चटकों का एक सच ये भी है
अज मुझे अपनी कहानी बीच मे छोद कर ये पोस्ट डालनी पडी। जो मेरी आत्मा को कई दिन से मथ रही थी। जब से मुझे अपनी गलती का एहसास हुया तब से। मगर इस गलती को मै एक ही पोस्ट मे कई बार नही कर सकती थी, तो क्या मेरे जैसी गलतियाँ करने वाले और लोग भी नही हो सकते ब्लागजगत मे?
आज कल चट्कों टिप्पणियों को लेकर कई ब्लाग्ज़ पर जोरदार चर्चा चल रही है। और हर बात के लिये ब्लागवाणी को दोश दिया जा रहा है। लेकिन हर वो सच सच नही होता जो दिखाई देता है। मै इसमे ब्लागवाणी की वकालत नही कर रही लेकिन । मुझे नही पता कि सच क्या है। लेकिन आज एक बात सब को बताना चाहती हूँ पसंद ना पसंद को ले कर चाहती तो चुप भी रहती लेकिन मुझे लगता है मेरी इस पोस्ट से सब को सच समझने मे कुछ सहायता मिल सकती है।
जब मै नई आयी थी तो मुझे कम्पयूटर की बिल कुल भी जानकारी नही थी अब भी नही है लेकिन फिर भी काम चला लेती हूँ। लगभग कोई पोस्ट पढ कर एक साल बाद मुझे पता चला कि लोग पसंद पर चटका क्यों लगाते हैं । तब से मैने भी कई लोगों की पोस्ट पर चटके लगाने शुरू कर दिये। फिर शायद ब्लागवाणी मे कुछ परिवर्तन हुया या मैने ही ध्यान नही दिया कि नापसन्द के भी चतके होते हैं । मै कम्प्यूटर पर वो काम नही करती जिस के बारे मे पता ना हो
नीचे जो इन सब के लिये चिन्ह होते हैं उन्हें कभी देखने की कोशिश नही की। लेकिन पसंद पर चटका लगा देती। एक दिन किसी की पोस्ट पर एक चटका लगाया तो अँकडा नही बदला फिर मैने उपर के एरो पर लगाया फिर भी आँकडा नही बदला फिर मैने उपर नीचे कई चटके लगाये मगर वो आँकडा नही बदला । मै उसे छोड कर अगले ब्लाग पर गयी। जब कुछ देर बाद फिर पीछे मुडी तो देखा कि वहाँ आँकडा बदला हुया था। तभी मैने नीचे के चिन्ह भी क्लिक किये तो वहाँ देखा पसंद और ना पसंद के चिन्ह थे। फिर मुझे अपनी गलती का एहसास हुया कि शायद मैने नापसंद पर चटका तो नही लगा दिया। अब आप इसे मेरी नालायकी कह सकते हैं मगर मुझे अपनी गलती मानने मे कोई संकोच नही। अगर इस गलती की वजह से किसी का दिल दुखा हो तो माफी चाहती हूँ। हो सकता है मेरी नासमझी से पहले भी कभी ऐसा हुया हो। अगर ये बवाल ना होता तो शायद अभी भी मुझे ये सब पता न चलता और ना कुछ सीखने का अवसर मिलता। कहते हैं न जो होता है अच्छे के लिये होता है। अगर मेरी नालायकी या भूलवश किसी के ब्लाग पर नापसंद का चटका लग गया हो तो माफी चाहती हूँ।
इस बात से क्या आपको नही लगता कि मेरे जैसे अनजान लोग और भी इस ब्लागजगत मे हो सकते हैं? या इस के इलावा शरारती तत्व किसी को भडकाने के लिये ऐसा कर सकते हैं? कौन किस के कन्धे पर बन्दूक चला रहा है? इस सारे सच पर सब को आत्म मन्थन करना चाहिये। आप कैसा लिखते हैं ये सभी जानते हैं फिर पसंद ना पसंद क्या मायने रखती है?इस बात पर बवाल मचाने की क्या बात है। एक दिन मेरी कहानी पर 4 चटके लगे थे पसंद के मुझे नही पता कौन मेरे शुभचिन्तक हैं मगर उस दिन भी मेरी पोस्ट ब्लागवानी की पसंद लिस्ट मे नही थी। कुछ भी कारण हो सकता है, मगर बिना सच जाने किसी को दोश देना कहाँ की समझदारी है? फिर मेरे जैसे लोगों ने तो अपनी सृजन यात्रा ही ब्लागवाणी से शुरू की है इसके आँचल मे ही अपनी आँखें खोल कर नई दुनिया मे प्रवेश किया।
