23 August, 2015

गज़ल

फिलबदीह 80- काव्योदय  से हासिल गज़ल
बह्र --फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
काफिया आ रदीफ कौन है
 गज़ल निर्मला कपिला

अब मुहब्बत यहां जानता कौन है
रूह की वो जुबां आंकता  कौन है

मंजिलों का पता कागज़ों ने दिया
नाम से तो मुझे जानता कौन है

वक्त का हर सफा खोल कर देखती
कौन देता खुशी सालता कौन है

अब खुदा है या भगवान बोलो उसे
एक ही बात है मानता कौन है

ज़िन्दगी बोझ हो तो भी चलते  रहो
रुक के मंज़िल पे पहुंचा भला कौन है --- ये अशार विजय स्वरणकार जी को समर्पित

झूठ की भी शिनाख्त किसे है यहां
चोर को चोर पहचानता कौन है

आंख कोई दिखाये तो डरते नही
गर चुनैती मिले  भागता कौन है

हादसा हो गया लोग इकट्ठे  हुये
चोट लगती जिसे देखता कौन है

लापता कितने बच्चे हुये हैं यहां
सच कहूँ तो उन्हे ढूंढ्ता कौन है

वक्त बेवक्त वो काम आया मेरे
किसको मांनूं जहां मे खुदा कौन है

8 comments:

रचना दीक्षित said...

बहुत सुंदर गज़ल.

शूरवीर रावत said...

इस सुन्दर ग़जल के लिये वधाई।
आपकी सक्रियता को नमन निर्मला दी। आप फेसबुक पर भी हैं तो ब्लॉग पर भी। आप परिवार के साथ भी हैं तो मित्रों के साथ भी। रिटायरमेण्ट के बाद भी इतनी ऊर्जा कैसे और कहाँ से लेती हैं आप?

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi badhiya di--bahut hi sahaj aur svabhavik prastuti.
bahut dino baad fir se apne blog par aa rahi hun haousala badhate rahiyega---naman ke saath

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बेहतरीन ग़ज़ल

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही लाजवाब और कामयाब ग़ज़ल ... हर शेर खिलता हुआ है ...

संध्या शर्मा said...

बहुत सुंदर गज़ल....

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

क्‍या बात आदरणीया

रोहित रौनक़ said...

वाह

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