23 January, 2010

संजीवनी [कहानी] अन्तिम  कडी

 पिछली कडियों मे आपने पढा कि सुधाँशू की मौत हो गयी। और किस तरह विकल्प ने उसे उन सभी बातों का एहसास करवाया जो उसने कभी सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं की। आज जल्दी जल्दी मे पोस्ट लिखी है टाईप की गलतिओं के लिये क्षमा चाहती हूँ अब आगे----
अंतिम रस्मे पूरी हो गयी। रिश्ते दार जा चुके थे
 रहते भी क्यों जैसी औपचारिकता आप निभाती आयीं थीं वही वो निभा कर वले गये।
मैं पिता जी के वचन को पूरा करने के लिये आपसे बात करने रुक गया था। मैं तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहता था। तुम से बात की तो तुम ने कह दिया कि मैं नौकरी नहीं छोद सकती। साथ ही मुझे परामर्श दे डाला कि अगर तुम चाहते हो तो मैं यहाँ तुम्हारे लिये एक कम्पनी खोल सकती हूँ। और कहा कि मैं अकेले रह सकती हूँ तुम अपने करियर को देखो।
 * मुझ अतृप्त की कितनी बडी परीक्षा लेना चाहती थी आप। मैं निराश हो गया। आपका तर्क था कि अगर मैं काम मे व्यस्त रहूँगी तो सुधाँशू के गम को भूल पाऊँगी, दूसरा मैं तिम पर बोझ बनना नहीं चाहती।क्या यही दुख हम दोनो मिल कर नहीं बाँट सकते थी? मैने तो सुना था कि माँ बाप बच्चों पर बोझ नहीं होते । बच्चे कभी उनका कर्ज़ नहीं चुका सकते। मगर माँ वो आपकी सोच थी मैं ऐसा नहीं सोचता था। मुझे लगता था कि मैं आपका और आप मेरा बोझ बाँट लेंगी--- जीवन भर की अतृप्त इच्छाओं का बोझ। खैर सारी आशायें छोड मैं फिर से लखनऊ आ गया। आते वक्त पिता जी की कुछ फाईलें और एक डायरी आप से बिना पूछे उठा लाया था। इतना तो उन पर मेरा हक बनता था। मुझे लगा था कि शायद मैं फिर कभी लखनऊ न आ पाऊँगा।यहाँ भी मन नहीं लगता कई बार आपको फोन किया महज औपचारिक बातें हुयी। मैं उसके बाद घर नहीं आया।*
* अभी एक दो दिन पहले मैने पिता जी के डायरी खोली। तब बिना देखे ही रख ली थी। उसमे पिता जी ने मेरे लिये एक लिफाफा रखा था। खोला तो पिता जी का पत्र था। शायद उन्हें आभास हो गया था कि वो अधिक दिन जिन्दा नहीं रहेंगे-- इस लिये आखिरी प्रयत्न करना चाहते थे हम दोनो के बीच की दूरी मिटाने के लिये। पत्र ये भी बहुत बडा है मगर उसमे से कुछ अंश आपको भेज रहा हूँ-- ताकि आप  मेरे इस पत्र का आशय  समझ सको।*

बेटा विकल्प !
          पता नहीं   मैं ठीक हो पाऊँगा या नहीं। अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी आत्मा भटकती रहेगी। तुम्हारे साथ हुये अन्याय से और मानवीतथा तुम्हारे बीच तनाव को ले कर। बेटा! तुम दोनो मुझे बहुत प्रय हो तो क्या मेरी आत्मा की शान्ति के लिये तुम दोनो एक प्रयास नहीं कर सकते? मानवी मेरी कम्ज़ोरी रही हैउसे बहुत प्यार करता हूँ मगर उसे कुछ कहने का साहस नहीं कर पाता। इस लिये तुम्हें एक बात समझाना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि तुम मेरी बात को जरूर समझोगे। मानवी दिल की बुरी नहीं है ये यकीन मानो। उसका दोष भी नहीं है, वो जिस आधुनिक महौल मे पली है, जैसे उसे संस्कार मिले हैं वो वैसी ही है---- भावनाओं से दू, प्रेकटीकल्, अति महत्वाकाँक्षी। मक़िं इसी तथ्य को मान कर ,उसकी हर सोच के साथ समझौता करता चला गया। यहीं पर मैं गलत हो गया। ये बात मैं अब जान सका हूँ। दाँपत्य जीवन तो बचा रहा मगर कुछ चाहतों की वजह से मैं भी अतृप्त रहा। तुम्हारे जन्म के बाद मुझे अपनी गलती का एहसास हुया।मगर तब तक देर हो चुकी थी मानवी से कुछ भी कहना बेकार था। मैने उससे बहुत प्यार किया उसके इस भ्रम को इस जीवन सन्ध्या मे तोडना नहीं चाहता। वो भी मुझे बहुत चाहती है मगर उसका अन्दाज़ अलग है। वो मेरे बिना जी नहीं पायेगी। अगर अपने पिता की अत्मा की शाँति के लिये कुछ कर सकते हो तो बस उसे समझने की कोशिश करो और अपने सब गिले भूल जाओ। वो उपर से जितनी कठोर लगती है दिल से उतनी ही कोमल है। वो घुट घुट कर मर जायेगी मगर अपने दिल की बात किसी से नहीं कहेगी। मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ--- अपनी वंश बेल बढाने के लिये मैने तुम्हारा बचपन तुम से छीन लिया माँ का प्यार छीन लिया। क्षमा चाहता हूँ मेरी अन्तिम इच्छा पूरी कर सको तो अपनी माँको अपना लो।* तुम्हारा गुनहगार पिता