इस लिये सभी से एक निवेदन है कि हर दोश ब्लागवाणी पर थोपने से पहले सच जान लें। मेरे जैसे सच और भी हो सकते हैं।
ब्लागवाणी आपसे अपनी सेवा के बदले कुछ लेती नही है। हम जैसे तकनीक से अनजान लोगों के लिये सब से आसान और अच्छा साधन है। कम से कम जो लोग ब्लागवाणी से जुडे रहना चाहते हैं उन पर रहम खाईये। अगर और कोई ब्लागवाणी की जगह लेना चाहता है तो उनकी तरह निश्काम भाव से काम कर के दिखाये उसका भी स्वागत होगा, मगर ब्लागजग्त का माहौल खराब कर के नहीं। और ब्लागवाणी को इन शरारती तत्वों की बातों मे आने की जरूरत नही । हम जैसे लोगों के जज़्बात का भी ध्यान रखें और जल्दी से जल्दी ब्लागवाणी शुरू करें। ये मैथिली जी और सिरिल जी से विनती है कि इन छोटी छोटी बातों पर गौर मत करें हिन्दी के उत्थान जैसे महाँ यग्य मे उनकी आहूति को कौन नही जानता फिर महानता किसी के दोश देखने मे नही उन्हें माफ करने मे या नज़र अन्दाज़ करने मे है।
आज कल चट्कों टिप्पणियों को लेकर कई ब्लाग्ज़ पर जोरदार चर्चा चल रही है। और हर बात के लिये ब्लागवाणी को दोश दिया जा रहा है। लेकिन हर वो सच सच नही होता जो दिखाई देता है। मै इसमे ब्लागवाणी की वकालत नही कर रही लेकिन । मुझे नही पता कि सच क्या है। लेकिन आज एक बात सब को बताना चाहती हूँ पसंद ना पसंद को ले कर चाहती तो चुप भी रहती लेकिन मुझे लगता है मेरी इस पोस्ट से सब को सच समझने मे कुछ सहायता मिल सकती है।
जब मै नई आयी थी तो मुझे कम्पयूटर की बिल कुल भी जानकारी नही थी अब भी नही है लेकिन फिर भी काम चला लेती हूँ। लगभग कोई पोस्ट पढ कर एक साल बाद मुझे पता चला कि लोग पसंद पर चटका क्यों लगाते हैं । तब से मैने भी कई लोगों की पोस्ट पर चटके लगाने शुरू कर दिये। फिर शायद ब्लागवाणी मे कुछ परिवर्तन हुया या मैने ही ध्यान नही दिया कि नापसन्द के भी चतके होते हैं । मै कम्प्यूटर पर वो काम नही करती जिस के बारे मे पता ना हो
नीचे जो इन सब के लिये चिन्ह होते हैं उन्हें कभी देखने की कोशिश नही की। लेकिन पसंद पर चटका लगा देती। एक दिन किसी की पोस्ट पर एक चटका लगाया तो अँकडा नही बदला फिर मैने उपर के एरो पर लगाया फिर भी आँकडा नही बदला फिर मैने उपर नीचे कई चटके लगाये मगर वो आँकडा नही बदला । मै उसे छोड कर अगले ब्लाग पर गयी। जब कुछ देर बाद फिर पीछे मुडी तो देखा कि वहाँ आँकडा बदला हुया था। तभी मैने नीचे के चिन्ह भी क्लिक किये तो वहाँ देखा पसंद और ना पसंद के चिन्ह थे। फिर मुझे अपनी गलती का एहसास हुया कि शायद मैने नापसंद पर चटका तो नही लगा दिया। अब आप इसे मेरी नालायकी कह सकते हैं मगर मुझे अपनी गलती मानने मे कोई संकोच नही। अगर इस गलती की वजह से किसी का दिल दुखा हो तो माफी चाहती हूँ। हो सकता है मेरी नासमझी से पहले भी कभी ऐसा हुया हो। अगर ये बवाल ना होता तो शायद अभी भी मुझे ये सब पता न चलता और ना कुछ सीखने का अवसर मिलता। कहते हैं न जो होता है अच्छे के लिये होता है। अगर मेरी नालायकी या भूलवश किसी के ब्लाग पर नापसंद का चटका लग गया हो तो माफी चाहती हूँ।
