कल की फिलबदी 74 से हासिल गज़ल
बह्र -- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
गज़ल -- निर्मला कपिला
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से ही यहां धोखा मिला
जब यहां भाई से भाई ही कहीं लुटता मिला
दोस्ती बेनूर बेमतलव नही तो क्या कहें
जिस तरह से दोस्ती मे वो जहर भरता मिला
क्या कहें उसकी मुहब्बत की कहानी दोस्तो
रात की थी ख्वाहिशें तो चांद भी जगता मिला
दर्द जो सहला नही पाये मेरे हमदर्द साथी
छेड दी सारी खरोंचें घाव कुछ गहरा मिला
ख्वाहिशें थी चाहतें थी बेडियां और आज़िजी
ज़िन्दगी पर हर तरफ तकदीर का पहरा मिला
जो खुदा के सामने भी सिर झुकाता था नही
मुफ्लिसी मे हर किसी के सामने झुकता मिला
ख्वाब हों दिन रात हों आवाज़ देता दर्द मुझ को
भूलना जितना भी चाहा और भी ज्यादा मिला
गुणीजनो से सुधार की आपेक्षा है
बह्र -- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
गज़ल -- निर्मला कपिला
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से ही यहां धोखा मिला
जब यहां भाई से भाई ही कहीं लुटता मिला
दोस्ती बेनूर बेमतलव नही तो क्या कहें
जिस तरह से दोस्ती मे वो जहर भरता मिला
क्या कहें उसकी मुहब्बत की कहानी दोस्तो
रात की थी ख्वाहिशें तो चांद भी जगता मिला
दर्द जो सहला नही पाये मेरे हमदर्द साथी
छेड दी सारी खरोंचें घाव कुछ गहरा मिला
ख्वाहिशें थी चाहतें थी बेडियां और आज़िजी
ज़िन्दगी पर हर तरफ तकदीर का पहरा मिला
जो खुदा के सामने भी सिर झुकाता था नही
मुफ्लिसी मे हर किसी के सामने झुकता मिला
ख्वाब हों दिन रात हों आवाज़ देता दर्द मुझ को
भूलना जितना भी चाहा और भी ज्यादा मिला
गुणीजनो से सुधार की आपेक्षा है
4 comments:
बहुत बढ़िया कविता
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ये बुआ!
bahut bahut hi sundar gajal
अलग अंदाज़ के लाजवाब शेर ...
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