  पत्र पढते हुये मानवी के सब्र का बाँध टूट गया ओह उसने अपनी सोच के आगे क्यों कभी सोचने देखने की जरूरत नहीं समझी । म्क़ैने सुधाँशू के साथ इतना बडा अन्याय कर दिया और उसने उफ तक नहीं की----- सोचते हुये मानवी विकल्प का पत्र फिर पढने लगी------
*माँ आज फिर से मै एक प्रयास कर रहा हूँ और करता रहूँगा पिता जी के लिये तुम्हें समझने की कोशिश कर रहा हूँ। तुम सोच रही होगी कि अगर मैं रिश्ता सुधारना चाहता हू तो पत्र मे अतनी कडवाहट क्यों भरी? शायद आप नहीं जानती जो कभी अनकहा मन मे रह जाता है वो कभी जीने नहीं देता कभी न कभी सिर उठा लेता है, सालता रहता है। अपने दिल मे तुम्हारे लिये स्थान बनाने के लिये अपने दिल से इस मवाद को निकालना जरूरी था। और मेरा है भी कौन जो मेरे दुख बाँट सके। बहुत कुछ इस लिये भी कहा है कि तुम भी मेरे इस क्षोभ को समझ सको। तुम मेरे बारे मे कुछ नहीं जानती--- कुछ भी नहीं--- तुम्हारा बेटा किस यन्त्रना से गुज़र रहा है। जब ये दर्द तीर की तरह तुम्हारे दिल मे चुभेगा तभी तुम मुझे जान पाओगी। मैं आज आपकी आत्मा को झकझोर देना चाहता हूँ।*
*माँ खिडकी के सामने सडक के उस पार गाय खडी है। बछडा उचक उचक कर कितनी उमंग से उसका दूध पी रहा है--- और गाय बछडे को प्यार से चाट रही है--- शायद ये दुनिया का सब से अनमोल सुख है, तृप्ति है जिस से मैं वंचित रहा हूँ। उसके पास ही एक पेड पर चिडिया अपने घोंसले के पास बैठी है। वो बाहर से दाना चुग कर लाती है और खुद अपने बच्चों के मुंह मे डालती है--- बच्चों की चोंच से चोंच मिला कर प्यार का इज़्हार करती है। माँ क्या इन्सान जानवर से भी बदतर हो गया है पशु पक्षियों की मांयें नहीं बदली  फिर इन्सान के माँ बाप क्यों खुदगर्ज़ हो गये हैं। किसी बच्चे को माँ की गोद मे देखता हूँ तो मन मे टीस उठती है। पता नहीं मुझे जन्म देने वाली माँ की क्या मजबूरी थी ,जो अपनी ममता का गला घोंट दिया। मेरा बचपन तो इस आधुनिकता की भेंट चढ चुका है नगर बाकी जीवन तो बचा सकती हो। आज अपने अन्दर का हर दर्द आपकी आत्मा मे चुभा देना चाहता हूँ मैने सुना है कि पूत कपूत हो सकता है पर माता कुमाता नहीं---- आज मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुम मुझे वो संजीवनी दे सकती हो---- माँ के वात्सलय और स्नेह की संजीवनी---- माँ मैं जीना चाहता हूँ----- बस एक बार बेटा कह कर प्यार से मुझे पुकारो गले लगा लो माँ----* तुम्हारा विकल्प ।

