की तरह हो इस लिये मुझे गुरू जी ना कहो । मगर बडे भाई भी गुरू समान होते हैं इस लिये उन्हें गुरू जी ही कहूंगी।हाँ अर्श का भी धन्यवाद करना चाहूँगी क्यों कि जहाँ मैं अटक गयी थी वहाँ उसने मेरी सहायता की। अभी भी उसकी तसल्ली नहीं थी इस गज़ल पर मगर पहले प्रयास पर कुछ तो रियायत होनी ही चाहिये ।मै यहाँ`` द्विजेन्द्र द्विज`` जी का भी धन्यवाद करना चाहूँगी कि उन की पुस्तक की वजह से मुझे गज़ल सीखने का ख्याल आया।
बह`र
ss ss ss ss ss

तेरे सपनों मे आऊँ तो कैसे
तुझ को मै पास बुलाऊँ तो कैसे

यूँ रूठा है वो रूठे हैं अरमाँ
कोई भी जश्न मनाऊँ तो कैसे

दीदार -ए-हसरत तो अपनी भी थी
चाँद न हो ईद मनाऊँ तो कैसे

तेरे आँसू ले लूँ तकदीर नहीं
अपने भी अश्क छुपाऊँ तो कैसे

लोग यकीं माने यूं अफसानो पर
अपना सच भी बतलाऊँ तो कैसे

किसने कैसे कब तोडा है हमको
मैं जख्मे दिल दिखलाऊँ तो कैसे

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