पुरुस्कार
शाम -- वो कैसे?
हमारे पडोसी ने किसी महिला पर कुछ कवितायें लिखी। उसे पुरुस्कार मिला।
उसी महिला पर मैने रचनायें लिखी मुझे कोई पुरुस्कार नही मिला।
तुम्हें कैसे पता है कि जिस महिला पर रचना लिखी वो एक ही महिला है?
राजा--- क्यों कि वो हमारे घर के सामने रहता है ।लान मे बैठ जाता और मेरी पत्नि को देख देख कर कुछ लिखता रहता था। लेकिन मै उसके सामने नही लिखता मैं अन्दर जा कर लिखता था। सब से बडा दुख तो इस बात का है कि मेरी पत्नी उस मंच की अध्यक्ष थी और उसके हाथों से ही पुरुस्कार दिलवाया गया था।
शाम-- अरे यार छोड । तम्हें कैसे पुरुस्कार मिलता क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को। द्दोर के ढोल सुहावने लगते हैं।उसने जरूर भाभी जी की तारीफ की होगी और तुम ने उल्टा सुल्टा लिखा होगा। फाड कर फेंक दे अपनी कवितायें नही तो कहीं भाभी के हाथ लग गयी तो जूतों का पुरुस्कार मिलेगा।
57 comments:
गुद्गदा गयी आपकी लघुकथा .सुबह सुबह मुस्कराहटें बिखेरने का शुक्रिया
बहुत खूब, सही है :)
वाह, दृष्टि का विभेद है।
निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.
सार्थक लघुकथा. बधाई. मेरे विचार में इसका शीर्षक कडवा सच होना चाहिए.
बहुत सुन्दर :)
बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया ।
बहुत बहुत बधाई निर्मला जी ।
" कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ...........कविता "
बहुत बढ़िया लघु कथा लगी .. हकीकत में ऐसा ही हो रहा है ... तौल मोल होने लगा है ...
बहुत खूब ,अच्छा लगा
:)
लघु कथा भीत अच्छी लगी |बधाई
आशा
लघुकथा में हक़ीकत नज़र आ रही है।
पढ़कर अच्छा लगा।
सच्चाई को बयाँ करती अच्छी लघु कथा
hA hA...बढ़िया..
हा हा हा हा
मजेदार लघुकथा है।
उसने चाँद पर ही सब लिखा होगा।:)
क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को..इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया..बहुत सुन्दर लघु कथा..
यथार्थ को लघु कथा -माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
अरे मुझे नही लगता दुनिया मे मेरे सिवा कोई भी अपनी बीबी की तारीफ़ करता होगा, बेचारा....
सुबह सुबह आप ने तो हंसा ही दिया :)
धन्यवाद
बहुत खूब सुन्दर लघु कथा..
निम्मो दी!
एक कड़वा सच!!
क्या बात है ...नजर का फर्क है ....
हा हा हा,सही है....
लघुकथा के बहाने पति पत्नी पर एक सटीक व्यंग्य. आपकी रचनात्मकता का यह "लघुकथा" रूप भी लुभा गया. ............ सुन्दर पोस्ट के लिए आभार!
hee hee hee ..kya nirmala ji aap bhi ..itna sach koi likhta hai kya? :)
वाह!
यह लघुकथा तो बहुत रोचक रही!
हाँ नज़र और नज़रिया ही कलम को शब्द देगा ना..... बहुत सुंदर ...
हा हा हा ! हम भी अभी फाड़ कर फैंकते हैं जी ।
हमने भी पत्नी पर बहुत कवितायेँ लिखने की भूल की है ।
रोचक ।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
hahahaha...bahut acchi kahani hai... :) muskaan laane men saksham
इस लघुकथा में हास्य भी है, व्यंग्य भी। आज की मौज़ूदा व्यवस्था पर कटाक्ष भी।
पतियों के हित में,पत्नियों के लिए शक का कोई इलाज़ ढूंढा जाए!
.
---- : प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे : ----
मुझे पता है नहीं मिलेगा
मुझको कोई पुरस्कार.
इसीलिए मन के दर्पण का
करता हूँ ना तिरस्कार.
जैसा लगता कह देता हूँ
कटु तिक्त मीठा उदगार.
मित्रों को भी नहीं चूकता
तुला-तर्क वाला व्यवहार.
मुझको बंधन वही प्रिय है
जो भार होकर आभार.
प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे
मिले यदि, 'जूते' स्वीकार.
.
बस इसी फर्क में ही तर्क है।
इसीलिये पतियों का बेडा गर्क है।:))
बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया । धन्यवाद|
हा हा हा हा ....
सचमुच दूर के ढोल ही सुहावने होते हैं ...
शानदार लघु कथा ...!
khoobsurat katha...
kalpnaaon ka vraksh benargatta...
nirmala ji...BANGALORE mein Banerghtta road ek jagah ka naam bhi hai!
निर्मला जी,
लघु कथा में सच्चाई ही सच्चाई है !
आजकल पुरस्कारों का यही हाल है !
सत्यता के बेहद निकट यह प्रस्तुति ।
फर्क अपनी और पडोसी की पत्नि के प्रति नजरिये का.
अच्छी लघुकथा है ।
बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया ।बहुत बहुत बधाई निर्मला जी ।
आजकल की सच्चाई को बयां करती हुई एक बेहतरीन लघुकथा... सुंदर प्रस्तुति.
बहुत बढ़िया. बहुत रोचक
बधाई निर्मला जी
hame to padhkar khoob hansi aai aur saath hi is katha me sach ki tasvir ubhar aai .ati sundar .
दृष्टिपटल पर होता हुआ साक्षात्कार है यह लघु कथा
अरे वाह ! मज़ा आ गया |
bilkul sach baat hai, door ke dhol suhavane hote hain aur ghar ki murgi daal barabar.
Wah Wah
Kya bat kahi hai aapne
bilkul manviye sonch ko pakad liya hai aapne.
क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को..
बहुत ही सार्थक लघु कथा ! वास्तविकता के बहुत करीब ! बधाई एवं शुभकामनायें !
लघु कथा के बहाने आपने साधे कई निशाने।..बहुत खूब।
लघु कहाँ,यह तो गुरुतर बात कह दी आपने इस छोटी सी कथा के माध्यम से....
बहुत खूब ........
बहुत बढ़िया लघु कथा
पुरस्कार की इच्छा रखने से लेखनी की महिमा कम हो जाती है। कवी हो या लेखक , वो अपने संतोष के लिए और दूसरों की भलाई के लिए लिखता है। बिना किसी अपेक्षा के।
कथा में
व्यंग्य के साथ
एक अर्थ भी है ,,,
हा हा हा हा
मजेदार
बहुत खूब.
jamane ko chhuta ,bilkul sarthak.dhanyabad kapila ji.
Post a Comment