पत्र समाप्त हो चुका था----- एक जलजला आया था मानवी के दिल मे जो उसके व्यक्तित्व को हिला गया ---- किस दुनिया मे जी रही थी वो--- उसके सामने ज़िन्दगी के सुन्दर पल बिखर रहे थे मगर वो देख न पाई---- पहले सुधाँशू ---- फिर विकल्प?-----। अब क्या बचा है उसके पास । दौलत और पद प्रतिषठा के अहं मे किसी की भावनाओं को कभी समझा हे नही। ---- सुधाँशू हर पल पास होते हुये भी कितने अकेले थे---- और विकल्प--- अनथ संतप्त इतना आक्रोश और मन मे इतनी आग जलाये कैसे जी रहा है वो---- फिर भी मेरा सहारा बनना चाहता है और एक मैं कि उसके पिता की मौत पर उसे सहला भी न पाई। उसे लगा कि विकल्प की इस आग ने उसकी अत्मा मे जमी संवेदनहीनता की बर्फ कोपिघला दिया है----- और वो आँसू बन कर आँखों से बह रही है--- आँसू बहे जा रहे थे --- अविरल --- कहीं दूर 3 बजे के घँटे की आवाज़ सुनाई दी---- बरबस ही उसके हाथ टेलिफोन की तरफ बढ गये---  वो विकल्प का नम्बर डायल कर रही थी---- शायद उसकी बची ज़िन्दगी के लिये संजीवनी देना चाहती थी--
*हेलो* दूसरी तरफ से आवाज़ आयी
*बेटा*----- आगे एक शब्द न बोल सकी।
*माँ* ----- और दोनो निशब्द जाने कितनी देर आँसू बहाते रहे।------  समाप्त
हमारे वैग्यानिक अपनी ज़िन्दगी के सब सुख छोड कर हमारी सुख सुविधा के लिये नये नये अविष्कार करते हैं मगर हम अपनी महत्वाकाँषाओं व तृष्णाओं को पूरा करने के लिये उनका दुरुपयोग करने लगते हैं। *इन्विट्रो फर्टेलाईजेशन* भी उन बेऔलाद लोगों के लिये किया ग्या अविश्कार है जो किसी रोग या प्रकृतिक कारणो के चलते अपनी औलाद पैदा करने मे अस्मर्थ हैं लेकिन कुछ माँयें इसका उपयोग केवल अपने फर्ज़  से बचने के लिये, केवल अपने करियर और मातृत्व कष्टों को न सहन करना पडे इस लिये कर रहे हैं। इस के क्या परिणाम हो सकते हैं? इस कहानी की तरह जरूरी नहीं कि सभी बच्चे विकल्प की तरह समझदार हों असली ज़िन्दगी मे ऐसा होता भी कम है।तो वो क्या गलत कदम नहीं उठा सकते । ये कहानी बहुत बडी है इसे संक्षिप्त किया गया है विकल्प अपनी जन्म देने वाली माँ से भी मिलता है मगर पाठक बोर न हों लम्बी कहानी से इस लिये इसे यहीं समाप्त किया जा रहा है।

35 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

सर्वत एम० said...

आप की लेखनी का जादू तो बाँध लेता है पढ़ने वाले को. जब तक कथा का अंत नहीं हुआ, एक अलग ही दुनिया बन गयी थी. कथा की समाप्ति के बाद जब जादू खत्म हुआ और हकीकत से रूबरू हुआ तो एक विचार सामने आया- क्या इतनी जल्दी और अचानक, एक पत्र तुरंत रुधिर परिवर्तन करा देता है? क्या सारी ज़िन्दगी की आइडियालोजी एक पल में परिवर्तित हो सकती है?
फिर ध्यान आया, आप स्वयं महिला हैं. महिला मनः स्थिति को आपसे बेहतर कौन समझ सकता है. कथा की प्रशंसा ही कर रहा हूँ, कुछ और न समझ लीजियेगा.

निर्मला कपिला said...

सर्बत जी बहुत बहुत धन्यवाद बहुत बार देखा गया है कि जब कोई बात दिल को गहरे से बीन्ध देती है तभी आदमी एक दम नींद से जागता है। और फिर सुधाँशू के बिना मानवी भी तो अन्दर से कमजोर महसूस कर रही थी ऐसे समय पर विकल्प ने उस के दिल को अन्दर तक बीन्ध दिया तो उसे आपनी गलती का एहसास हो गया। एक दम उसे यही लगा कि उस से भूल हुयी और उसी भावावेश मे उसके हाथ टेलिफोन की ओर बढ गये। धन्यवाद आपने कहानी को ध्यान से पढा और मेरी हौसलाफ्ज़ाई की इस कहानी को उप्न्यास का रूप देना चाहती हूँ इस लिये आप सब के सुझाव मेरे लिये अनमोल हैं

Kulwant Happy said...

