इस गज़ल को आदरणीय प्राण भाई साहिब ने संवारा है। उनका बहुत बहुत धन्यवाद।
गज़ल
कसक ,ग़म ,दर्द बिन ये ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
मुझे अब आँसुओं से दुश्मनी अच्छी नहीं लगती
किनारा कर गये हैं हम नवाला लोग मुश्किल में
मुझे ऐसी खुदाया दोस्ती अच्छी नहीं लगती
भला लगता है मुझको रोज ही रब की इबादत पर
फरेबों से भरी सी बंदगी अच्छी नहीं लगती
रुला कर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती
न काटो डाल जिस पर बैठ कर खुशियाँ मनाते हो
तुम्हारे हाथों अपनी खुदकशी अच्छी नहीं लगती
मुझे अब आँसुओं से दुश्मनी अच्छी नहीं लगती
किनारा कर गये हैं हम नवाला लोग मुश्किल में
मुझे ऐसी खुदाया दोस्ती अच्छी नहीं लगती
भला लगता है मुझको रोज ही रब की इबादत पर
फरेबों से भरी सी बंदगी अच्छी नहीं लगती
खुशी में भी उसे हंसना कभी अच्छा नहीं लगता
मुझे उसकी यही संजीदगी अच्छी नहीं लगतीरुला कर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती
न काटो डाल जिस पर बैठ कर खुशियाँ मनाते हो
तुम्हारे हाथों अपनी खुदकशी अच्छी नहीं लगती
किसी से बात दिल की बांटना उसको नहीं भाता
मेरे यारो मुझे उसकी खुदी अच्छी नहीं लगती
किसी रोगी को दूं खुशियाँ मुझे अच्छा ये लगता है
चुराऊँ उसके जीवन की खुशी अच्छी नहीं लगती
पड़ोसी को पड़ोसी की खबर ही अब नहीं रहती
मुझे" निर्मल " ये उसकी बेरुखी अच्छी नहीं लगती
73 comments:
वैसे तो मियाँ 'मजाल' है खोज-ए-ऐब में माहिर,
पर किस मुहँ से कहें, की ये ग़ज़ल अच्छी नहीं लगती !
कमाल की ग़ज़ल, लिखते रहिये ..
आप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
Wah wah….khoobsoorat prastuti…!
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति !!
बहुत ही जीवन्त गजल है, निर्मला जी बधाई।
बड़ी उम्दा ग़ज़ल है...जीवन के सच को भी पिरो दिया है...बधाई.
bahut sunder gahre bhavo kee abhivykti......bahut sunder lagee...
Aabhar
सुंदर ग़ज़ल.
Nihayat khoobsoorat ashar se saji behtareen gazal! Maza aa gaya! Baar,baar padhne ka man ho raha hai!
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
खुशी में हंसना भी तो उसे अच्छा नहीं लगता
मुझे उसकी यही संज़ीदगी अच्छी नहीं लगती ....कमाल का शेर है ..
रुलाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती
बहुत सुंदर...
बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल. इसे कोई आवाज़ भी दे.
sundar
बहुत ही खूबसूरत गज़ल है बधाई
gazal me bhi awwal...badhaai
सभी ख्याल बेहद खूबसूरत्……………शानदार गज़ल्।
सभी शेर बढ़िया हैं.अच्छी गज़ल.
कमाल के शेर हैं .. आदरणीय प्राण जी ने तो ग़ज़ल में जान डाल दी है ...
रुला कर फिर ... और न काटो डाल ...... इन दोनो शेरों का कोई जवाब नही है ....
वाह.....
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है...हर शेर मन को छूते हैं...
kamal ki gajal hai...wah!
लाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।
बहुत ही सुन्दर पंक्तिया, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल प्रस्तुत किया है आपने! बेहद पसंद आया!
बहुत खूबसूरत गज़ल
लाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।
....बहुत सुंदर गजल है....सुंदर प्रस्तुति के लिये धन्यवाद!
भले ही गजल को प्राण भाई साहब ने सँवारा हो मगर भाव बहुत अच्छे हैं इसमें!
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लाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति के लिये धन्यवाद!
.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है निर्मला जी । सारे अश आर बेहतरीन हैं । बहुत आनंद आया पढ़कर । आभार ।
किसी से दिल को बांटना उसे नहीं भाता...क्या बात कही है...
