29 August, 2009

आओ कर लो मेरा वरण Align Centre

हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
शुद्ध करो मेरा
अन्त:करण
आओ कर लो मेरा वरण
मेरे अवचेतन मन पर
त्रिश्णाओं स्पर्धाओं का धूआँ
बन जायेगा एक दिन
मेरे विनाश का कूआँ
लगा लो अपनी शरण
आओ कर लो मेरा वरण्
मन को लगी है चोट
मन रही कचोट
छटपटा रहा मन दर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
दे दो चेतन प्राण
दे दो दिव्य ग्यान
स्वीकार करो समर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
सुसंकल्प जगा दो
सुविग्य बना द
लगाओ मुझे शरण्
आओ कर लो मेरा वरण
हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
आओ कर लो मेरा वरण
शुद्ध करो अन्त:करण


22 comments:

अनिल कान्त said...

अति उत्तम रचना...खासकर संसार और ईश्वर के मध्य की आवाज़

vandana gupta said...

utkrisht prabhu prem ko samarpit rachna.........samarpan aisa hi hona chahiye.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कितना सुन्दर गीत है. इसे तो गुनगुनाने का मन हो रहा है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सरल, सहज और सुन्दर गीत के लिए बधाई!

Vinay said...

अति सुन्दर गीत रचने पर बधाई
-------
तख़लीक़-ए-नज़र

ओम आर्य said...

बहुत ही खुबसूरती से अपने मन के भावनाओ को पिरोया है ..........एक बेहद खुब्सूरत गीत.......

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति, आभार्

Yogesh Verma Swapn said...

uttam samarpan, utkrasht rachna ke liye nirmalaji, badhai.

ताऊ रामपुरिया said...

अत्यंत सुंदर गीत. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

शरद कोकास said...

वरण का प्रयोग अच्छा है

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

shaj prakar...... sundar bhav......... wah.....

दर्पण साह said...

छटपटा रहा मन दर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
दे दो चेतन प्राण
दे दो दिव्य ग्यान
स्वीकार करो समर्पण
आओ कर लो मेरा वरण....

ye lines vishesh taur par acchi lagi.

us nirakar ki bhakti aise hi ho sakti hai !!

hem pandey said...

अंतःकरण की शुद्धता बाह्यजगत को भी आलोकित करती है.

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

मन सात्विक हो उठा ! समर्पण सहज हो चला और मैं आत्म-विभोर हुआ ............प्रणाम! सादर चरण स्पर्श !

सर्वत एम० said...

अद्भुत, शानदार, भक्ति-प्रेम से सराबोर इस सफल रचना की प्रस्तुति के लिए आभार. आप जिस विषय को कविता में उठाती हैं, जीवंत कर देती हैं...बधाई.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

प्रभु चरणों में अपना पूर्ण समर्पण!!!
आपकी इस रचना को बार बार पढकर अपने अन्तर में सहेजने की कोशिश कर रहा हूँ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

अच्छी रचना.. वाह....

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

इस पुकार का अर्थ या कारण ? !

अरे
जब उसने किया मन निर्मल ,
तभी से मन में इक हूक उठी ,
उस से मिलन को रूह कूक उठी ,
छट गए सभी तृष्णाओं स्पर्धाओं के
कुहासे जो फैले थे भ्रम जालों से ,
पगले मन यही तो उसका वरण है,
यही तो वरण है

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

बहुत दिनों बाद याद किया , वैस मैं भी तो अन्तर-जाल पर ज्यादा घूम नहीं पाता एक आध पर ही जा पाता हूँ शारीरिक और मानसिक थकन दोनों अनुभव करने लगा हूँ |

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है ! बहुत बढ़िया लगा !इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

Sudhir (सुधीर) said...

सुसंकल्प जगा दो
सुविज्ञ बना दो
लगाओ मुझे शरण्
आओ कर लो मेरा वरण

कितनी उत्तम कामना है... सुन्दर साधू!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

wah wah nirmala ji...
very nice composition..

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