बचपन की याद
आँगन की बौराई बेरी ने
ऐसी कसक जगाई है
बच्पन की कोई याद मुझे
फिर गाँव खींच ले आई है
दस बीस घरों का होता एक दालान
सब् रहते वहाँ इक परिवार समान
दादा ताया चाचा भाई
दादी बूआ चाची ताई
एक आँगन मे बिछती थी
सब की इकठी चारपाई
बारी बारी सब कथा सुनाते
नकलें उतारते खूब हंसाते
दुनिया भर की बातें बताते
आज़ादी का इतिहास सुनाते
वो बीते पल ही
जीवन की सच्चाई है
बचपन की-------------------------
ये गलियाँ वो बाग बहार
दादी बूआ का लाड दुलार
खेलना कूदना धूम मचाना
बारिश की बूँदो मे
किलकारियां मार नहाना
फिर तलाब मे तैर घडे पर
उस पार निकल जाना
बरसों उसकी एक एक बूँद
आँखों से बर्साई है
बचपन की----------------------------
वो सखियाँ वो झूले
कुछ कोमल एह्सास ना भूले
लुकन मीटी छू छुपाई
गीटों से वो पूर भराई
कभी हारना कभी हराना
कुछ खोना कुछ पाना
तोड बेर जामुन अमरूद खाना
फिर सावन के झूलों पर
सपनों के गीत सुनाना
आज उस झूले की बल्ली
किसने काट गिरायी है
बचपन की--------------------------------
बचे हुये कुछ लम्हों क
इन यादों मे बिताना चाहती हूं
बचपन की सखियों के संग
आज बतियाना चाहती हूँ
पर उनकी दूरी की पीडा
दर्द बन उभर आई है
अपनी लाचारी पर
आँख मेरी भर आई है
जीवन की इस संध्या मे
ये कैसी रुसवाई है
बचपन की कोई याद आज
मुझे गाँव खीँच ले आई है
ऐसी कसक जगाई है
बच्पन की कोई याद मुझे
फिर गाँव खींच ले आई है
दस बीस घरों का होता एक दालान
सब् रहते वहाँ इक परिवार समान
दादा ताया चाचा भाई
दादी बूआ चाची ताई
एक आँगन मे बिछती थी
सब की इकठी चारपाई
बारी बारी सब कथा सुनाते
नकलें उतारते खूब हंसाते
दुनिया भर की बातें बताते
आज़ादी का इतिहास सुनाते
वो बीते पल ही
जीवन की सच्चाई है
बचपन की-------------------------
ये गलियाँ वो बाग बहार
दादी बूआ का लाड दुलार
खेलना कूदना धूम मचाना
बारिश की बूँदो मे
किलकारियां मार नहाना
फिर तलाब मे तैर घडे पर
उस पार निकल जाना
बरसों उसकी एक एक बूँद
आँखों से बर्साई है
बचपन की----------------------------
वो सखियाँ वो झूले
कुछ कोमल एह्सास ना भूले
लुकन मीटी छू छुपाई
गीटों से वो पूर भराई
कभी हारना कभी हराना
कुछ खोना कुछ पाना
तोड बेर जामुन अमरूद खाना
फिर सावन के झूलों पर
सपनों के गीत सुनाना
आज उस झूले की बल्ली
किसने काट गिरायी है
बचपन की--------------------------------
बचे हुये कुछ लम्हों क
इन यादों मे बिताना चाहती हूं
बचपन की सखियों के संग
आज बतियाना चाहती हूँ
पर उनकी दूरी की पीडा
दर्द बन उभर आई है
अपनी लाचारी पर
आँख मेरी भर आई है
जीवन की इस संध्या मे
ये कैसी रुसवाई है
बचपन की कोई याद आज
मुझे गाँव खीँच ले आई है
9 comments:
yaadon ka ek achcha guldasta bana diya aapne,uski khushbu hum tak bhi pahunch rahi hai.
बचपन की कोई याद आज
मुझे गाँव खीँच ले आई है
मैं भी आपके साथ जैसे गाँव पहुँच गयी ...बहुत सुन्दर रचना
बचे हुये कुछ लम्हों क
इन यादों मे बिताना चाहती हूं
बचपन की सखियों के संग
आज बतियाना चाहती हूँ
पर उनकी दूरी की पीडा
दर्द बन उभर आई है
अपनी लाचारी पर
आँख मेरी भर आई है
जीवन की इस संध्या मे
ये कैसी रुसवाई है
बचपन की कोई याद आज
मुझे गाँव खीँच ले आई है
man ko chu gye apke bchpanke beete pal
chlke nyn mora kske re jiyra bachpan ki jb yad aaye re
abhar
po
बारिश की बूँदो मे
किलकारियां मार नहाना
फिर तलाब मे तैर घडे पर
उस पार निकल जाना
..आपने तो बचपन में पहुंचा दिया
सुन्दर प्रस्तुति,
मातृ-दिवस की शुभ-कामनाएँ।
आज मातृदिवस पर बहुत सी रचनाएँ पढ़ीं लेकिन यह सबमें सबसे अच्छी है
BHAV BIHWAL KAR DENE WAALI YE KAVITA HAI MAA.... BAHOT HI SAADGI AUR SHAANDAAR TARIKE SE PRASTUTI...
EK SHE'R...
इतना तो असर है मेरी माँ की दुआओं में ..
टूटा हुआ पत्ता भी बसे है फिजाओं में ..
वो पूजते हा पत्थर मैं इंसान पूजता हूँ ..
मेरी माँ है सबसे पहले लिल्लाह खुदाओं में ...
बधाई
अर्श
आँगन की बौराई बेरी ने
ऐसी कसक जगाई है
बच्पन की कोई याद मुझे
फिर गाँव खींच ले आई है
सचमुच बचपन तो ऐसा ही होता है.................बार बार.......उम्र के हल पड़ाव पर.............वापस खींचता है...........दोड़ कर मन उस जगह बार बार जाने को करता है............स्वप्निल यादों को संजोये सुन्दर रचना है ............आभार
आँगन की बौराई बेरी ने
ऐसी कसक जगाई है
बच्पन की कोई याद मुझे
फिर गाँव खींच ले आई है
बहुत सुन्दर रचना.....!!
Post a Comment