इस बात से क्या आपको नही लगता कि मेरे जैसे अनजान लोग और भी इस ब्लागजगत मे हो सकते हैं? या इस के इलावा शरारती तत्व किसी को भडकाने के लिये ऐसा कर सकते हैं? कौन किस के कन्धे पर बन्दूक चला रहा है? इस सारे सच पर सब को आत्म मन्थन करना चाहिये। आप कैसा लिखते हैं ये सभी जानते हैं फिर पसंद ना पसंद क्या मायने रखती है?इस बात पर बवाल मचाने की क्या बात है। एक दिन मेरी कहानी पर 4 चटके लगे थे पसंद के मुझे नही पता कौन मेरे शुभचिन्तक हैं मगर उस दिन भी मेरी पोस्ट ब्लागवानी की पसंद लिस्ट मे नही थी। कुछ भी कारण हो सकता है, मगर बिना सच जाने किसी को दोश देना कहाँ की समझदारी है? फिर मेरे जैसे लोगों ने तो अपनी सृजन यात्रा ही ब्लागवाणी से शुरू की है इसके आँचल मे ही अपनी आँखें खोल कर नई दुनिया मे प्रवेश किया।
इस लिये सभी से एक निवेदन है कि हर दोश ब्लागवाणी पर थोपने से पहले सच जान लें। मेरे जैसे सच और भी हो सकते हैं।
ब्लागवाणी आपसे अपनी सेवा के बदले कुछ लेती नही है। हम जैसे तकनीक से अनजान लोगों के लिये सब से आसान और अच्छा साधन है। कम से कम जो लोग ब्लागवाणी से जुडे रहना चाहते हैं उन पर रहम खाईये। अगर और कोई ब्लागवाणी की जगह लेना चाहता है तो उनकी तरह निश्काम भाव से काम कर के दिखाये उसका भी स्वागत होगा, मगर ब्लागजग्त का माहौल खराब कर के नहीं। और ब्लागवाणी को इन शरारती तत्वों की बातों मे आने की जरूरत नही । हम जैसे लोगों के जज़्बात का भी ध्यान रखें और जल्दी से जल्दी ब्लागवाणी शुरू करें। ये मैथिली जी और सिरिल जी से विनती है कि इन छोटी छोटी बातों पर गौर मत करें हिन्दी के उत्थान जैसे महाँ यग्य मे उनकी आहूति को कौन नही जानता फिर महानता किसी के दोश देखने मे नही उन्हें माफ करने मे या नज़र अन्दाज़ करने मे है।
42 comments:
ये पसंद नापसंद भी ऐसी चीज है जो बार बार लोगों को ब्लागवाणी पर ले जाती थी।
बिल्कुल..मैं तो उनकी सेवाओं से अनुग्रहित और प्रभावित हूँ..निःसंकोच..कई नये विकल्प आयेगे और आ रहे हैं मगर उनकी सेवायें जब जरुरत थी तब रही..नये की नये वक्त में रहेंगी..सबकी अच्छाई बुराई होगी..कौन परफेक्ट हुआ है आज तक...सो तो हम न गाँधी जी को मान पाये और न ही भगवान को...यह हमारा दोष है.
आपकी बातों से शतप्रतिशत सहमति...
मेरा स्पष्ट मानना है.. दूसरों को दोष देने से बेहतर है आप उनसे बेहतर कर के दिखाओ.. बहुत आसान होता है दूर खड़े होकर किसी को कोसना.. कमी निकालना...
हम सहमत हैं. ब्लागवाणी के सहारे हम चिट्ठों तक पहुँचते थे लेकिन पसंद नापसंद आदि पर हमने कभी चटके नहीं लगाये.अब क्योंकि वह बंद है, इसलिए विकल्प के तौर पर चिट्ठाजगत (http://www.chitthajagat.in/) का प्रयोग कर रहे हैं.
में भी सहमत हूँ, ब्लोग्वानी हो या चिट्ठाजगत इनको शीर्ष ब्लॉगर देखने की लिस्ट हटा देनी चाहिए क्यूंकि इसके पीछे का फ़ॉर्मूला ठीक नहीं है.
बाकी पसंद ना पसंद सब चलता है ...
निंदक नियरे राखिये .....