बेटे को फोन क्यों नहीं करती आप? बेटा खुद कर लेगा, एक बार नम्बर भेज दें।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

उपन्यास का रूप देना है तो पात्र बढ़ाने पड़ेंगे। किराए की माँ, आया और शायद आइ ए एस ऑफिसर की कोई प्रेमिका... एक बहुत ही बढ़िया उपन्यास का स्कोप बनता है।
कहानी तो अपने आप में पूर्ण है। आज पूरा एक साथ पढ़ गया।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर कहानी , गिरिजेश जी की बात से सहमत कि कहानी को एक उपन्यास अथवा लघु उपन्यास का रूप दिए जाने की पूरी- पूरी गुंजाइश है

Pawan Kumar said...

आदरणीया.....
प्लाट तो जबर्दस्त है........उपन्यास का विस्तार मिले तो मज़ा आ जायेगा.

Arvind Mishra said...

किराये की कोख प्लाट की एक उम्दा कहानी -बधाई !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी पूरी कहानी में तारतम्य बढ़िया रहा!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बढिया और प्रवाह में है यह कहानी. शुभकामनाएं.

रामराम.

vandana gupta said...

nirmala di

kahani ki nabz aapne bakhubi pakdi hai aur aaj ke samvedanheen hridayon ki bhi bahut hi sundarta se vyakhya ki hai aur ek avishkar ka kaise durupyog kya ja sakta hai aur uske doorgami parinam kya nikal sakte hain wo bhi bahut hi sundar dhang se vivechit kiya hai magar kahani ko is mod par lakar samapt kar diya to aisa laga jaise kuch adhura rah gaya .........sach ye to ek upanyas ban jata ya 1-2 kadi aur likhti aapki kaise vikalp apni maa se mila aur vatsalya sukh kaise prapt kiya ..............vaise to maa aur beta kahne mein sabhi bhavon ki poornahuti ho gayi thi magar phir bhi hamein to aage bhi chahiye.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

MOM..... कहानी की अंतिम कड़ी बहुत अच्छी लगी..... आपने शुरू से लेकर अंत तक बाँध कर रखा.....

विनोद कुमार पांडेय said...

आधुनिकता को अपने आवेश में समेटती हुई एक बेहतरीन कहानी अंत तक जाते जाते सब कुछ बदल कर रख देती है और यही वास्तविक जीवन की सच्चाई है पर जब तक आदमी संभलता है बहुत देर हो चुकी होती है..

पूरी कहानी बहुत बढ़िया लगी...एक बार फिर से आपको बहुत बहुत धन्यवाद कहना चाहूँगा और आगे नये भाव के साथ कुछ नयी प्रस्तुति का इंतज़ार करूँगा..प्रणाम

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी लगी आप की यह कहानी,
धन्यवाद

अनिल कान्त said...

aaj poori kahani phir se padhi.
kahani ki zameen bahut khoob chuni aapne.
aanand aa gaya

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी लगी पूरी कहानी, बेहतरीन लेखन के लिये आभार ।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

behatareen...

aafareen...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

प्रवाहयुक्त सुन्दर कथा. बधाई.

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

प्रणाम माज आज जब आप के ब्लॉग पर आया और आप की खानी की अंतिम कड़ी पढी तो मन नहीं भरा और शारी खानी पढने का मन हुआ और मैंने आज सारी कहानी खत्म भी कर दी बहुत ही रोचक और बाधने बाली कहानी अंत तम सांस लेने का भी मन नहीं कर रहा था
सादर

प्रवीण पथिक
9971969084

रंजना said...

Bahut badi baat kahi hai aapne is katha ke maadhyam se.....

Bhoutikta ka labada jitna bharee karte jayenge ham,aatma utnee bhojhil aur ekelee hotee jayegee...

Bahut hi sundar kahani,jise bade hi rochak andaaj me aapne saamne rakha...

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी कहानी!

Ashutosh said...

आपने शुरू से लेकर अंत तक बाँध कर रखा.
हिन्दीकुंज

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी लगी आप की यह कहानी,
धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

mummy u r greate...

Renu goel said...

आपकी कहानी एक ऐसे तथ्य से रूबरू कराती है जो कुछ हद तक हमारी आधुनिकता की भेंट चढ़ चूका है ... इन मानवीय संवेदनायों को हमें जीवित रखना ही होगा ....
भावपूर्ण कहानी ...

Mithilesh dubey said...

