26 June, 2009

सवाल क्यों है (कविता )

ज़िन्दगी
मुझ से सवाल क्यों है
गुज़रे वक्त पर मलाल क्यों है

जीवन तो पानी का बुलबुला है
कोई आया कोई चला गया है
फिर मौत पे इतना बवाल क्यों है

ज़िन्दगी ने कब किसी को हंसाया है
किसी से छीना किसी ने पाया है
तो अपनी इक हार पे बेहाल क्यों है

लिखी नसीब की कोई मिटा नहीं सकता
मुक्द्दर से ज्यादा कोई पा नहीं सकता
जो शै तेरी नहीं उस पे सवाल क्यों है

ज़िन्दगी मुझ से सवाल क्यों है
गुज़रे वक्त पे मलाल क्यों है

27 comments:

पूनम श्रीवास्तव said...

ज़िन्दगी ने कब किसी को हंसाया है
किसी से छीना किसी ने पाया है
तो अपनी इक हार पे बेहाल क्यों है

आदरणीय निर्मला जी ,
बहुत सुन्दर एवम सरल शब्दों में जीवन दर्शन को अभिव्यक्ति देती कविता॥शुभकामनायें।
पूनम

Anonymous said...

सरल शब्दों का माधुर्य दर्शनीय है. जीवन दर्शन के सार्थक सवाल को बखूबी उठाया है आपने. बहुत सुन्दर

Udan Tashtari said...

गजब!! बस इतना ही कहना है आज!

Unknown said...

aaina hai ya parchhaai hai
jo bhi hai
aapki kavita
shabdon se arth ki sagaai hai !

main aapki lekhni ka vandan karta hoon
aur aapka hardik abhinandan karta hoon
_________jiyo jiyo..........

संगीता पुरी said...

सरल शब्‍दों में गंभीर बातें .. पढकर बहुत अच्‍छा लगा।

विवेक सिंह said...

कमाल की रचना !

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत धन्यवाद, आज तो जिंदगी की सच्चाई ऊंडेल कर रख दी आपने. सूफ़ी संत निजामुद्दिन औलिया साहब को नर्तकी द्वारा कहे गये शब्द याद आ गये. जिसमे उसने कहा था कि "तकदीर से ज्यादा और समय से पहले आप जो दे सकते हैं वो दे दिजिये"

बहुत बहुत प्रभावित कर गई आपकी यह रचना.

रामराम.

mamta said...

लिखी नसीब ..... वाली पंक्तियाँ बहुत पसंद आई ।

ओम आर्य said...

ज़िन्दगी मुझ से सवाल क्यों है
गुज़रे वक्त पे मलाल क्यों है
ISI SAWAL KI TO KHOJ KA NAAM JINDGI HAI .......SHAYAD
AAP BAHUT HI SARALATA SE BAHUT KUCHH KAH DIYA HAI ....................
NATMASTAK
BADHAEE

सदा said...

ज़िन्दगी ने कब किसी को हंसाया है
किसी से छीना किसी ने पाया है ।

सरल शब्‍दों में इतनी गहरी बातें, जीवन की सच्‍चाईयों से आमना-सामना वो भी इतने आसान शब्‍दों में, आभार ।

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है । अपनें भावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

Vinay said...

बहुत ख़ूब...

---
डायनासोर भी तोते की जैसे अखरोट खाते थे
2

Riya Sharma said...

नर्मला जी
शब्दों के अभाव में बस इतना ही ..

कितना अर्थपूर्ण ,कितने अद्भुत भाव
जीवन की सच्चाई लिए हुवे

अति उत्तम अभिव्यक्ति !!!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! कितनी खूबसूरती से आपने चन्द पंक्तियों के माध्यम से जीवन दर्शन को अभिव्यक्त कर डाला.....बहुत बहुत बहुत ही बढिया...

रंजू भाटिया said...

ज़िन्दगी ने कब किसी को हंसाया है
किसी से छीना किसी ने पाया है
तो अपनी इक हार पे बेहाल क्यों है

अच्छी लगी आपकी यह कविता

नीरज गोस्वामी said...

कमाल की रचना है ये आपकी शब्द शब्द सीधे दिल में उतर जाता है...वाह निर्मला जी वाह...बहुत बहुत बधाई...
नीरज

दिगम्बर नासवा said...

जीवन के यथाथ सत्य से भरी सीधे अन्दर तक जानी वाली लाजवाब रचना........... आप बहुत अच्छा लिखती हैं........
बहूत ही लाजवाब

कंचनलता चतुर्वेदी said...

bahut khoob....saral shabdo me gambhir baatein....

रंजीत/ Ranjit said...

kya baat kahee...

राज भाटिय़ा said...

बस यही समझ मै आ जाये तो क्या बात है.
बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद

KK Yadav said...

आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
__________________________________
आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....

Yogesh Verma Swapn said...

sunder rachna ke liye mubarak.wah.

jiwan ka darshnik paksh,abhivyakt karti rachna.

Akshitaa (Pakhi) said...

Hi Aunty! Ur blog is nice one. Im also here on blog "Pakhi ki duniya".

अनिल कान्त said...

आपकी रचना बहुत अच्छी लगी मुझे

vijay kumar sappatti said...

aadarniya nirmala ji

aapki is rachna ne mujhe rok diya hai .. main padhkar ziondagi ke philosphy ko salaam karta hon..jo ki aapki shashakt lekhni me ubhar kar aayi hai....

aap yun hi likhte rahe ...

naman..

vijay

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रचना के माध्यम से सवाल-ज़वाब बहुत अच्छे हैं।

प्रकाश गोविंद said...

सहज शब्दों द्बारा गहरी अभिव्यक्ति !

जीवन के परम सत्य को उद्घाटित करती कविता !

मेरा आना सार्थक हुआ !

हार्दिक शुभकामनाएं


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