सहमत
सिर्फ़ दो बातें कहना चाहता हूं कि ,
ब्लोगवाणी का अभी कोई भी विकल्प नहीं है , दूर दूर तक भी नहीं
ब्लोगवाणी खुद कुछ नहीं कर रही थी , जो कर रहे थे वो सिर्फ़ ब्लोग्गर्स ही कर रहे थे ।
हां मगर कुछ बातों में नि:संदेह सुधार की गुंजाईश है
ब्लोगवाणी का एकाएक बंद हो जाना अत्यन्द दुर्भाग्यपूर्ण घटना है।
बिल्कुल..मैं तो उनकी सेवाओं से अनुग्रहित और प्रभावित हूँ..निःसंकोच..कई नये विकल्प आयेगे और आ रहे हैं मगर उनकी सेवायें जब जरुरत थी तब रही..नये की नये वक्त में रहेंगी..सबकी अच्छाई बुराई होगी..कौन परफेक्ट हुआ है आज तक...सो तो हम न गाँधी जी को मान पाये और न ही भगवान को...यह हमारा दोष है.
आपने बिलकुल सही कहा....बहुत सी गलतियाँ अनजाने में हो जाती हैं...ब्लोगवाणी की कमी खल रही है...पर कहावत है कि गेंहूँ के साथ घुन भी पिसता है तो बस हम भी बस कमी महसूस ही कर पा रहे हैं.....
Mian bhi Pasand na Psand tab jaana, jab is vishay par jyaada post likhi ja rahi thi.
Blogar ke liye mahtwpurn ye hona chaahiye ki paathak pahunch rahen hain, aur iske liye blogvani ya anya aggregator ka bahut bada role hai.
Kuchh log jabardasti pasand karwaane ke pichhe pade hua hain. ye galat hai.
आपकी बातों में दम है।
ब्लोगवानी की कमि खाल राशि है ... बाकी चॅटखों का गणित तो ना हमको समझ आया न समझने की इच्छा ही हुई ...
mujhe to ajtak pata hi nahi chala ki ye pasand na pasand ke chatke lagaye kahan jate the main to sirf wahan se jo bhi achch alagta tha padhti thi aur comment karti thi magar yahan logon ko ye bhi manjoor nahi ............aapne bilkul sahi likha hai ..........mere khyal se to blogvani ko ye sab hatha kar simple links hi dene chahiye taki bhavishya mein phir koi controversy hi nahi rahe aur sare option hta lene chahiye ............nahi to log phir kuch na kuch kahte rahenge.
ब्लॉगवाणी फिलहाल भले ही अवकाश पर है...लेकिन सुनने में आया है कि यह नए रुप में एक बार फिर हमारे सामने उपस्थित होगी...सही मे इसकी कमी खल रही है!... आपकी प्रस्तुति उचित है!
aadarniya mam
aapki baat bilkul sahi hai .jaane anjaane galtiyan kisase nahi hoti,par fir bhi apni anjaane me hui galti ke liye maaffi maangne se aapki mahaanta hi siddh hoti hai.
mujhe is baare me bilkul bhi pata nahi tha. kyonki idhar maa ji ke
swasthya ko hi lekar chinta bani rahti hai.isliye net par aaj kal jyada dhyaan nahi de rahi hun.
ha!jab mai iske pahale apna geet blogvani par post kar rahi to vo ho nahi pa raha tha.fir hamne use chhod diya.
aaj avsar milne par tippni daalne baithi tab vo karan samajh me aaya.
aapkibaat ka ek baar punah samarthan karti hun.
poonam
ब्लागवाणी के बिना तो ब्लागिंग का सारा आनन्द ही जाता रहा....ब्लागवाणी वाकई ब्लागवाणी है.
कैसा रहे यदि हम अपना काम करते रहें , और ब्लोगवाणी अपना ।
वैसे ये नापसंद वाला चटका तो हटा ही देना चाहिए ।
आखिर इससे क्या हासिल होता है ?
डॉक्टर दराल से सहमत,
ब्लॉगवाणी का अपना महत्व है...जिस तरह आप शुरू से एक अखबार पढ़ते रहें तो आपको उसकी आदत पढ़ जाती है, आप कभी अखबार बदल कर दूसरा लगाएं भी तो आपको मज़ा नहीं आएगा...लेकिन इसका मतलब नहीं कि दूसरे अखबार अच्छे नहीं...ब्लॉगवाणी के ब्रेक पर जाने से एक काम तो अच्छा हुआ, इंडली और ब्लॉग प्रहरी जैसे नए एग्रीगेटर्स पर भी ब्लॉगर्स जाने लगे...इससे एग्रीगेटर को भी प्रोत्साहन मिला और ब्लॉगर्स का भी ट्रैफिक बढ़ा...आशा है ब्लॉगवाणी नए कलेवर और तेवर के साथ जल्दी फिर शुरू होगा...