माँ जी चरण स्पर्श

आपकी कहानी हमेशा कुछ ना कुछ शिक्षा देती है , पढ कर बहुत ही अच्छा लगा, आपने एक बार फिर बाँध के रखा अन्त तक ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

मैंने आपकी पूरी कहानी को पढ़ा, वाकई बहुत ही रोचक कहानी है,इसे पुस्तक का आकार अवश्य दें.

दिनेशराय द्विवेदी said...

सही तो यही है कि पूरे उपन्यास को आप ने कहानी में समेट दिया।

अनामिका की सदायें ...... said...

Nirmala ji sadar prnaam.
aapki kahani ko shuru se padhti aayi hu. ek baar to bahut lamba rev.b de rahi thi ki light chali gayi aur sab gud-gobar ho gaya aur mood bhi kharab ho gaya tha. tab us kadi par rev. de hi nahi payi thi. kahani ka ending k kuchh shabd jo vikalp kehta hai...mano aisa laga mere dard ko kuraidte/sehlate se paas se mujhe chhuu kar nikal gaye. kahani bahut lay badhh rahi aur shabdo ka chunaav bhi behtareen tha.

Nirmala ji aap sujhaav maang rahi hai? aap khud aaftaab hai..aapko ham kya roshni denge jo jugnu bhi nahi hai. aapki to itni books chhap chuki hai...hamara kehna to khud ko lajana sa lagta hai...fir bhi aapki icchha ka maan rakhte huai likh rahi hu..

jab aap upanyaas ka roop de to....shuruati bhoomika lambi kar sakti hai..vikalp k janm ka background de sakti hai...even maanvi/sudhanshu ki starting married life/beech ka samay aur kucchh conceive na karne ki pareshaniyo k saath ek nari ka apne figure k liye jyada concious rehna bhi ek ahem vajeh ban sakti hai conceive na karne k jise aap vistar se likh sakti hai. maanvi ka office me behave explain kar sakti hai. vikalp ke tanha bachpan ko detail me bayaan kar sakti hai...aur sudhanshu ke antas ki vedna ko ukair kar pathko k dil dravit kar sakti hai.aur jab ending ka vakt aaye to letter ka istemaal kar ye sab likhe. aur ha.n sudhanshu ki mrityu k baad manvi ka tootna dikhana aur story ko real life se judta hua base dega.uske baad letter k thru vikalp k shabd-baan jo manvi k man ko beendhte ho...prayog kare. aur ant me maa ke paseejte huai waqt ko thoda lamba kheeche...means manvi ka man-manthan kafi dair tak dikhaya jaye.

Nirmala ji....kuchh galat ho to kshama praarthi hu...aapke upanyas ki safalta ke liye duao k sath ijajat. aur ha.n bataiyega jarur kuch progress ho to.

पूनम श्रीवास्तव said...

Aadarniyaa kapila ji
aapaki yah kahani maine pehali bar paDhi.kahani ke kathya aur shilp etane prabhavshali the ki maine yah puree padh kar hi chhoDi.aagali ke intanjar main ..dhanyavaad.
poonam

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

व्यवस्तताओं के कारण पिछले कुछ दिनों से नैट से दूरी बनी रही......आज आया तो देखा कि आपने तो अतिभौतिकता के विपरीत पहलू को उजागर करती इतनी बेहतरीन कहानी लिख रखी है...अभी इस कहानी का पिछला भाग पढते हैं...तभी पूरी तरह से समझ पाएंगें ।

Smart Indian said...

कहानी का विषय बहुत अच्छा है और प्रवाह भी. धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा said...

जाने कितनी बार मेरी आँख से आँसू निकले हैं इस कहानी को पढ़ते हुवे ......... स्तब्ध हूँ आपकी सवेदनशीलता देख कर ....... यूँ ही नही लिखी जेया सकती ऐसी कहानी अगर दिल में प्रेम का स्त्रोत न बह रहा हो ........ वो बहुत किस्मत वाले हैं जो आपके करीब हैं ...... प्यार करने वाले दिल के करीब .......

Sadhana Vaid said...

कहानी ने झकझोर कर रख दिया । बहुत ही मार्मिक कथा है । जिज्ञासा का बाँध टूटा जाता है । अपनी जन्मदायिनी माँ के साथ मिलने का अनुभव विकल्प का कैसा रहा जाने बिना स्वयम को बहुत अतृप्त सा अनुभव कर रही हूँ । आप कहानी को पूरा ही डाल दीजिये ना ब्लॉग पर । प्लीज़.... ! सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई ।

जोगी said...

Perfect !!!

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