24 November, 2010

कविता -- मन मन्थन


कविता

मेरी तृ्ष्णाओ,मेरी स्पर्धाओ,
मुझ से दूर जाओ, अब ना बुलाओ
कर रहा, मन मन्थन चेतना मे क्र्न्दन्
अन्तरात्मा में स्पन्दन
मेरी पीःडा मेरे क्लेश
मेरी चिन्ता,मेरे द्वेश

मेरी आत्मा
, नहीं स्वीकार रही है
बार बार मुझे धिक्कार रही
प्रभु के ग्यान का आलोक
मुझे जगा रहा है
माया का भयानक रूप
नजर आ रहा है
कैसे बनाया तुने
मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

48 comments:

वाणी गीत said...

मेरी तृष्णाओं ...मुझसे दूर जाओ ...
इस दानव को मानव कहलाने दो ...
कश हर दानव इसी तरह मानव बनन की राह पर निकल पड़े ...
शुभ विचार ....!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

सच है, अगर इसीको मानव कहलाते हैं तो ऐसा मानव न बनना अच्छा है ...
सुन्दर प्रस्तुति !

इस्मत ज़ैदी said...

बहुत बढ़िया निर्मला जी,
इस दानव को मानव कहलाने दो

सुंदर!

DR.ASHOK KUMAR said...

दानव भी जब मानव मेँ रूपान्तरित हो जाए तो
इससे अच्छी और क्या बात
होगी। बहुत ही शानदार विचारोँ का गुलदस्ता प्रस्तुत
किया हैँ आपने। बहुत- बहुत शुभकामनायेँ

केवल राम said...

मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो
बहुत सार्थक ..काश मानव -मानव बन पाता और ..और इस अनमोल जीवन की सार्थकता समझ पाता ...
कोई शब्द नहीं हैं मेरे पास आपके लिए ....बस यही कामना है कि आपका आशीर्वाद ताउम्र सर पर बना रहे ..आपका मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहे ...शुक्रिया

अजित गुप्ता का कोना said...

सत्ता का दानव हमारे मन में मानवता को नष्‍ट करता है। बस जितना छोड़ेंगे उतना ही मानवीयकरण होगा। अच्‍छा चिंतन बधाई।

Anonymous said...

प्रभु के ग्यान का आलोक
मुझे जगा रहा है
माया का भयानक रूप
नजर आ रहा है...
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना.... बहुत सारे भाव समेटे हुए...

arvind said...

man ko jhakajhor denevaali kavita...maarmik.

Smart Indian said...

आदर्श भाव. तमसो मा ज्योतिर्गमय ...

Smart Indian said...
This comment has been removed by the author.
भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पता नहीं क्यों मैं निराशावादी होता जा रहा हूं. आशा करता हूं कि आपके ऊर्जावान शब्दों से यह निराशा छंटेगी..

नीरज मुसाफ़िर said...

बहुत खूब।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया मौसीजी निर्मला कपिला जी
प्रणाम !


मेरी तृ्ष्णाओ !
मेरी स्पर्धाओ !
मुझ से दूर जाओ, अब ना बुलाओ …


बहुत सुंदर …

मुझे
इस आलोक में बह जाने दो !
इस दानव को मानव कहलाने दो !!


आत्ममंथन और आत्मपरिष्करण को प्रेरित करती इस पावन रचना के लिए आभार !



- राजेन्द्र स्वर्णकार

Riya Sharma said...

Sarvprataham Nirmala ji mafee..Blogger meet par ho nahee paya ....

मुझे
इस आलोक में बह जाने दो !
इस दानव को मानव कहलाने दो !!

Bahut hee anmool Pankatiyan n Bhaav .Sakaratmak vyaktitv ise hee sochte hain

Pranaam !

शारदा अरोरा said...

बहुत खूब , मन का मंथन गीत सा उभर आया है ।

vandana gupta said...

जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

यही तो सच्चा आत्म मंथन है……………भावों को खूब उकेरा है।

रश्मि प्रभा... said...

prabhu gyan se jagrit mann aur dwand ka hahakaar... bas samjha ja sakta hai , sirf samjha jaa sakta hai ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्रभु ज्ञान का आलोक ऐसे ही बहता रहे ...बहुत सुन्दर भावों से सजी अच्छी कविता ..

दिगम्बर नासवा said...