जय हिंद...
सुन्दर अभिव्यक्ति।
आपकी बात से काफी हद तक सहमत. लेकिन मेरे विचार से नापसंद के चातको की एक सीमा होनी चाहिए जैसे की एक व्यक्ति को 24 घंटे में केवल 5नापसंद के चटके ही लगाने की आज्ञा हो. इससे लोगो को इसे लगाने में गंभीरता आएगी. और बिना मतलब के ही नापसंद के चटके पर रोक लगेगी.
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
बड़ी दूर तक गया।
लगता है जैसे अपना
कोई छूट सा गया।
कल 'ख्वाहिशे ऐसी' ने
ख्वाहिश छीन ली सबकी।
लेख मेरा हॉट होगा
दे दूंगा सबको पटकी।
सपना हमारा आज
फिर यह टूट गया है।
उदास हैं हम
मौका हमसे छूट गया है..........
पूरी हास्य-कविता पढने के लिए निम्न लिंक पर चटका लगाएं:
http://premras.blogspot.com
sahmat ...sangeeta di ki tippni ko hi meri tippani bhi mana jaye
मैं भी इन लफड़ों से दूर रहता हूं..
मुझे भी दो महीने पहले ही पता चला इन चटखो का, मेने भी लगाने चाहे चटखे लेकिन वो जब नाम ओर पास पोर्ट मांगता था तो मै दे देता लेकिन बिना मेमबर बने आप इसे नही लगा सकते तो हम ने आज तक एक भी चटखा नही लगाया....
सही कह रही हैं आप...
ये पसंद ना पसंद से क्या होता है? मुझे तो आज तक नहीं दिखा कि चटका कहां है। लोगों की पोस्टें पढता हूं कमेंट करता हूं। बस। मेरी पसंद ना-पसंद मेरी टिप्पणी में ही होती है।
जो लोग निस्स्वार्थ भाव से कुछ सेवाएं प्रदान कर रहे हैं उन्हें हमें सराहना चाहिए।
दीदी आपकी बातें सारगर्भित, समयोचित और सटीक हैं।
चटकों का रहस्योदघाटन करने के लिए धन्यवाद!
.
राम कसम, मैंनें अभी हाल तक चटकेबाजी का विकल्प या तो देखा नहीं, या फिर ध्यान न दिया होगा । इन बेहूदे लफ़ड़ों के बाद गौर किया, तो पता चला । एक दो बार प्रयास किया तो लॉगिन ही न हो पाया.. ब्लॉगवाणी पर बनाया हुआ आई.डी. और पासवर्ड भी याद नहीं । इस पृष्ठ को अब तक मैं केवल पथप्रदर्शक के रूप में ही लेता रहा था । नये पोस्ट की सूची देखी, समझ में आया तो लिख के सहारे पहुँच गये, कुछ और समझ में आया टिप्पणी दे दी ( गोकि मैं बदनाम टिप्पणीबाज हूँ )..
यदि कुछ और ज़्यादा ही समझ में आया, तो उस ब्लॉग को पृष्ठाँकित कर लिया ।
जब खुद मुझी में सलीके से लिखने का सऊर नहीं हैं, तो दूसरों की पोस्ट नापसँद करने वाला मै कौन ?
ब्लॉगिंग विधा में अभी परिपक्वता कहाँ आ पायी है, और.. क्या रखा है, इन बातों में ?
आपके विचारों से सहमत हूँ ..आभार ...
कमी तो खल रही है
निर्मला जी, आपके दिल से निकली हुई बात से सहमत हूँ. चटकों का महत्त्व ब्लोग्वानी के लिए हो सकता है मगर मेरे जैसे पढ़ने वाले तो ब्लॉग पर सीधे ही जाते हैं किसी भी एग्रीगेटर के बिना. आप ही की तरह ब्लोग्वानी पर ध्यान गया ही तब जब हर तीसरा ब्लोगर इस पर पोस्ट लिखने लगा था.
निर्मला जी ये तो आपने बडे कामकी बात बताई । नापसंद के चटखे भी होते हैं । मैने तो कभी इसे प्रयोग नही किया, नही अच्छा लगा तो आगे बढिये । चटखे की क्या जरूरत हर कोई अपनी बात सामने रखने का हकदार है ।
ब्लॉगवाणी में चटके आईडी, पासवर्ड और आईपी के सहारे संभव होते थे जिसका संपूर्ण रिकार्ड ब्लॉगवाणी के पास होगा ही और वक्त आने पर वे इसे उजागर भी कर सकते हैं जिससे सब स्पष्ट हो जावेगा.
