30 December, 2008

ग़ज़ल

मुझे अपने दिल के करीब रहने दो
न पोंछो आँख मेरी अश्क बहने दो
ये इम्तिहां मेरा है जवाब् भी मेरा होगा
दिल का मामला है खुद से कहने दो
जीते चले गये ,जिन्दगी को जाना नहीं
मुझे मेरे कसूर की सजा सहने दो
उनकी जफा पर मेरी वफा कहती है
खुदगर्ज चेहरों पे अब नकाब रहने दो
तकरार से कभी फासले नहीं मिटते
घर की बात है घर में रहने दो !!

1 comment:

vijay kumar sappatti said...

bahut sundar gazal ,

मुझे अपने दिल के करीब रहने दो
न पोंछो आँख मेरी अश्क बहने दो
aur
तकरार से कभी फासले नहीं मिटते
घर की बात है घर में रहने दो

ye dono sher jabardast hai .. dil ke bheetar pahunchate hai

wah wah , bahut sundar ji ..
bahut badhai ..

main bhi kuch naya likha hai , aapka sneh chahiye ..

aapka vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

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