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल.
yयहाँ सभी ने 'लाकर' फिर मनाने--- पढा है जब्कि इसे 'रुला कर' फिर मनाने की--- पढें। धन्यवाद।
hrek sher umda hai .
लाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।
बहुत ही सुंदर रचना.
रामराम
बड़े सुन्दर ढंग से सँवारी गज़ल।
अच्छी लगी प्राण साहब की यह गज़ल
वाह..वाह...ग़ज़ल बेहतरीन है ... सभी शे‘र जीवन की सच्चाइयों को बयां कर रहे हैं।
"भला लगता है मुझको रोज ही रब की इबादत पर
फरेबों से भरी सी बन्दगी अच्छी नहीं लगती !!"
वाह! सच कहूँ तो ये गजल हमें तो बेहद पसन्द आई....लाजवाब!
वाह दिल खुश कर दिया ... अभी तक की आपकी सबसे कामयाब ग़ज़ल ! मज़ा आगया सच पूछो तो , मतला लाजवाब है , दुसरे शे'र में नवाला का मतलब ? वेसे तो आदरणीय प्राण साब के हांथो लौट के आयी ग़ज़ल कामयाब होती है और ये उसी में शुमार है! चौथे का मिसरा सानी कमाल का बना है ! और पांचवा मेरा सबसे पसंदीदा शे'र .... मेरी सारी गज़लें कुर्बान इस पर ... मक्ता भी खास तौर से पसंद आया !
आपका
अर्श
बहुत उम्दा गज़ल बन पड़ी है, वाह!!
लाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।
क्या कहने!
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल........
वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है|
वाह!
इस गज़ल के प्रत्येक शेर बेहद उम्दा हैं। इतनी लम्बी गज़ल में इतना कसाव कम ही देखने को मिलता है।
बहुत खुब सुरत गजल जी, धन्यवाद
एतना देर से हम आए कि हमरे लिए कुछ बचा ही नहीं कहने को!!लाजवाब ग़ज़ल!!
निर्मला जी बेहतरीन ग़ज़ल ......
आप तो राऊंडर हो गयीं ......
ये दो शेर बहुत अच्छे लगे .......
@ न काटो डाल .......
@ किसी रोगी को दूँ खुशियाँ .....
बहुत उम्दा और बेहतरीन गजल ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
एक दम उत्तम ग़ज़ल है। बात तो हमेशा आप की बहुत जानदार होती है। यहाँ रूप भी निखर आया है।
बहुत उम्दा गज़ल बन पड़ी है, वाह!!
वाह निर्मला जी वाह...क्या कमाल की गज़ल कही है आपने...एक एक शेर अपनी कहानी कह रहा है...आपकी सोच और लफ़्ज़ों का चुनाव बेहतरीन है...गुरुदेव प्राण साहब अपने पारस स्पर्श से हर वस्तु को सोना बनाने में सिद्ध हस्त हैं और जब गज़ल खुद ही सोना हो और गुरदेव का हाथ लगा हो तो समझिए सोने पर सुहागा है...
किसी एक शेर को अलग से कोट करने का मन नहीं कर रहा क्यूँ के ये फिर दूसरे शेरों के साथ बेइंसाफी होगी...
लिखती रहिये...
नीरज
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है.... एक-एक शेर एक से बढ़कर एक है.... बहुत खूब!
ज़रा यहाँ भी नज़र घुमाएं!
राष्ट्रमंडल खेल
बेहतरीन ग़ज़ल
सभी शेर एक से बढ़कर एक उम्दा हैं
पहला शेर ही दिल को भा गया :
कसक,ग़म,दर्द बिन ये ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
मुझे अब आँसुओं से दुश्मनी अच्छी नहीं लगती
इस शेर की तो बात ही क्या :
भला लगता है मुझको रोज ही रब की इबादत पर
फरेबों से भरी सी बंदगी अच्छी नहीं लगती
इस शेर की नाजुकी भी कमाल की है :
किसी से बात दिल की बांटना उसको नहीं भाता
मेरे यारो मुझे उसकी खुदी अच्छी नहीं लगती
कुल मिलाकर लाजवाब ग़ज़ल बन पड़ी है
आपको बहुत-बहुत बधाई
और हाँ जी
मुझे तो "लाकर" भी चलेगा और "रुलाकर" भी चलेगा :)
जब इस शेर में 'लाकर' शब्द का प्रयोग करते हैं तो भाव उभरते हैं कि कोई रूठकर चला गया है और वापस बुलाकर मान-मनव्वल किया जा रहा है !
