14 January, 2009



किन्हीं विरान खन्ढरों में तलाश खुद को
इस आबाद गुलशन में तेरी जरूरत नहीं
जो भूल जाते हैं रास्ता अपनी मंजिल का
उनके बसने की फिर कोई सूरत नहीं
वादा कर के मुकर जाते हैं अक्सर जो
उन में ईमान ढूंढ्ने की जरूरत नहीं
जिस बुत में तलाश है तुझे जिन्दगी की
वो पत्थेर है जज़्बातों की मूरत् नही
सिगरेट समझ जो फूँक देते हैं जज़्बात
उनमें जिन्दा इन्सानों की गरूरत नहीं
जब वज़ूद ही ना रहे तो जिन्दगी की तलाश क्यों
जीकर भी है मरा हुआ मौत ढंढने की जरूरत नही

13 comments:

rajesh singh kshatri said...

wada kar ke mukar jate hai akshar jo....
Nirmala ji,
bhut sundar rachana hai.

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

राज भाटिय़ा said...

जो भूल जाते हैं रास्ता अपनी मंजिल का
उनके बसने की फिर कोई सूरत नहीं
आप की गजल का हर शेर अमूल्य है, बहुत सुंदर भाव.
धन्यवाद

Vinay said...

बहुत बढ़िया हृदय अभिव्यक्ति


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hem pandey said...

सुंदर अभिव्यक्ति

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Respected Nirmala ji
bahut sundar ,saral,sahaj gazal hai apkee.Hardik badhai.
Hemant Kumar

विवेक सिंह said...

सुंदर अभिव्यक्ति !

Tapashwani Kumar Anand said...

बहुत बढ़िया .................

Dev said...

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

Kavi Kulwant said...

जीकर भी है मरा हुआ मौत ढंढने की जरूरत नही
wah wah..

Poonam Agrawal said...

jeeker bhi hai jo mara hua ......maut dhundhne ki jaroorat nahi
Behad sunder abhivyakti .....badhai

अविनाश said...

पत्थेर है जज़्बातों की मूरत् नही
सिगरेट समझ जो फूँक देते हैं जज़्बात
उनमें जिन्दा इन्सानों की गरूरत नहीं
जब वज़ूद ही ना रहे तो जिन्दगी की तलाश क्यों
जीकर भी है मरा हुआ मौत ढंढने की जरूरत नही

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