गहरे क्षोभ से उभरी रचना .... क्या हो रहा है मानव को ...

PN Subramanian said...

क्या बात है. आज लोगों की टिप्पणियों में भी काफी एकरूपता दिख रही है. मुझे भी "इस दानव को मानव कहलाने दो" ने सम्मोहित किया है. सुन्दर रचना

virendra sharma said...

sundar ,manohar prastuti .
veerubhai .

Arvind Jangid said...

"इस दानव को मानव कहलाने दो" सुन्दर रचना के लिए आत्मीय धन्यवाद.

प्रवीण पाण्डेय said...

तृष्णाओं के जल से घिरा है, जीवन-अन्तः।

shikha varshney said...

बेहद खूबसूरत भाव ,बहुत सुन्दर कविता.

Dorothy said...

प्रभु के ज्ञान का आलोक निस्संदेह मायाजाल के सभी चक्रव्यूहों को भेद कर हमें नए मनुष्य एव नई सृष्टि में रूपांतरित करने में सक्षम है. आत्ममंथन करने को विवश करती खूबसूरत और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

कडुवासच said...

... sundar rachanaa ... badhaai !!!

सदा said...

सुन्‍दर शब्‍दों के साथ्‍ा भावमय प्रस्‍तुति ।

कविता रावत said...

सच में जीवन की नश्वरता को समझ जो प्रभु ध्यान में खो गया उसने सब कुछ पा लिया ..... बहुत ही सुन्दर आध्यात्म भाव जगाती रचना के लिए आभार

ताऊ रामपुरिया said...

अति सुंदर और स्वस्थ विचार, शुभकामनाएं.

रामराम.

VIJAY KUMAR VERMA said...

मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

बेहद खूबसूरत भाव

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत सहज और विचारशील भाव समेटे एक बेहतरीन कविता...सुंदर कविता के लिए बहुत बहुत बधाई..

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

माया का भयानक रूप
नजर आ रहा है
कैसे बनाया तुने
मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

बहुत शानदार रचना का सृजन.

महेन्‍द्र वर्मा said...

अंतर्द्वंद्व से उपजी एक श्रेष्ठ कविता।
बेहद प्रभावशाली रचना।

अनामिका की सदायें ...... said...

चिन्तनमय रचना चिंतन की ओर अग्रसर करती हुई.

रवि धवन said...

wah!!!!!aewsome
Really beutifull.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

चिन्तन को प्रेरित करती एक बेहतरीन रचना....
सच में, मानव क्या से क्या बनता जा रहा है...
आभार्!

ZEAL said...

जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो ..

Sashakt panktiyan !

.

Shah Nawaz said...

बहुत ही बेहतरीन रचना ..... ज़बरदस्त!

Sadhana Vaid said...

सूक्ष्म चिंतन से उपजी संवेदना से भरपूर एक सार्थक एवं प्रभावशाली रचना ! काश सभी 'दानवों' की सोच इसी तरह रूपांतरित हो जाए तो यह धरती रहने लायक हो जाए ! बहुए सशक्त अभिव्यक्ति ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

Yashwant R. B. Mathur said...

जन्मदिन की शुभकामनाएं!

बेहतरीन कविता!

सादर

शिक्षामित्र said...

भग्वद्भक्ति का भाव भी प्रभु की कृपा से ही जगता है। जिस पर वह कृपा बरसती है,उसके भीतर केवल प्रभु को पाने की तृष्णा रह जाती है और बाकी सबको माया समझते देर नहीं लगती।

मनोज कुमार said...

मानवता आज दाव पर लगी है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है

POOJA... said...

वो दानव पूरा बन चूका... मानवता उसमे बची कहाँ....
कोई ऐसी जगह बता दो... दानव को मानव बना सकें जहाँ..

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर आत्ममंथन!

Pawan Kumar said...

मानवता के नाम है यह कविता.....इस कविता को और आपको सादर वन्दे.....!!!!!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

निम्मो दी!देरी के लिए माफ़ी!यह रचना एक दर्पण है.. एक स्वीकारोक्ति है, एक प्रार्थना है! आभार!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बेहतरीन ...सुंदर मंथन से उपजी एक सन्देश परक रचना.... काश सब मानव बनने की राह पकड़ लें....

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मन के अंधकार को मिटाने का सुंदर साधु भाव।

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