निहायत ही उम्दा ग़ज़ल होती है आपकी, मैं तो हमेशा से ही आपकी ग़ज़लों का प्रशंसक रहा हूँ !
इस ग़ज़ल के सारे शेर वेहतरीन है, बहुत दिनों के बाद पढ़ी एक बढ़िया ग़ज़ल ....शुभकामनाएं !
प्रणाम
अदभुत ही कहूंगा
बहुत ही कमाल की गज़ल है निर्मला दी ! हर शेर एक से बढ़ कर एक है ! इतनी खूबसूरत भावाभिव्यक्ति के लिये आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
बेहतरीन और ताजगी भरी ग़ज़ल.
निर्मला जी, बहुत ही उम्दा कलाम पढ़ने को मिला है...
न काटो डाल जिस पर बैठकर खुशियां मनाते हो
तुम्हारे हाथों अपनी खुदकुशी अच्छी नहीं लगती...
दर्स भरा शेर है...
किसी से बात दिल की बांटना उसको नहीं भाता
मेरे यारो मुझे उसकी खुदी अच्छी नहीं लगती...
सही है....
अपनों के बीच इतना अंतर्मुखी होना भी मुनासिब नहीं...
बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
bahut hi khubsurat gazal.....
aap mere blog par aayin mera saubhagya...
yun hi utsaah wardhan karte rahein...
वाह क्या कहने !
काश सभी की सोच इस गजल की तरह हो !
पुख्ता अशआर लिये परिपक्व ग़ज़ल है। बधाई के पात्र हैं आप और प्राण साहब दोनों। जीवन के कई पहलू छूने की उम्दा कोशिश है।
भई वाह ..क्या बढ़िया ग़ज़ल लिखी है.
एक से बढ़कर एक शेर ....
अगर इसे न पढ़ा तो क्या पढ़ा .
इतनी अच्छी रचना के लिए आपको
आभार ..
मेरे ब्लॉग पर आपके कमेन्ट के सन्दर्भ में,
कहना चाहता हूँ की परांठे वाली गली
चांदनी चौक में है . ये परांठो के लिए बहुत प्रसिद्ध है.
(चांदनी चौक, लाल किला के सामने है)
बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध कलाकार श्री अक्षय कुमार का घर भी
इसी गली में है .
वाह..!!
ताजगी से भरी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल
सारे शेर बेहद उम्दा हैं और संजो के रखने लायक हैं
आपको बधाई और आभार
आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में :
मिलिए ब्लॉग सितारों से
Adarniya Mam,
har rachna ki hi tarah apki yah gazal bhi bahut sundar likhi gayi hai.
Poonam
बहुत समय से पढ़ रही हूँ गज़ब लिखते हैं प्राण जी। धन्यवाद निर्मला जी।
उम्दा गज़ल..
आभार
डा.अजीत
लाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।
बहुत ही सुंदर ..........आभार
लहू दे कर संवारा है इसे जब प्राण भाई ने
कहूं कैसे बहन की शायरी अच्छी नहीं लगती.
आपने कमाल कर दिया. क्या मुझ गरीब की छुट्टी करने का इरादा है. कहानियों में तो पहले से ही आप के नाम का डंका बज रहा है, अब गज़लों में भी आपके नाम की तूती बोलने वाली है.
Bahut hi sunder bhav
न काटो डाल जिस पर बैठकर खुशियां मनाते हो
तुम्हारे हाथों अपनी खुदकुशी अच्छी नहीं लगती...waah kya khoob likha hai ,laazwaab hai har sher .
रुलाकर फिर मनाने की बुरी आदत उसे क्यों है
मुहब्बत में मुझे ये दिल्लगी अच्छी नहीं लगती
बहुत उम्दा बात...........
प्रभावशाली ग़ज़ल,
हार्दिक बधाई.....
चन्द्र मोहन गुप्त
ਨਿਰਮਲਾ ਮਾ,
ਨਮਸਤੇ!
ਅਛੀ ਲਗੀ, ਕਿਸੇ ਪਹਿਰ ਕਹ ਦੂੰ.....
ਕੇ ਆਪਕੀ ਏ ਗ਼ਜ਼ਲ ਅਛੀ ਨਹੀਂ ਲਗਤੀ!
ਪੈਰੀ ਪਾਉਣਾ!
ਆਸ਼ੀਸ਼
CORRECTION:
ਕੈਸੇ ਫਿਰ ਕਹ ਦੂੰ...
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