इसमें कोई दो मत नहीं कि अधिकांश ब्लॉगर ब्लागवाणी के सहारे ही ब्लॉग पोस्टों को पढ़ते थे हम भी इसी के मुरीद थे अब इसका अटक जाना खल रहा है.
निर्मलाजी,आप सही लिख रही हैं कि एक अनावश्यक विवाद को जन्म दे दिया गया है। मेरा यह मानना है कि ब्लागिंग ज्ञान प्राप्त करने के लिए है ना कि ज्ञान बांटने के लिए। आपको जिन लोगों का लिखा और जो विषय अच्छे लगते हैं वे आप पढ़ते हैं इसमें इतना दुराग्रह क्यों कि हमारा पढा ही जाए। या हम ब्लागवाणी की हॉट लिस्ट में सबसे ऊपर हो।
ब्लागवाणी की आवश्यक्ता तो बनी ही रहेगी।
लेकिन इस नापसंद के चटके का एक दूसरे के खिलाफ़ गलत इस्तेमाल ही हुआ है। इसे हटा कर फ़िर प्रारंभ करना चाहिए।
साधुवाद
मुझे लगता है कि किसी ब्लॉग पर समुचित टिप्पणी देना ही पसंद दिखाने का द्योतक है । निर्णायक बनने का अधिकार तब आता है जब आपकी प्रतिभा लेखक के ऊपर हो । हाँ, पसंद या नापसंद के कुछ बिन्दु हो सकते हैं, उन पर टिप्पणी के माध्यम से सार्थक चर्चा हो । पसंद व नापसंद का चटका साहित्य जैसे विशाल विषय को ट्वेन्टी ट्वेन्टी का रूप देने जैसा है । न प्रतिभा दिखेगी इससे और न ही चुनावी तरीकों से कुछ भला होने वाला है । व्यक्तिगत राग-द्वेष ही दृष्टिगत हुये हैं अब तक इस प्रक्रिया में ।
नापसंद के चटके के साथ आपको कारण भी देना हो और उस पर आपकी समझ को विद्यतगण किसी रैंकिग में बदल आप की नापसंद का मान निश्चित करें तभी किसी की नापसंद का अर्थ है । अन्यथा चित्र पर दोष बताने वाली और उसी चित्र पर उन दोषों को ठीक करने वाली कहानी तो हम सबने पढ़ी ही होगी ।
ब्लॉगवाण के बिना सब सूना सूना लग रहा है, चटकों का सच ब्लॉगर्स के डिटेल्स देकर सामने लाया जा सकता है। कम से कम पता तो चले कि कौन असहमत है और कौन सहमत।
सही कहा निर्मला जी ...... !!
मेरे ख्याल से ब्लोग्वानी को ही इस और ध्यान नहीं देना चाहिए ......
उंगली किस पर नहीं उठती ....कोई भी किसी से संतुष्ट हुआ है आज तक .....??
मैं अभी यहाँ नई हूँ कुछ चार पांच महीने ही हुए होंगे लिखने का शौक था तो लिखना शुरू कर दिया लेकिन ये ब्लोग्वानी और चिट्टाजगत और इन्डली जैसी चीज़े अभी मुझे समझ नहीं आती पता नहीं इनमे शामिल होना जरुरी है या नहीं या इनके बगेर मेरे ब्लॉग किसी कि नज़र में आयेंगे या नहीं पता नहीं.......... लेकिन मुझे अभी इन्हें समझने में वक़्त लगेगा ये मैं जानती हूँ क्योकि मैं इन चीजों को ज्यादा समय नहीं देती बस लिखने के साथ पदने का भी शौक है इसलिए ब्लॉग पड़ती हूँ और कमेन्ट करती हूँ अभी तो बस इतना ही जानती हूँ ! बस आप जैसे सिनिअर का मार्गदर्शन मिलता रहा तो ये ब्लॉगजगत कि ए बी सी भी सीख लूंगी !!!
sahi kaha aapne
आपकी बात से सहमत हूँ मैं भी सीधा सदा अपना काम ही कर पाती हूँ और जिस का मतलब समझ न आये उसे नहीं छेडती हूँ फिर भी कुछ भी हो सकता है
सहमत हूँ आपसे ।
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