10 May, 2009

बचपन की याद

आँगन की बौराई बेरी ने
ऐसी कसक जगाई है
बच्पन की कोई याद मुझे
फिर गाँव खींच ले आई है

दस बीस घरों का होता एक दालान
सब् रहते वहाँ इक परिवार समान
दादा ताया चाचा भाई
दादी बूआ चाची ताई
एक आँगन मे बिछती थी
सब की इकठी चारपाई
बारी बारी सब कथा सुनाते
नकलें उतारते खूब हंसाते
दुनिया भर की बातें बताते
आज़ादी का इतिहास सुनाते
वो बीते पल ही
जीवन की सच्चाई है
बचपन की-------------------------
ये गलियाँ वो बाग बहार
दादी बूआ का लाड दुलार
खेलना कूदना धूम मचाना
बारिश की बूँदो मे
किलकारियां मार नहाना
फिर तलाब मे तैर घडे पर
उस पार निकल जाना
बरसों उसकी एक एक बूँद
आँखों से बर्साई है
बचपन की----------------------------
वो सखियाँ वो झूले
कुछ कोमल एह्सास ना भूले
लुकन मीटी छू छुपाई
गीटों से वो पूर भराई
कभी हारना कभी हराना
कुछ खोना कुछ पाना
तोड बेर जामुन अमरूद खाना
फिर सावन के झूलों पर
सपनों के गीत सुनाना
आज उस झूले की बल्ली
किसने काट गिरायी है
बचपन की--------------------------------
बचे हुये कुछ लम्हों क
इन यादों मे बिताना चाहती हूं
बचपन की सखियों के संग
आज बतियाना चाहती हूँ
पर उनकी दूरी की पीडा
दर्द बन उभर आई है
अपनी लाचारी पर
आँख मेरी भर आई है
जीवन की इस संध्या मे
ये कैसी रुसवाई है
बचपन की कोई याद आज
मुझे गाँव खीँच ले आई है

9 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

yaadon ka ek achcha guldasta bana diya aapne,uski khushbu hum tak bhi pahunch rahi hai.

शेफाली पाण्डे said...

बचपन की कोई याद आज
मुझे गाँव खीँच ले आई है
मैं भी आपके साथ जैसे गाँव पहुँच गयी ...बहुत सुन्दर रचना

शोभना चौरे said...

बचे हुये कुछ लम्हों क
इन यादों मे बिताना चाहती हूं
बचपन की सखियों के संग
आज बतियाना चाहती हूँ
पर उनकी दूरी की पीडा
दर्द बन उभर आई है
अपनी लाचारी पर
आँख मेरी भर आई है
जीवन की इस संध्या मे
ये कैसी रुसवाई है
बचपन की कोई याद आज
मुझे गाँव खीँच ले आई है
man ko chu gye apke bchpanke beete pal
chlke nyn mora kske re jiyra bachpan ki jb yad aaye re
abhar

po

Anonymous said...

बारिश की बूँदो मे
किलकारियां मार नहाना
फिर तलाब मे तैर घडे पर
उस पार निकल जाना


..आपने तो बचपन में पहुंचा दिया

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति,
मातृ-दिवस की शुभ-कामनाएँ।

Vinay said...

आज मातृदिवस पर बहुत सी रचनाएँ पढ़ीं लेकिन यह सबमें सबसे अच्छी है

"अर्श" said...

BHAV BIHWAL KAR DENE WAALI YE KAVITA HAI MAA.... BAHOT HI SAADGI AUR SHAANDAAR TARIKE SE PRASTUTI...
EK SHE'R...
इतना तो असर है मेरी माँ की दुआओं में ..
टूटा हुआ पत्ता भी बसे है फिजाओं में ..

वो पूजते हा पत्थर मैं इंसान पूजता हूँ ..
मेरी माँ है सबसे पहले लिल्लाह खुदाओं में ...

बधाई
अर्श

दिगम्बर नासवा said...

आँगन की बौराई बेरी ने
ऐसी कसक जगाई है
बच्पन की कोई याद मुझे
फिर गाँव खींच ले आई है

सचमुच बचपन तो ऐसा ही होता है.................बार बार.......उम्र के हल पड़ाव पर.............वापस खींचता है...........दोड़ कर मन उस जगह बार बार जाने को करता है............स्वप्निल यादों को संजोये सुन्दर रचना है ............आभार

हरकीरत ' हीर' said...

आँगन की बौराई बेरी ने
ऐसी कसक जगाई है
बच्पन की कोई याद मुझे
फिर गाँव खींच ले आई है

बहुत सुन्दर रचना.....!!

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